वैलेंटाइन डे, प्यार का दिन, बेशक इसे मनाने में कोई हर्ज नहीं है. फिर जब बात मोहब्बत के दिन की हो तो जश्न बनता है. हां मगर आप कहे कि ये दिन दुनियाभर के आशिकों के नाम लिख गया है तो मैं यहां आपकी बात से इत्तेफाक नहीं रखता हूं. इसकी वजह भी है क्योंकि मेरी वैलेंटाइन कोई नाजुक-सी, बला की खूबसूरत दिखने वाली लड़की नहीं, वो है बेहद मासूम सी दिखने वाली मेरी भांजी प्रिया, जो मेरी दुनिया में इसी दिन आई और यही नहीं उसने इस दिन के असल मायने भी मुझे समझा दिए.
ये बात है 10 साल पहले कि जब मैं कॉलेज के दौरान अपनी खास दोस्त से मिलने 14 फरवरी जाने वाला था. हम दोनों ने इस दिन की कई दिनों से प्लानिंग की थी. लेकिन जब ये दिन आया तो सुबह घर पर फोन की घंटी बजी. हमारी दुनिया में मेरी प्रिया ने पहला कदम रखा था. इस खबर को सुनकर मैं बहुत खुश था, मेरे घर में ये पूरे जश्न का माहौल था. तभी मेरे फोन पर मेरी दोस्त का फोन आया, उसने मिलने को बुलाया था. मैनें उसे प्रिया के आने की खुशखबरी सुनाई और कहा 'हम कल मिलेंगे, आज मेरा यहां होना जरूरी है.' इस बात को सुनते ही फोन कट गया और फिर शाम तक फोन नहीं आया. मैं समझ गया था कि मेरी दोस्त नाराज हो गई है लेकिन सच कहूं तो मेरे पास उसे समझाने का वक्त नहीं था.
कई दिन वो मुझसे नाराज रही और उसने बात नहीं की. मैं भी अपने कामों में मशगूल रहा. फिर कई दिनों बाद हम मिले, मेरी दोस्त को शिकायत थी कि मैं 14 फरवरी उसे सारे काम को पीछे छोड़ मिलने क्यों नहीं आया. मैंने समझाने की कोशिश तो की, मगर फिर बात अधूरी ही खत्म कर दी.
मैं थके हुए कदमों के साथ घर आया, चुपचाप बैठा अपने रिश्ते की उधेड़बुन में लगा था. तभी मेरी भांजी कि हंसी मेरे कानों में पड़ी और मेरे हाथों ने उसे उठा लिया. मेरी उदासी गायब हो गई थी, क्योंकि जिसे मैं छोड़ कर आया वो नहीं जो मेरी हंसी की वजह थी वही मेरी वैलेंटाइन थी. बिना बोले उस मासूम से चेहरे ने वो सब कह दिया जो मैं सोच भी नहीं पाया था. आज भी मैं उस नन्ही-सी परी के साथ अपना वैलेंटाइन मनाता हूं.
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