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रोहिंग्या ही नहीं गुजरात CM रुपानी भी आए थे बर्मा से भारत

60 के दशक की शुरुआत में बर्मा में राजनीतिक हालात ठीक नहीं थे. 1962 के दौरान म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ. जनरल नी विन ने बड़ी संख्या में रह रहे भारतीयों का वहां से बाहर करने का आदेश दिया.

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बर्मा से भारत आया था विजय रुपानी का परिवार
बर्मा से भारत आया था विजय रुपानी का परिवार

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देशभर में इन दिनों रोहिंग्या मुस्लिमों के मुद्दे पर हंगामा हो रहा है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी नहीं घुसपैठिए हैं और देश की सुरक्षा के लिए खतरा है. इसलिए वह भारत में नहीं आ सकते हैं. लेकिन इससे इतर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी का भी म्यांमार (बर्मा) से नाता है.

अच्छे भविष्य के लिए गुजरात आए

विजय रुपानी का जन्म 2 अगस्त 1956 को बर्मा के रंगून (अब यांगून) में हुआ था. विजय रुपानी की वेबसाइट www.vijayrupani.in के अनुसार, उनका परिवार 1960 में बेहतर जीवन के लिए बर्मा से गुजरात शिफ्ट हो गया था. रुपानी कॉलेज के दिनों से ही एबीवीपी से जुड़ गए थे. 

क्या कुछ और था कारण?

लेकिन इससे अलग विकिपीडीया पर रुपानी की प्रोफाइल को देखें तो वह कहती है कि विजय रुपानी के परिवार का बर्मा छोड़ने का कारण कुछ और ही था. उस दौरान बर्मा में राजनीतिक हलचल चल रही थी, और इसी कारण रुपानी परिवार ने बर्मा छोड़ा. रुपानी 1971 में ही जनसंघ से जुड़ गए थे और इमरजेंसी के दौरान मीसा के तहत 11 महीनों तक जेल में बंद भी रहे थे.

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तख्तापलट के कारण हुआ पलायन

दरअसल, 60 के दशक की शुरुआत में बर्मा में राजनीतिक हालात ठीक नहीं थे. 1962 के दौरान म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ. जनरल नी विन ने बड़ी संख्या में रह रहे भारतीयों का वहां से बाहर करने का आदेश दिया. उस दौरान करीब 3 लाख भारतीय बर्मा छोड़ कर भारत वापस आए थे. इस दौरान बर्मा में बसे कई बिजनेसमैन भारत आए थे. तख्तापलट के दौरान प्राइवेट बिजनेस को सरकार के अधीन किया जा रहा था, जिससे परेशान हो कई बिजनेसमैन ने बर्मा को छोड़ा था.

कड़ा रहा है सरकार का रुख

रोहिंग्या मसले पर केंद्र सरकार का रुख अभी तक काफी कड़ा रहा है. समय-समय पर केंद्रीय मंत्रियों ने रोहिंग्या के भारत में आने का विरोध किया है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को ही कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी नहीं है, वे शरणार्थी के रूप में भारत में नहीं आए हैं. राजनाथ ने कहा, ''केंद्र सरकार को देश की सुरक्षा के अनुसार फैसला लेने का अधिकार है.''

क्या कहता है केंद्र सरकार का हलफनामा?

रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने की योजना पर केंद्र सरकार ने 18 सितंबर को 16 पन्नों का हलफनामा दायर किया था. इस हलफानामे में केंद्र ने कहा कि कुछ रोहिग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संपर्क का पता चला है. ऐसे में ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरा साबित हो सकते हैं.

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केंद्र ने अपने हलफनामे में साथ ही कहा, 'जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात में सक्रिय रोहिंग्या शरणार्थियों के आतंकी कनेक्शन होने की भी खुफिया सूचना मिली है. वहीं कुछ रोहिंग्या हुंडी और हवाला के जरिये पैसों की हेरफेर सहित विभिन्न अवैध व भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए गए.'

क्या कहते हैं आंकड़ें?

गृह मंत्रालय के मुताबिक, वैध तौर पर 14 हजार से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी भारत में रह रहे हैं. जबकि 40 हजार से ज्यादा ऐसे हैं, जो अवैध रूप से शरण लिए हुए हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा के कारण 3,79,00 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम भागकर बांग्लादेश पहुंच चुके हैं. हालांकि, भारत ने बांग्लादेश में मौजूद शरणार्थियों के लिए भी मदद भेजनी शुरू कर दी है.

क्यों म्यांमार से भाग रहे हैं रोहिंग्या?

गौरतलब है कि रोहिंग्या मुस्लिमों पर म्यांमार में अत्याचार हो रहा है. सरकार की ओर से ही उनके घरों को जलाया जा रहा है, जिसकी कड़ी निंदा की जा रही है. म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची ने अपने बयान में कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिम आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं, वह देश के लिए खतरा हैं. म्यांमार सरकार रोहिंग्या पर अपने रुख से वापस नहीं हटेंगी.

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