बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने शुक्रवार को चुनाव आयोग को 'दंतहीन बाघ' करार दिया है. उन्होंने कहा कि निर्धारित समय के भीतर चुनाव खर्च का ब्यौरा नहीं सौंपने पर आयोग ने अब तक किसी भी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है. वरुण ने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार पर काफी रुपए खर्च करती हैं जिसकी वजह से साधारण पृष्ठभूमि के लोगों को चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिल पाता.
वरुण गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बीजेपी गुजरात विधानसभा और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के एक साथ ना कराए जाने को लेकर विपक्ष के हमले झेल रही है. विपक्ष आरोप लगा रहा है कि बीजेपी के 'दबाव' डाले जाने के कारण आयोग ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित नहीं की. कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह चुनाव आयोग पर बेशर्मी के साथ दबाव का इस्तेमाल कर रही है ताकि वह अंतिम समय में लोक-लुभावन वादे कर गुजरात में वोटरों को आकर्षित कर सके.
नलसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में 'भारत में राजनीतिक सुधार' विषय पर एक सेमिनार को संबोधित करते हुए वरुण ने कहा, 'सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है चुनाव आयोग की समस्या, जो वाकई एक दंतहीन बाघ है. संविधान का अनुच्छेद 324 कहता है कि यह (चुनाव आयोग) चुनावों का नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण करता है. लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है ?'
उन्होंने कहा, 'चुनाव खत्म हो जाने के बाद उसके पास मुकदमे दायर करने का अधिकार नहीं है. ऐसा करने के लिए उसे उच्चतम न्यायालय जाना पड़ता है.' उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद ने कहा कि समय पर चुनावी खर्च दाखिल नहीं करने को लेकर आयोग ने कभी किसी राजनीतिक पार्टी को अमान्य घोषित नहीं किया.
वरुण ने कहा, 'यूं तो सारी पार्टियां देर से रिटर्न दाखिल करती हैं, लेकिन समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करने को लेकर सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी (एनपीपी), जो दिवंगत पी ए संगमा की थी, को अमान्य घोषित किया गया और आयोग ने उसकी ओर से खर्च रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उसी दिन अपने फैसले को वापस ले लिया.' उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आयोग को आवंटित बजट 594 करोड़ रुपए था, जबकि देश में 81.4 करोड़ वोटर हैं. इसके उलट, स्वीडन में यह बजट दोगुना है जबकि वहां वोटरों की संख्या महज 70 लाख है .
वरुण ने चुनावी व्यवस्था में धनबल के अत्यधिक प्रभाव को स्वीकार करते हुए कुछ उदाहरण दिए. उन्होंने कहा कि गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए संसद और विधानसभाओं के चुनाव लड़ना लगभग असंभव हो गया है .
राजनीतिक पार्टियों की ओर से चुनाव प्रचार पर बड़ी धनराशि खर्च करने का जिक्र करते हुए बीजेपी नेता ने कहा, 'तकनीकी तौर पर कोई विधायक (उम्मीदवार) 20 से 28 लाख रुपए के बीच खर्च कर सकता है और सांसद (प्रत्याशी) 54 से 70 लाख रुपए खर्च कर सकते हैं. लेकिन आपको नहीं बताया जाता कि राजनीतिक पार्टियां चुनावों पर अकूत धन खर्च करती हैं. राजनीतिक खर्च की यह व्यवस्था सुनिश्चित कर देती है कि मध्यम वर्ग या गरीब तबके का कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सके.' उन्होंने भरोसा जताया कि राजनीतिक पार्टियां धीरे-धीरे पारदर्शिता की तरफ बढ़ेंगी. वरुण ने कहा, 'इसमें पांच साल लग सकते हैं.....10 साल लग सकते हैं....मैं बहुत आशावादी हूं.'