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अब नहीं लगेगी उंगली पर स्याही! जानिए इतनी जल्दी क्यों टूटा सिस्टम का दम

पुराने नोटों को बदलने पर अमिट स्याही लगाने की व्यवस्था शुरू होते ही दम तोड़ती दिख रही है. सरकार ने बैंकों में हो रही भीड़ को कम करने के लिए ऐलान किया किया कि पुराने नोट बदलने वालों की उंगली पर स्याही का निशान लगाया जाएगा. यह फैसला इसलिए लिया गया कि बार-बार नोट बदलने जाने वालों को रोका जा सके और नए ग्राहकों को भी नोट बदलने में सहूलियत हो.

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2000 का नया नोट
2000 का नया नोट

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पुराने नोटों को बदलने पर अमिट स्याही लगाने की व्यवस्था शुरू होते ही दम तोड़ती दिख रही है. सरकार ने बैंकों में हो रही भीड़ को कम करने के लिए ऐलान किया किया कि पुराने नोट बदलने वालों की उंगली पर स्याही का निशान लगाया जाएगा. यह फैसला इसलिए लिया गया कि बार-बार नोट बदलने जाने वालों को रोका जा सके और नए ग्राहकों को भी नोट बदलने में सहूलियत हो. यह वही स्याही है जिसका इस्तेमाल मतदान के दौरान होता है. लेकिन हफ्ते भर के भीतर ही सरकार की तैयारियों की हवा निकल गई है. चुनाव आयोग ने सरकार से कहा है कि वो नोट बदलने बैंक आने वाले लोगों को स्याही लगाना रोके. आखिर ऐसा क्यों हुआ...जानिए

1. आर्थ‍िक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने मंगलवार को यह ऐलान किया कि अब पुराने नोट बदलने वालों की उंगली पर बैंक काली स्याही का निशान लगाएंगे. बुधवार से यह व्यवस्था शुरू हो गई लेकिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को छोड़कर अधिकतर बैंकों के पास इस तरह की स्याही का स्टॉक नहीं था. अब चूंकि सरकार का फैसला तो बैंकों को मानना ही था, ऐसे में तमाम बैंकों में काली स्याही जगह मार्कर का इस्तेमाल होने लगा. ऐसा होने से लोग मार्कर का निशान छुड़ाकर दोबारा बैंकों में पहुंचने लगे. इससे अराजकता की स्थिति पैदा हो गई.

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2. चुनाव आयोग ने कहा है कि नोट बदलने के लिए बैंकों में मतदान वाली स्याही का इस्तेमाल होने से आगामी चुनावों में दिक्कत हो सकती है. देश के कुछ राज्यों में जल्द ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. कुछ राज्यों में उप-चुनाव होने हैं. अगर अभी बैंकों में लोगों की उंगली पर स्याही लग जाएगी तो बहुत संभावना है कि विधानसभा चुनावों में मतदान तक स्याही का निशान नहीं छूटे. ऐसे में मतदान प्रक्रिया में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि मतदान के दौरान बार-बार वोट डालने से रोकने के लिए यह स्याही लगाई जाती है.

3. कालेधन पर लगाम के लिए नोटबंदी का ऐलान करने वाली सरकार का खर्च स्याही लगाने के काम से बढ़ेगा. इस स्याही की 5 मिलीलीटर की एक बोतल 116 रुपये की आती है. सरकार के ऐलान के बाद ऐसी 2.9 लाख बोतलें तैयार करने का ऑर्डर मिला है. यानी केवल स्याही लगाने का खर्च 3 करोड़ 36 लाख 40 हजार रुपये आएगा.

4. नोटबंदी के ऐलान के बाद बैंकों में लंबी कतारें लग रही हैं. पुराने नोट बदलने का काम वैसे ही बैंक कर्मचारियों के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया है. इन कर्मचारियों को पहले से ज्यादा काम करना पड़ रहा है. ऊपर से स्याही लगाने के फरमान से बैंक के कर्मचारियों के पास एक और काम बढ़ गया हैं. ऐसे में स्याही की व्यवस्था बैंककर्मियों पर भारी पड़ रही है.

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5. मंगलवार को सरकार ने ऐलान किया कि नोट बदलने वालों की उंगली पर स्याही का निशान लगाया जाएगा. बुधवार को इस स्याही की करीब 30 लाख बोतलें तैयार करने का काम शुरू हुआ जिसे पूरा होने में करीब हफ्ते भर लग जाएंगे. फिर देशभर के कोने-कोने में फैली बैंकों की शाखाओं में पहुंचाने के लिए भी कुछ वक्त चाहिए. जिन बैंकों में पहले से ऐसी स्याही थी वहां तो ग्राहकों की उंगली में यह स्याही लगनी शुरू हो गई लेकिन तमाम जगहों पर यह स्याही नहीं लग रही, बल्कि मार्कर का इस्तेमाल भी हो रहा है. ऐसे में स्याही के इस्तेमाल की चाक-चौबंद व्यवस्था नहीं होने से उन लोगों पर लगाम कसने में मुश्किल आ रही है जिन्हें रोकने के लिए सरकार ने यह व्यवस्था शुरू की है.

क्या है स्याही लगाने की व्यवस्था?
बुधवार को बैंकों जारी एसओपी यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के मुताबिक नोट बदलने के दौरान करंसी देने से पहले बैंक का कैशियर या इस बारे में बैंक की ओर से अधिकृत स्टाफ ग्राहक की उंगली पर अमिट स्याही का निशान लगाएगा. इस लेनदेन की प्रक्रिया में उंगली पर लगी स्याही सूख जाएगी और इसे मिटाना आसान नहीं होगा.

बैंक से पैसा एक्सचेंज करा रहे लोगों के दाहिने हाथ की तर्जनी पर स्याही लगाई जा रही है, जबकि चुनाव के दौरान वोट करने वालों के बायें हाथ की तर्जनी पर स्याही लगाई जाती है.

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कहां बनती है ऐसी स्याही?
यह स्याही देशभर में केवल एक जगह ही बनती है. वो है मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड. यह कंपनी कर्नाटक सरकार के अधीन है और इसके चेयरमैन हैं मैसूर के पूर्व मेयर अनंत. हालांकि यह कंपनी तो मैसूर के महाराजा द्वारा 1937 में स्थापित की गई थी. उस वक्त इसका नाम था Mysore Lac and Paints Limited. आजादी के बाद इस कंपनी को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का दर्जा मिला.

कब से चुनावों में लगती है यह स्याही?
1962 में इस कंपनी को अमिट स्याही बनाने का मिला. इस स्याही का इस्तेमाल पहली बार तीसरे लोकसभा चुनाव में हुआ जो 1962 में हुए थे. इस कंपनी द्वारा तैयार स्याही केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी काम आती है. थाइलैंड, सिंगापुर, नाइजीरिया, मलेशिया और साउथ अफ्रीका में इस स्याही का निर्यात किया जाता है. कंपनी ने 2012 में कंबोडिया में हुए आम चुनावों के लिए भी स्याही बनाई है.

अमिट स्याही बनाने का काम बेहद सुरक्ष‍ित और गोपनीय तरीके से होता है. इस स्याही को बनाने का फॉर्मूला नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किया गया है. इस स्याही का निशान उंगली पर करीब 20 दिनों तक रहता है.

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