राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के एक सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद द्वारा 'समान अवसर प्रदान करने वाले समतावादी समाज' के लिए बताए गए प्रगतिवादी तथा सद्भाव युक्त आदर्शो के लिए जरूरी नए सामाजिक समीकरणों को आत्मसात करने की बात की.
प्रणब मुखर्जी के मुताबिक, ऐसे समय में जब समाज खुद को और न्यायसंगत बनाने के लिए चीजों को पुनर्परिभाषित कर रहा है, स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित मूल्य बहुत प्रासंगिक हो सकते हैं, क्योंकि पुरानी परंपराओं से होकर ही नए रास्ते निकलते हैं.
मुखर्जी ने कहा, 'स्वामी विवेकानंद, मनुष्य के भीतर छिपे ईश्वरत्व को सामने ले आए. स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जिसे सभी गलती से आम आदमी कहते हैं, मैं उसी को ईश्वर कहता हूं. मनुष्य को ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मानने वाले विवेकानंद का विश्वास था कि मानव के अस्तित्व की अवहेलना नहीं की जा सकती.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा, 'धर्म, आत्म परिवर्तन के साथ-साथ समाज परिवर्तन का अमोघ हथियार साबित हो सकता है. विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें बताया था कि मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है. स्वामीजी ने इसे अपने सामाजिक कार्यक्रम का मूल मंत्र बनाया.'
आईसीसीआर के अध्यक्ष कर्ण सिंह ने कहा, 'पिछले 100 वर्षो से सभ्यताओं तथा आस्थाओं के बीच संवाद एवं आंदोलन स्वामी विवेकानंद द्वारा शुरू की गई परम्परा का ही नतीजा है. विवेकानंद ने इसका सूत्रपात शिकागो सम्मेलन के अपने संबोधन से शुरू किया था.'
आईसीसीआर द्वारा प्रस्तुत यह सम्मेलन 9 मार्च को समाप्त होगा. सम्मेलन के समापन सत्र को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा, म्फो टूटू, मौलाना वहिउद्दीन खान तथा कर्ण सिंह संबोधित करेंगे.