scorecardresearch
 

वाजपेयी सरकार में डिटेंशन सेंटर बनाने का मिला था निर्देश: तरुण गोगोई

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि जब बांग्लादेश की सरकार खुद ही वहां के हिंदू और मुस्लिम अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात कह रही है तो फिर हिंदुओं को यहां की नागरिकता क्यों दी जा रही है?

Advertisement
X
तरुण गोगोई, असम के पूर्व मुख्यमंत्री (फाइल फोटो-पीटीआई)
तरुण गोगोई, असम के पूर्व मुख्यमंत्री (फाइल फोटो-पीटीआई)

Advertisement

  • 1998 में सभी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने का निर्देश मिला था
  • सजा काट चुके विदेशियों को रखने के लिए वाजपेयी सरकार ने दिए थे निर्देश

डिटेंशन सेंटर को लेकर देश भर में चर्चा गर्म है. पहले विवाद का विषय था कि देश में डिटेंशन सेंटर है कि नहीं? फिर विवाद इस बात को लेकर बढ़ा कि इसे पहली बार कौन लेकर आया? असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि 1998 में वाजपेयी सरकार के दौरान सभी राज्यों से डिटेंशन सेंटर बनाने को कहा गया था. जिससे कि विदेशी मुल्क के लोगों को वहां रखा जा सके.

उन्होंने कहा, 'अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने सभी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने का निर्देश जारी किया था. डिटेंशन सेंटर बनाने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा थी कि वैसे विदेशी जिन्होंने जेल में अपनी सजा काट ली है उन्हें सभी राज्यों के सेंटर में रखा जाएगा. इसलिए सभी राज्यों को इस तरह का एक सेंटर बनाने का निर्देश दिया गया था.'

Advertisement

गोगोई ने सवाल पूछते हुए कहा कि कौन सबसे बड़ा झूठा है? उन्होंने कहा, 'जब असम और कर्नाटक में पहले से डिटेंशन सेंटर है और पीएम मोदी ने खुद भी असम के गोलपारा ज़िले में माटिया डिटेंशन सेंटर के निर्माण के लिए 46 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं तो आप ही तय कीजिए कि झूठ कौन बोल रहा है?'   

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने आगे कहा कि जब बांग्लादेश की सरकार खुद ही वहां के हिंदू और मुस्लिम अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात कह रही है तो फिर हिंदुओं को यहां की नागरिकता क्यों दी जा रही है?

‘तरुण गोगोई की दिमागी उपज था NRC’, अमित मालवीय ने शेयर किया पुराना ट्वीट

गोगोई ने कहा, 'बांग्लादेशी अप्रवासियों को अपने घर भेज दीजिए. वहां की सरकार उन्हें वापस लेने को तैयार है. क्या जरूरत है डिटेंशन सेंटर बनाने की या किसी को नागरिकता देने की? उनके मुताबिक वहां पर किसी भी व्यक्ति के साथ धार्मिक आधार पर उत्पीड़न नहीं हो रहा है. इसलिए नागरिकता कानून की कोई आवश्यकता ही नहीं है. अगर आप ऐसा करते हैं तो मामला अपने आप ही शांत हो जाएगा.'

Advertisement
Advertisement