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व्यापम: दुनिया का सबसे बड़ा खूनी घोटाला

मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले को उजागर हुए दो साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन सच अभी सामने नहीं आया है. सच से पर्दा उठना एक अंतहीन गाथा बन चला है.

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मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले को उजागर हुए दो साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन सच अभी सामने नहीं आया है. सच से पर्दा उठना एक अंतहीन गाथा बन चला है. मामले में कथित तौर पर 2100 लोग गिरफ्तार हैं, तो वहीं आजतक के एक पत्रकार सहित 48 से ज्यादा लोग काल के गाल में असमय समा गए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश के बाद न्याय की कुछ उम्मीद जगी है.

यह देश का ही नहीं दुनिया का पहला ऐसा घोटाला है, जो न सिर्फ खूनी बन चुका है, बल्कि सबसे बड़ा 'सीरियल किलर' भी बनता जा रहा है. इसमें मौत की गिनती 48 तक पहुंच चुकी है. ये कहां जाकर रुकेगी, कोई बताने वाला नहीं है. आलम ये है कि अब तो बस व्यापम का जिक्र चलते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सांसें घुटने लगती हैं. सीने में जकड़न सा महसूस होने लगता है.

ऐसे शुरू हुआ मौत का सिलसिला
व्यापम से संबंधित मौत के खौफनाक सिलसिले की शुरुआत 21 नवंबर 2009 को हुई, जब पीएमटी घोटाले में बिचौलिए के तौर पर पहचाने गए एक शख्स विकास सिंह ठाकुर की मध्य प्रदेश के बड़वानी में रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई. उसकी वजह बीमारी और दवाओं का रिएक्शन बताई गई. लेकिन देखते ही देखते मौत का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो किसी को समझ ही नहीं आया.

लावारिस हालत में मिलती लाशें

आंकड़ों के मुताबिक, व्यापम घोटाले से जुड़े 11 लोग अलग-अलग सड़क हादसों में, 6 लोग गुमनाम वजहों से, 4 लोग खुदकुशी करने से, 3 जरूरत से ज़्यादा शराब पीने से, 3 बीमारी की वजह से और 2 लोग ब्रेन हैमरेज की वजह से मारे गए हैं. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस घोटाले से जुड़े जितने बिचौलिए हैं, उनमें से ज्यादातर सड़क हादसे में मारे गए हैं. कई मौतों से पहले लोग अचानक गायब हो गए और बाद में उनकी लाश लावारिस हालत में मिली.

आजतक के पत्रकार की मौत
व्यापम घोटाले की रिपोर्टिंग करने गए आजतक के पत्रकार अक्षय सिंह की मध्य प्रदेश के झाबुआ में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. हालांकि, मौत की वजह को लेकर पक्के तौर पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट आधी-अधूरी है और विसरा रिपोर्ट का इंतजार है. दिल्ली के एम्स में उनके विसरा के एक सैंपल की जांच चल रही है. उनके बाद ही सच्चाई का खुलासा हो पाएगा.

आगे पढ़िए ,कैसे 'बरमूडा ट्राइएंगल' बना व्यापम...

इनपुट- एजेंसी और वारदात {mospagebreak}

व्यापम बनाम 'बरमूडा ट्राइएंगल'
पूर्व निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा की किताब 'व्यापमं गेट' में घोटाले का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है. इसमें एसटीएफ जांच पर सवाल खड़े किए गए हैं. किताब में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, तत्कालीन पुलिस महानिदेशक से पूछताछ न होने पर हैरानी जताई गई है. एसटीएफ द्वारा घोटाले के लिए बताए गिरोह में तत्कालीन उच्च शिक्षा राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, मुख्यमंत्री के निजी सचिव प्रेम प्रसाद, सुधीर शर्मा और डॉ. अजय शंकर मेहता का नाम है.

व्यापम उस रहस्यमय 'बरमूडा ट्राइएंगिल' सा बनता जा रहा है, जिसका राज जानने वाला या कोशिश करने वाला ऐसी मौत मरता है जो खुद ही राज बन जाता है. साफ है यह अकेले के बस का खेल नहीं था. गड़बड़झाले में व्यापम के पूरे सिस्टम के शामिल हुए बिना क्या मजाल जो एक भी भर्ती फर्जी हो जाए? लेकिन फर्जीवाड़ा इतना बड़ा होगा, किसी ने नहीं सोचा था. इससे जुड़े लोगों की मौतें रहस्य बनती जा रही हैं.

जेलों में कैद नौजवानों का हाल
भोपाल की प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक डॉ. रूमा भट्टाचार्या ने कहा कि व्यापम घोटाले के सिलसिले में जेलों में कैद नौजवान जेल से बाहर आने के बाद अपराध की दुनिया की ओर मुड़ सकते हैं. पकड़े गए ज्यादातर छात्र किशोर या युवा हैं. इस उम्र में मन पर जल्दी असर होता है, क्योंकि वे मानसिक तौर पर परिपक्व नहीं होते. इस मामले में फिलहाल लगभग 900 नौजवान जेलों में कैद हैं, जिन्होंने सुनहरे भविष्य के सपने संजोए रहे होंगे.  

डॉ. एसआर आजाद का कहना है कि हर मां-बाप बच्चे का भविष्य संवारना चाहते हैं. बच्चे इसके लिए मेहनत करते हैं. लेकिन कई बार अभिभावक गलत कदम उठा लेते हैं. जरूरी था कि इन बच्चों की मानसिक स्थिति समझकर इनकी काउंसलिंग करानी चाहिए थी. उसके बाद कोई कदम उठाया जाता. मासूम बच्चों को जेल में डालकर अच्छा नहीं किया गया है. उनमें हीन भावना से ग्रस्त होने का खतरा बना रहेगा.

आगे जानिए, व्यापम घोटाला से संबंधित संभावित मौतें...{mospagebreak}

1. नम्रता डामोर- (मेडि‍कल कॉलेज, इंदौर)
2. डॉ. डीके साकल्ले- डीन मेडीकल कॉलेज (जबलपुर)
3. शैलेश यादव- (राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे)
4. विजय पटेल- (रीवा)
5. रिंकू उर्फ प्रमोद शर्मा- (मुरैना)
6. देवेन्द्र नागर- (भिंड)
7. आशुतोष सिंह- (झांसी)
8. श्यामवीर सिंह यादव- (ग्वालियर)
9. आनंदसिंह यादव- (यूपी)
10. ज्ञानसिंह जाटव- (ग्वालियर)
11. अमित जाटव- (मुरैना)
12. अनुज उइके- (मंडला)
13. पशुपतिनाथ जायसवाल- (सिंगरौली)
14. राघवेन्द्र सिंह- (सिंगरौली)
15. आनंद सिंह- (इलाहाबाद)
16. विकास पांडे- (इलाहाबाद)
17. दीपक जैन- (शिवपुरी)
18. अंशुल साचान- (होशंगाबाद)
19. ज्ञान सिंह- (भिण्ड)
20. विकास सिंह- (झाबुआ)
21. अनुज पांडे- (ग्वालियर)
22. अरविंद शाक्या- (ग्वालियर)
23. कुलदीप मरावी- (मुरैना)
24. अनंतराम टैगोर- (मुरैना)
25. मनीष समीधिया- (झांसी)
26. दिनेश जाटव- (मुरैना)
27. ज्ञान सिंह- (सागर)
28. आनंद कुमार सिंह- (मुरैना)
29. बृजेश राजपूत- (मुरैना)
30. ललित कुमार- (मुरैना)
31. नरेन्द्र तोमर- (मुरैना)
32. डॉ. राजेन्द्र आर्य- (ग्वालियर)
33. रामेन्द्र सिंह भदौरिया- (रतलाम)
34. तरूण मछार- (रतलाम)
35. आशुतोष तिवारी- (ग्वालियर)
36. ज्ञान सिंह- (ग्वालियर)
37. विकास ठाकुर- (बड़वानी)
38. आदित्य चैधरी- (सागर)
39. रवींद्र प्रताप सिंह- (सिंगरौली)
40. प्रेमलता पांडे- (रीवा)
41. बंटी सिकरवार- (ग्वालियर)
42. दीपक वर्मा- (सिगरौली)
43. ललित कुमार गुलारिया- (ग्वालियर)
44. नरेन्द्र राजपूत- (महौबा)
45. नरेन्द्र सिंह राजपूत- (झांसी)
46. अमित सगर- (मध्य प्रदेश)
47 पत्रकार अक्षय सिंह- (दिल्ली)
48. डॉ. अरुण शर्मा- (जबलपुर)
49. कॉन्स्टेबल रमाकांत पांडेय- ओरछा

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