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वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा में नरेंद्र मोदी को 'No Entry'

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में तो एंट्री मिल गई है लेकिन उन्हें लेकर विरोध सिर्फ एनडीए में ही नहीं बल्कि बीजेपी में भी उनकी अगुवाई में काम करने को लेकर मतभेद शुरू हो गया है.

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नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में तो एंट्री मिल गई है लेकिन उन्हें लेकर विरोध सिर्फ एनडीए में ही नहीं बल्कि बीजेपी में भी उनकी अगुवाई में काम करने को लेकर मतभेद शुरू हो गया है. विरोध की वजह से वसुंधरा राजे की चुनावी रथ यात्रा में मोदी का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया.

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बीजेपी के दिल्ली दरबार में तो मोदी की एंट्री हो गई, लेकिन बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले राज्यों में मोदी के लिए नो एंट्री का बोर्ड लग गया. 2014 की चुनावी रणनीति में संघ और बीजेपी ने मोदी के दबदबे के सामने हुक्म बजाना जरूरी समझा, लेकिन बीजेपी के दूसरे क्षत्रपों ने मोदी की सरपरस्ती को नकारने की शुरुआत कर दी.

मोदी को लेकर बीजेपी में गृह युद्ध की शुरुआत राजस्थान से हुई, जहां चुनावी रथ लेकर गुरुवार से राज्य के सभी 200 सीटों पर सुराज संकल्प यात्रा पर निकल रहीं वसुंधरा राजे अपनी रैली में मोदी को बुलाने पर राजी नहीं हुईं.

वसुंधरा की रथ यात्रा के दौरान पहली रैली में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह शामिल होंगे, तो सुषमा स्वराज की मौजूदगी में यात्रा खत्म होगी. यही नहीं दूसरे चरण की रथयात्रा में लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली ही शामिल होंगे.

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बीजेपी की राजस्थान इकाई ने साफ कर दिया कि दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए भले ही पार्टी मोदी को तुरुप का इक्का मान रही हो, लेकिन राजस्थान का राज फिर से हासिल करने के लिए महारानी के हुक्म को ही मानना पड़ेगा.

अब सवाल ये है कि आखिरकार मोदी की राजस्थान में एंट्री को लेकर महारानी को परहेज क्यों है? वसुंधरा मोदी से दूरी बना कर क्यों रखना चाहतीं हैं? वसुंधरा मोदी को रैली में न बुला कर एक तीर से चार निशाना साधने की कवायद में है.

पहला वसुंधरा नहीं चाहतीं कि उनके सियासी शो को मोदी लूट लें, दूसरा गुजरात चुनावों के दौरान वसुंधरा को मोदी ने नहीं बुलाया, तो वसुंधरा ने मोदी को ना कह दिया. तीसरा वसुंधरा गहलोत सरकार के खिलाफ अल्पसंख्यकों की नाराजगी को भुनाना चाहतीं हैं. लिहाजा वो नहीं चाहतीं कि मोदी की वजह से अल्पसंख्यक वोट का ध्रुवीकरण हो. चौथा मोदी से दूरी बना कर वसुंधरा खुद की सेकुलर छवि को मजबूत करने में पीछे नहीं रहना चाहतीं.

हालांकि मोदी को लेकर वसुंधरा से सवाल किया गया तो उन्होंने उसे टालना ही बेहतर समझा. दरअसल राजस्थान के गोपालगढ़ कांड में पुलिस की गोली से 10 अल्पसंख्यकों की मौत हो गई, जिससे गहलोत सरकार को लेकर अल्पसंख्यकों में काफी नाराजगी है.

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वसुंधरा इसी गुस्से को भुनाना चाहती हैं, ताकि उदयपुर के इलाकों में निर्णायक कही जाने वाली 30 विधानसभा सीटों पर अल्पसंख्यकों का वोट वो ले सकें. जाहिर है मोदी के लिए मुस्लिम समुदाय के रुख को लेकर सवाल फिलहाल खत्म होता नहीं दिखता.

बीजेपी का एक धड़ा भले ही मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहा हो, लेकिन दिल्ली की गद्दी पर बैठने से पहले मोदी को अपने घर में भी लड़ाई जीतनी पड़ेगी.

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