scorecardresearch
 

हाथरस से Ground Report: ना ‘बाइज्जत’ रहे, ना ‘बरी’ हुए…आपबीती उन परिवारों की जिनके माथे पर लिख दिया गया “हमारे बच्चे रेपिस्ट हैं!”

आज भी वो दिन याद है, जब हमारे लल्ला को पुलिस पकड़कर ले गई. मां रो-रोकर बेहोश हुई जाती थी. तब से उसे घबराहट की बीमारी पकड़े है. दवा न मिले तो जिंदा नहीं बचेगी. 'और आप?' हमारा क्या! ये बाल देख रही हो. चार बरस में स्याही उड़ गई. रोज मिनट के हिसाब से मुसीबत झेलते रहे. बस, सांस ही न छूटी!

Advertisement
X
हाथरस में कथित गैंग रेप और हत्या को चार साल हो चुके.
हाथरस में कथित गैंग रेप और हत्या को चार साल हो चुके.

इंटरनेट पर हाथरस डालें तो जिले के ब्यौरे से भी पहले दनादन कई खबरें खुलती चली जाएंगी. दलित युवती के कथित गैंग रेप और हत्या से जुड़ी इन खबरों के खलनायक थे- बूलगढ़ी गांव के चार युवक. कुछ ही रोज में गांव छावनी बन गया. आबादी से ज्यादा हथियारबंद दस्ते. इसके बाद से कई चैप्टर खुले-बंद हुए. इस घटना को चार साल बीते. धरती ने सूरज की चार परिक्रमाएं कर लीं. लेकिन हाथरस वो काली चादर हो चुका, जिसपर कोई नया रंग नहीं भरता. 

Advertisement

जिले की सीमा छूते ही हाथरस कांड के निशान दिखने लगेंगे. प्रेस की गाड़ी देखते ही , खुसपुस करते या सवाल पूछने पर बिदकते लोग. थाने के पास रुकने पर मिले कैजुअल रिमार्क- सितंबर है, अभी तो लोग आते-जाते रहेंगे. गांव का नाम पूछने पर किलोमीटरों दूर से लेफ्ट-राइट तक बताते लोग.

छोटे से जिले का बित्ताभर गांव बोल्ड-इटैलिक-अंडरलाइन हो चुका. लेकिन तमाम स्याह वजहों से. 

aajtak.in ने सितंबर 2020 से 2024 के इन्हीं गाढ़े पन्नों को खंगालने की कोशिश की. पहली कड़ी में पढ़ें- चार साल में आरोपियों के परिवारों में क्या संभला-टूटा. क्या वे रेपिस्ट की फैमिली बनकर रह गए, या अदालत की तरह लोगों ने भी उन्हें ‘बाइज्जत बरी’ कर दिया. 

लल्ला और मैं पशु को पानी पिला रहे थे, जब गांव में धूम हुई कि छोटू के खेत में छोरी पड़ी है. हम भी देखने गए. वो संदीप..संदीप कर रही थी. 

Advertisement

'कौन संदीप? आपका बेटा!' 

नहीं, उसका भाई. थोड़ी देर पहले चारे के लिए मां-बेटा-बेटी तीनों खेत में गए थे. फिर जाने क्या हुआ. जिसके खेत में घटना हुई, वो दोबारा पीड़िता के भाई को बुलाने गया. आधे घंटे बाद वो घर से निकला होगा. तब तक हम लौट आए थे. उसके बाद पता नहीं क्या हुआ. 

तो लड़की के साथ आपका बेटा नहीं था!

वो तो मेरे साथ पशुओं को पानी पिला रहा था. लड़की के भाई और  मेरे लल्ला, दोनों का नाम एक है. इसी ने ही उसे डुबो दिया. मैंने खूब कहा. पुलिस को बताया. आप जैसे जो भी लोग गांव आए, सबको बताया. रोए-पीटे, लेकिन सुनता कौन है. सब पीड़िता ही पीड़िता की बात कर रहे थे. हमारा सच तो परती (बंजर) जमीन से भी गया-बीता था. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

किसान पिता बातचीत में भी किसानी जबान बोलता हुआ. चेहरे पर उदासी की जोड़ पर मुस्कान की एक लकीर खिंची हुई. आगे चलकर उनकी पत्नी कहती हैं- वे ठाकुर आदमी हैं. रोएं तो दुनिया हंसेगी. सबसे हंसते-बोलते रहते हैं, लेकिन दिल कमजोर हो चुका. खुराक (दवा) चल रही है. 

लोग कहते हैं कि आपके बेटे और मृतका का कोई संबंध था. 

ऐसी कोई बात नहीं. आप शहरवाली हैं. जानती नहीं कि गांव-घर में रंजिश कैसी होती है. कोई खुश दिखे, अच्छा पहने या बारीक खाए तो भी जलन हो जाती है. फिर सबके-सब पीछे लग जाते हैं. हमारे संग भी यही हुआ. साल 2001 में पीड़िता के पिताजी ने हम पर मारपीट का मुकदमा कर दिया था.  

Advertisement

आपने मारपीट की होगी तब!

नहीं. मारपीट उनकी आपस में थी. उन्होंने सोचा कि जाति के रौब से पैसे मिल जाएंगे. झगड़ा करने वालों ने आपस में राजीनामा कर लिया और हम पर एफआईआर कर दी. लेकिन हम तब भी सच्चे थे. अड़े रहे. रंजिश बढ़ती गई और बेटे को खा गई.

मुलाकात होती है बेटे से?

हां. मैं सालभर पहले गया था. उसकी मां जाती है अक्सर. दो ही तो लोग हैं. एक जाए तो दूसरे को रहना होगा. एक पशु है, उसे चारा-पानी देना पड़ता है. 

गांव-घर में तो लोग आपके बेटे का, आपके परिवार का मजाक बनाते होंगे!

मजाक क्यों! वो तो किसी ने न उड़ाया. भले बेटा जेल में है, किसी ने मदद भी नहीं की, लेकिन जानते सब हैं कि वो निर्दोष है. गलत होता तो मजाक बनता.

बस, एक ही दुख है. बाहर होता तो अब तक शादी-ब्याह हो चुका होता. एकाध बालक भी गोद खेलता. अब पता नहीं, क्या होगा! अगर लड़कीवालों को किसी ने उकसा-तुकसा दिया तो लल्ला छुच्छो (अकेला) रह जाएगा. 

ठाकुर पिता पहली बार आंखों की कोर पोंछते हुए. खिंची हुई मुस्कान अब भी वहीं जड़ी हुई. मैं नजर हटाकर मां की तरफ मुड़ जाती हूं. वे वहीं बैठी हैं. ऐन गांव के मुहाने पर. उस खेत से कुछ सौ मीटर दूर, जहां कांड हुआ था.

Advertisement

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

सिर पर छोटा-सा अंचरा डाले हुई मां पल्लू आगे की तरफ खींच लेती हैं. चेहरा ढंकते हुए ही कहती हैं- हमसे केस-वकील न पूछो, हम तुमाई तरह पढ़े-लिखे नहीं. बाकी तुम बात ही न करो. जाओ यहां से. 

अब तक खाट पर शांत बैठी अम्मा एकदम से अकबकाने लगती हैं. उनके पति बीच में आ जाते हैं- ‘तुम आराम से बात कर लो. बेटे के लाने (कारण) क्या-क्या सह रही हो, बता दो.’ फिर मेरी तरफ देखते हैं- ‘इनसे ज्यादा न पूछना. बीमार होकर गिर जाती हैं. फसल का समय है. मुसीबत हो जाएगी.’

खाट से उतरकर अम्मा अब नीचे एक सूखी टहनी पर बैठ चुकीं. मैं साथ बैठ कैमरा ऑन करते हुए पूछती हूं- क्या हुआ है अम्मा तुमको, तबियत खराब है क्या?

तबियत तो चार साल से खराब है. लल्ला गयो तब से. डॉक्टर कभी एलर्जी बोलते हैं, कभी बोलते हैं कि घबराहट का मर्ज है. शांत रहने की दवा देते हैं. सांस की दवा देते हैं. पेट की खुराक देते हैं. क्या-क्या तो बता डाला. अब एक वक्त दवा न मिले तो आपे में नहीं रहती. 

ठाकुर मां खुलकर रो रही हैं. चेहरे पर छोटा-सा घूंघट साथ ही साथ रोता हुआ. 

संदीप से मिलने जाती हैं?

पैसे जुट जाते हैं तो चली जाती हूं. आगरा में है. अकेली तो जा नहीं पाती. दो का टिकट-भाड़ा लगता है. मिलो तो रोता है कि मम्मी मुझे बुला लो. मम्मी मुझे छुड़ा लो. हम कैसे बुला लें तुमको लल्ला. हमारे बस में होता तो तुम इस हाल में न जाते.

Advertisement

आपका एक छोटा बेटा भी है न!

हां. शहर में है. 12 घंटे की नौकरी करता है. अभी 18 का भयो. संदीप से कई साल छोटा होगा. पढ़ने की उम्र लेकिन दुनियादारी सीख गया. कभी घर आए तो सूखे छुहारे जैसा मुंह देखकर मन कलपता है. हमारे दोनों बेटों की जिंदगी खराब कर दी उन लोगों ने. मां की सिसकियां जोर पकड़ रही हैं. पति इशारा करते हैं. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

मैं कैमरा समेटते हुए पूछ लेती हूं- कोई मदद-सहायता मिली कहीं से?

हमें कौन दे रहा है मदद. इतनी मदद होती तो जवान बच्चा ऐसे आरोप में जेल जाता! तुम लोग और आ गए, झूठ-सच का झंडा टांगकर जाने के लिए. 

घूंघट हटाकर इस बार मुझे गौर से देखा जा रहा है, मानो पिछले चेहरों से मिलान हो रहा हो. फिर याद करती हैं- जो आता, थूककर चला जाता था. लल्ला पढ़ने-लिखने वाला था. कागज-पत्तर, मोबाइल, लैपटॉप- सब जांचवाले (सीबीआई) लेकर चले गए. अब पता नहीं कितने साल गंवाकर लौटेगा. और लौटेगा भी तो करेगा क्या! खेत हमारा लंबा-चौड़ा है नहीं. काम कहीं मिलेगा नहीं! 

पीड़ित के घर कभी गए, बातचीत, सुलह-समझौते के लिए?

हम न जाते. हमें क्या मतलब वां से (उनसे). आसपास मकान बने हैं. हम ऊपर चढ़ें तो वो दिख जाते हैं. तब आंखें थोड़ी बंद कर लेंगे. देखते रहते हैं कि कितना पानी है उनकी आंखों में. ये कहते हुए भी मां की आंखों से पानी ढुलक रहा है. 

Advertisement

ये वो पानी है, हाथरस में जमा झुंड-मुंड को जिससे खास सरोकार नहीं. पति हवा में ही जैसे पत्नी के कंधे पर हाथ रख ढाढस दे रहे हों, ऐसे इशारा करते हुए बोलते हैं- पानी पी. शांतचित्त हो जा. फिर इनको घर-द्वार ले जा. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

एक ही कैंपस के अंदर लगभग आठ परिवार रहते हैं. घर के नाम पर सबके पास एक-एक कमरा और पसरा हुआ साझा दालान. पुराने ढब की बनावट में भीतर घुसते ही पेशाब की तेज गंध. मैं अंदाजा लगाती हूं कि जहां परदा टंगा हुआ है, वो कॉमन बाथरूम होगा. 

पहला कमरा संदीप के माता-पिता का है. 

कहने पर वे भीतर जाकर दवाओं का गट्ठर उठा लाती हैं. तमाम तरह की जांचें. दिल-दिमाग की दवाएं. कई पर्चियों पर पिता का नाम भी.

वे कहती हैं- ठाकुर आदमी हैं. रोएंगे तो दुनिया हंसेगी, ता से (इसलिए) दिल पर सिल रख ली, लेकिन बीमारी क्यों मुरौबत (मुरव्वत) करेगी. चार साल पहले जवान आदमी थे, दुख में बुढ़ा गए. 

कई औरतें पास सरक आईं. बरी हो चुके दो आरोपियों की पत्नियां भी इसी झुंड में. बात करना चाहती हूं तो बरजते हुए एक कहती है- मीडिया-वीडिया बेकार है. झंडे उठाए थे कि गैंग रेप हुआ है, हत्या हुई है. वाकी (उनकी) लड़की जरूर मरी लेकिन हमारे पति ने नहीं मारी. अदालत भी ये मान चुकी. अब आप लोग कौन सी जासूसी के लिए आए हैं! चेहरे पर नाराजगी के साथ नायकीनी की छाया डगर-मगर करती हुई. 

Advertisement

काफी मान-मनौवल के बाद एक की पत्नी बात करने को राजी हो जाती है लेकिन आंचल से पूरा मुंह ढांपते हुए. 

ये हटा दीजिए, हम चेहरा धुंधला कर देंगे. 

न जी. ये तो न होगा. तुम लोगों का क्या भरोसा. पहले भी आए थे, संतावना (सांत्वना) दी और उलटा-सुलटा लिख गए थे. अधढंका घूंघट खाट पर अधबैठे हुए ही तुनकता है. 

बात संभालते हुए नई उम्र की एक लड़की कहती है- वो क्या है न कि ये गांव-घर है. सास-ससुर, बड़े-बुजुर्ग आते रहते हैं. तुम चेहरा धुंधला भी दो तब भी बड़े देख लेंगे. अच्छा नहीं लगता! नए चेहरे पर समझाइश-भरी हंसी.

आखिरकार बात शुरू हुई. 

रवि की पत्नी. दलित युवती के रेप और हत्या के आरोप में तीन साल जेल काटने के बाद पति ‘बेदाग’ निकल आए. बेदाग शब्द वे खुद देती हैं, जैसे सवाल करते चेहरे पर तमाचा मार रही हों. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

रंजिश समझती हो! गांव में खूब चलती है.

घर-घर रंजिश. जमीन से लेकर, पशु ज्यादा दूध दे, या वा की (उसकी) नथ ज्यादा चमकार मारती है- यहां किसी भी बात पर रंजिश हो जाती है. तो हो गई दो परिवारों में. जाति भी अलग. उठना-बैठना भी वैसा नहीं कि समझ-पाती बन जाए. उसी में इतना बड़ा आरोप हमारे पति और इन सबपर लगा दिया. हमको भनक भी नहीं कि उनके पेट में साजिश चल रही है. अब तुम खुद को ही लो. मुंह से मीठा बोल रही हो. दिल्ली जाकर क्या लिखोगी, हम क्या जाने! 

खुद को कटघरे में पाते हुए भी मैं टालती हूं. ‘आपका मतलब, वे बेगुनाह थे, ये आप सब जानते थे?’ 

जानेंगे क्यों नहीं. आदमी हैं हमारे. कभी गुस्सा-तुस्सा न किया. किसी को नजर उठाकर न देखा. अपनी ही भतीजे (संदीप) संग जाकर ये काम करेंगे क्या! हमीं क्या, सब जानते थे कि वे फंसाए गए हैं. हम हर तीसरे-पांचवें रोज उनसे मिलने जेल जाते कि कहीं दिल छोटा न कर डालें. बच्चों को भी साथ ले जाते थे. 

पति अंदर थे तो तीन साल घर का खर्च कैसे चला?

हम काम करते थे. खेतों में मजदूरी. जैसे अभी धान-बाजरे की फसल खड़ी है. वो काटेंगे. दूसरों के पशुओं को चारा-पानी डालेंगे. बच्चों को रुला-रुलाकर काम करते रहे. एक बालक इत्ता (हाथों से इशारा करते हुए) छोटा है. मां को रोता था. हम उते (वहां) बिठाकर काम करते रहते थे. बच्चे स्कूल लायक हो गए लेकिन पढ़ाएं कहां से! 

अब वो लौट आए लेकिन काम नहीं मिल रहा. गांवभर जानता है कि वे निर्दोष हैं. हाथरस के बाजार में सब जानते हैं, लेकिन यही जानना मुसीबत बन गया. पहले दूर से प्रणाम चचा बोलने वाले अब बचकर निकलते हैं. सबको डर है कि कहीं उनकी रंजिश में वे भी न फंस जाएं.

तसल्ली सब देते हैं लेकिन काम कोई नहीं. 

अभी कहां हैं आपके पति? बात हो सकती है!

अपनी बहन के यहां चले गए. यहां काम नहीं मिलता. और लोग भी खोद-खोदकर पूछते हैं. परेशान रहने लगे तो चले गए. हम यहीं फसल पकने का इंतजार कर रहे हैं. तभी मजदूरी मिलेगी. 

उदासी को गुस्से से छिपाती महिला दांतों से आंचल कुतर रही है. मैं साड़ी की तरफ इशारा करते हुए पूछती हूं-  त्योहार-बार पर नए कपड़े तो खरीदते ही होंगे. 

इस बार जवाब साथ खड़ा झुंड साझी हंसी से दे देता है. ‘रोटी के तो लाले पड़े हैं मैडम, कहां नई साड़ी की बात कर रही हैं. ये गहने देख रही हैं, सब के सब गिलट. किसी के पास असल में एक कनी तक नहीं.’ 

रवि की पत्नी अब भी खाट के पैताने बैठी आंचल कुतर रही हैं. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

तीसरे आरोपी रामू का परिवार भी यहीं बसा हुआ. उनकी पत्नी बात करने से सीधा मना कर देती हैं. ‘क्यों?’ ‘आप लोग झूठ-सच बोलते रहते हैं, कुछ हो गया तो पति दोबारा फंस न जाएं!’ 

झुंड साथ मिलकर बात दोहराता हुआ. 

नई उम्र की बच्ची बीए कर रही है. वो याद करती है- चार साल पहले काफी लोग आए थे. वीडियो बनाकर ले गए कि तुम्हारा पक्ष दिखाएंगे. कुछ न हुआ. हम बिना गलती दोषी बने रहे. अब चाचा छूट तो आए हैं लेकिन जिंदगी पहले जैसी नहीं. न किसी के पास काम है, न रुतबा. वहम अलग रहता है कि कहीं कुछ हो-हवा न जाए. इसी से सब डरती हैं. लेडीज हैं, दुख में कुछ उलट-सुलट निकल गया तो मुश्किल बढ़ जाएगी. 

काजल मिटी आंखों में पत्थर जितना वजन. मैं बात करने की जिद छोड़ते हुए बाहर निकल जाती हूं. पेशाब और इंतजार की गंध से गुजरती हुई. 

साझा घर की बाहरी दीवार पर हरे रंग में किसी आर्ट स्टूडियो का विज्ञापन लिखा हुआ. साथ में कॉन्टैक्ट नंबर भी है. अधटूटी दीवार से लेकर अधटूटे इंसानों तक- पूरे घर-भर में शायद यही अकेली चीज हरियाई होगी. 

uttar pradesh hathras allegedly gang rape murder of dalit woman 2020 human interest story

कुछ ही मीटर पर लवकुश का घर है. ये युवक भी बाकी दो- रवि और रामू के साथ पिछले साल छूट चुका. बेगुनाह. लेकिन केवल रस्मी तौर पर ही. लवकुश के घर पर अब ताला पड़ा है. गांव का ही एक शख्स कहता है- वे जा चुके. यहां रहकर भी क्या करेंगे! न तो नया काम मिलेगा, न पुरानी इज्जत. 

(अगली कड़ी में पढ़ें, हाथरस पीड़िता के परिवार की कहानी. चार सालों से सुरक्षा के नाम पर एक किस्म के हाउस अरेस्ट में जी रहा ये परिवार धरती पर लगभग अकेला है. घर पर न किसी का आना, न जाना. तरकारी लेने भी जाएं तो अर्जी देनी होती है. साथ में चार-पांच सुरक्षाकर्मी. बेटी की अस्थियां न्याय के इंतजार में हैं, और परिवार सरकारी वादों के पूरा होने के.)

(इंटरव्यू कोऑर्डिनेशन- राजेश सिंघल, हाथरस)

Live TV

Advertisement
Advertisement