लोगों के बीच हिंसा, संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन ने करीब 4 हजार साल पहले सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का खात्मा करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी. यह दावा एक नए अध्ययन में किया गया है.
नॉर्थ कैरोलिना स्थित एप्पलचियान स्टेट यूनिवर्सिटी में नृविज्ञान (एन्थ्रोपोलॉजी) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ग्वेन रॉबिन्स शुग ने एक बयान में कहा कि जलवायु, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों, सभी ने शहरीकरण और सभ्यता के खात्मे की प्रक्रिया में भूमिका निभाई, लेकिन इस बारे में बहुत कम ही जानकारी है कि इन बदलावों ने मानव आबादी को किस तरह प्रभावित किया.
शोध-पत्र की प्रमुख लेखक शुग ने कहा, सिंधु घाटी सभ्यता का अंत और मानव आबादी का पुन:संगठित होना लंबे समय से विवादित रहा है. यह शोध-पत्र प्लॉस वन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यूनिवर्सिटी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि शुग और अनुसंधानकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हड़प्पा के तीन कब्रिस्तानों से प्राप्त मानव कंकाल अवशेषों में अभिघात (ट्रॉमा) और संक्रामक बीमारी के सबूत की जांच की. हड़प्पा सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े शहरों में से एक था.
प्रेस को जारी बयान में कहा गया कि उनका विश्लेषण लंबे समय से चले आ रहे इन दावों के विपरीत है कि सिंधु सभ्यता का विकास शांतिपूर्ण, सहयोगात्मक और समतामूलक समाज के रूप में हुआ, जहां कोई सामाजिक भेदभाव, वर्गीकरण नहीं था और आधारभूत संसाधनों तक पहुंच में कोई पक्षपात नहीं था.
विश्लेषण के अनुसार, हड़प्पा में कुछ समुदायों को अन्य के मुकाबले जलवायु परिवर्तन और सामाजिक आर्थिक क्षति का अधिक असर झेलना पड़ा, खासकर सामाजिक रूप से सुविधाहीन या हाशिए पर रहे लोगों को, जोकि हिंसा और बीमारियों के अधिक शिकार बनते हैं.
शुग ने कहा कि पूर्व के अध्ययनों में कहा गया था कि पारिस्थितिजन्य कारक पतन का कारण बने, लेकिन उन सिद्धांतों को साबित करने के लिए कोई संबंधित साक्ष्य नहीं था. पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में मौजूदा तकनीकों में सुधार आया है. उन्होंने कहा, जलवायु परिवर्तन के घटनाक्रमों का मानव समुदायों पर व्यापक असर पड़ता है.
वैज्ञानिक ये अनुमान नहीं लगा सकते कि जलवायु परिवर्तन का असर हमेशा हिंसा और बीमारी जैसा होगा. शुग ने कहा, हालांकि, इस मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि सिंधु शहरों में तेजी से हुई नगरीकरण की प्रक्रिया, और व्यापक सांस्कृतिक संपर्क ने मानव आबादी के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दीं. कुष्ठ और तपेदिक जैसे संक्रामक रोग संभवत: एक संपर्क क्षेत्र में संचरित हो गए, जो मध्य एवं दक्षिण एशिया तक फैल गए.
शुग के अध्ययन से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता के नगरीय चरण के दौरान हड़प्पा में कुष्ठ रोग सामने आया, और समय के साथ यह फैलता गया. तपेदिक जैसी नई बीमारियां भी हड़प्पा सभ्यता के अंत में तथा नगरीकरण के चरण के बाद सामने आईं.
उन्होंने कहा कि उस समय खोपड़ी में चोट जैसे निशान हिंसा की ओर इशारा करते हैं और यह तथ्य काफी महत्वपूर्ण है. शुग ने कहा कि प्रागैतिहासिक दक्षिण एशियाई स्थलों पर आम तौर पर हिंसा के सबूत काफी दुर्लभ हैं. शुग ने कहा कि अध्ययन के परिणाम काफी झकझोर देने वाले हैं, क्योंकि उस समय हिंसा और बीमारी की उच्च दर के चलते मानव आबादी शहरों को छोड़ रही थी. हालांकि, एक और रोचक परिणाम यह है कि शहर के औपचारिक कब्रिस्तानों से निकाले गए लोगों में शवों के परीक्षण में हिंसा और बीमारी की सर्वाधिक दर पाई गई थी. शहर के दक्षिण पूर्व में एक छोटे कब्रिस्तान में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एक छोटे से गड्ढे में दफनाया गया था.
इस सैंपल में हिंसा की दर 50 प्रतिशत थी और इन लोगों में 20 प्रतिशत से अधिक में कुष्ठ संक्रमण के साक्ष्य पाए गए. शुग ने कहा कि सिंधु सभ्यता के परिणाम आधुनिक समाज पर भी लागू हैं. अनुसंधानकर्ताओं ने लिखा, 'दक्षिण एशिया सहित विश्व के अर्धशुष्क क्षेत्रों में मानव आबादी को वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन से विषम प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है.'