पिछले साल सुनील पंवार को एक परेशानी का सामना करना पड़ा. कर्नाटक के दांडेली अंशी बाघ अभयारण्य के वनों के डिप्टी कंजर्वेटर (वन्यजीवन डिवीजन) को खबर मिली कि गोवा सीमा के निकट बांदेली से एक वाहन कथित तौर पर बेंत और लकड़ी की तस्करी को अंजाम दे रहा है. लेकिन वे इसे लेकर कुछ करने की स्थिति में नहीं थे.
पंवार शिकारियों पर नकेल कसने वाले कैंप को भी सूचित नहीं कर सकते थे क्योंकि उनका वाकीटॉकी काम नहीं कर रहा था. लगातार बारिश के कारण सौर ऊर्जा से चलने वाला चार्जर बेकार हो चुका था. खराब मौसम के चलते पंवार के लिए कैंप तक पहुंचना संभव नहीं था. पंवार के दल को अक्सर इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था. सौर ऊर्जा से चलने वाले लैंपों के चार्ज न होने के कारण रात के समय गश्त करना भी मुश्किल भरा काम सिद्ध होता था. चार्ज न होने की एक मुख्य वजह इस इलाके में तीन-चार महीने बरसात होना है.
परिस्थितियों में उस समय बड़ा बदलाव आया जब पंवार ने बंगलुरू की रिन्यूएबल एनर्जी एप्लीकेशंस ऐंड प्रोडक्ट्स कंपनी से संपर्क साधा. कंपनी ने साइकिल से चलने वाला चार्जर पेश किया, जो न सिर्फ वाकी-टॉकी चार्ज कर सकता है बल्कि पार्कों को भी रोशन कर सकता है.
साइकिल के पिछले पहिये में डायनेमो लगा हुआ है जो पैडल मारने पर उपकरण को चार्ज कर देता है. {mospagebreak}साइकिल के पैडल 20 मिनट तक चलाने पर वाकीटॉकी पर एक घंटे का बात करने का समय मिल जाता है, तो सड़क को रोशन करने वाला बल्ब दो से तीन घंटे तक जल सकता है. अब अधिकारियों ने अति वृष्टि वाले इलाकों में 10 वाकीटॉकी दे दिए हैं.
लगभग 1,050 वर्ग किमी से भी ज्यादा क्षेत्र में फैले दांडेली अंशी बाघ अभयारण्य की पैदल गश्त बहुत मुश्किल है. पंवार का कहना है, ‘यहां तक कि जब आपात् स्थिति नहीं होती थी और हमें मेडिकल आपूर्ति या राशन के लिए कॉल करनी होती थी, तब भी हम फंस जाते थे.’
बाघ, काला तेंदुआ, हाथी और अन्य पशुओं का आरक्षित क्षेत्र होने के कारण यहां संपर्क प्रणाली सबसे जरूरी हथियार है. पांच साल पहले जब आखिरी बार यहां बाघों की गिनती के काम को अंजाम दिया गया था तो उसमें बाघों की संख्या 33 बताई गई थी.
पर्यावरण अनुकूल साइकिल चार्जर के बाद वन विभाग अब सीएफएल लैंपों की जगह एलईडी लैंपों को ला रहा है, जो सिर्फ पहले की अपेक्षा आधी बिजली ही खर्च करते हैं. पिछले काफी महीने से चल रहा साइकिल चार्जर का प्रयोग अब अन्य पार्कों के अधिकारियों में भी रुचि जगा रहा है. पंवार कहते हैं कि मैसूर के निकट स्थित नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान भी इस तरह के यंत्र में काफी रुचि दिखा रहा है.