विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि रोजाना आधे से एक घंटे तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल ब्रेन कैंसर के खतरे को तीन गुणा तक बढ़ा सकता है.
डेली एक्सप्रेस के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने इंटरफोन नाम की रिपोर्ट में बताया है कि उनलोगों में ब्रेन कैंसर होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है जो मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार एक दिन में मोबाइल पर आधे घंटे से ज्यादा बात करने वाले लोग ‘ज्यादा’ बात करने वालों की श्रेणी में आते हैं. सामान्य उपयोग को छह महीने की समय सीमा के अंदर कम से कम एक कॉल प्रति सप्ताह रखा गया है.
इस रिपोर्ट के लिए मोबाइल फोन उद्योग द्वारा काफी धन दिया गया था. यह रिपोर्ट 13 देशों के 5,000 ब्रेन कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों, उनके दोस्तों या परिजनों से दस साल के समय अंतराल पर किए गए साक्षात्कार पर आधारित है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि कई युवा आजकल दिनभर में एक घ्ांटे या उससे ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं लेकिन शोध के दौरान 30 साल या उससे कम उम्र वाले किसी भी पीड़ित का साक्षात्कार नहीं लिया गया.
शोधकर्ताओं ने यह पाया कि जिस तरफ फोन रखकर बात की गई थी उस तरफ ट्यूमर होने की संख्या ज्यादा रही.{mospagebreak}बहरहाल, विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी कि मोबाइल फोन से होनेवाला खतरे और बड़े हो सकते हैं क्योंकि अध्ययन में बाकी कई चीजों की व्याख्या नहीं की गई है. मसलन इसमें उस तरह के ट्यूमर की तरफ ध्यान नहीं दिया गया जो कान के अंदर होता है.
मास्ट सेनिटी अभियान समूह की प्रवक्ता सारा राइट ने कहा कि वे सिर्फ दो तरह के ट्यूमर को देख रहे हैं. दूसरी तरह की रिपोटरें में इस खतरे को दुगुना बताया गया है लेकिन इंटरफोन के इस अध्ययन से खतरे में 40 प्रतिशत की वृद्धि बताई गई है. साक्ष्यों से यह पता चला कि पहचान होने वाले लोगों की संख्या हर साल दो प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी. हेल्थ चैरिटी वायर्डचाइल्ड के प्रवक्ता डॉ गा्रहम ब्लैकवेल ने कहा कि सरकार को मोबाइल फोन उद्योगों की तरह यह कहना बंद करना चाहिए की हमें और ज्यादा शोध की जरूरत है. सरकार को चाहिए की वह मोबाइल फोन के पैकेटों पर चेतावनी जारी करे और दूसरे देशों की तरह बच्चों को लेकर सतर्कता बरते.
ब्लैकवेल ने कहा कि अभिभावकों को इस खतरे का अहसास नहीं है. यह खतरा ब्रेन ट्यूमर से आगे भी जा सकता है. सरकार को चाहिए की वो अभिभावकों को आगाह करे क्योंकि उत्पादक कंपनियां तो यह करेंगी नहीं.
इस बारे में ह्यूमन रेडिएशन इफेक्ट ग्रुप के प्रमुख प्राफेसर डेनिस हेंशॉ ने कहा कि हम इस रिपोर्ट को अचंभे से क्यों देखें. यह तो बिल्कुल अपेक्षित है.