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अकेले ओवैसी के पास लगभग 3 हजार करोड़ की संपत्ति, वक्फ में बदलाव जरूरी: जावेद अहमद

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के पास वक्फ की 3 हजार करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी है. उनके अलावा भी बहुत से लीडर और मजहबी संस्थाएं हैं, जिन्होंने वक्फ की संपत्ति लीज पर ले रखी है. मामूली किराये के साथ ये प्रॉपर्टी सालों से उनके पास है. इसका फायदा जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा. वक्फ एक्ट में संशोधन हुआ तो काफी कुछ सामने आएगा.

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वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद ने कई मुद्दों पर बात की.
वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद ने कई मुद्दों पर बात की.

संसद में जल्द ही वक्फ एक्ट संशोधन बिल पेश हो सकता है. असदुद्दीन ओवैसी समेत कई मुस्लिम लीडर इस बदलाव को धार्मिक आजादी से छेड़छाड़ बता रहे हैं. इस बीच वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद ने aajtak.in के साथ वक्फ से जुड़े कई पहलुओं पर बात की. 
 
सवाल-10 साल पहले वक्फ में बदलाव हुआ था, क्या फिर बदलाव की जरूरत है?

जवाब- हां, अमेंडमेंट सरकार की रेगुलर प्रक्रिया का हिस्सा है. बदलाव उस दौर की जरूरत के मुताबिक होते हैं. जैसे साल 2013 में जो भावना थी, संशोधन उसे देखते हुए हुए. लेकिन सुधार की गुंजाइश रह गई थी. इसलिए अब दोबारा सुधार की बात उठी. मिसाल के तौर पर वक्फ के पास बेजा कब्जा हटाने की पावर नहीं. वे कह तो सकता है लेकिन डीएम उसे मानने को बाध्य नहीं. इस वजह से वक्फ की जमीन पर अतिक्रमण हो जाता है. 

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सवाल- कहा तो ये जाता है कि वक्फ ही लोगों की प्रॉपर्टी कब्जा लेता है. जैसे दक्षिण का गांव या हजारों साल पुराने मंदिर. 

जवाब- देखिए. ये सब एक सिस्टम है. सिस्टम में गलतियां रह जाती हैं. अक्सर एक मछली तालाब को गंदा करती है, लेकिन आरोप सबपर आ जाता है अगर कोई ऐसे उलजुलूल दावे कर दे तो इसका मतलब ये नहीं कि पूरा बोर्ड ही गलत है. 

सवाल- वक्फ क्लेम कर दे तो प्रॉपर्टी के कच्चे कागजों वाला सच्चा मालिक भी पीछे रह जाता है. वन्स ए वक्फ...ऑल्वेज वक्फ भी कहा जाता रहा. इसका क्या मतलब है.

जवाब- सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में ये बात कही थी. वक्फ उस संपत्ति को कहते हैं, जो इस्लाम को मानने वाले दान करते हैं. वक्फ पूरे होशोहवास में अल्लाह के नाम पर होता है. एक बार अल्लाह के नाम पर कोई दौलत की गई तो फिर उसका रेफरेंस नहीं बदल सकता. इसलिए ही एक बार वक्फ...हमेशा वक्फ कहा जाता है. लेकिन गलत दावा करके संपत्ति हथियाने जैसा नैरेटिव गलत है.

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सर्वे होता है, जिसमें सरकारी अधिकारी भी इनवॉल्व होते हैं. फिर गैजेट निकलता है. अगर 6 महीने से लेकर सालभर के भीतर कोई दूसरा दावेदार आ जाए तो इसे बदला भी जा सकता है. वक्फ तो अपनी प्रॉपर्टी का सर्वे हर 10 साल में करता है. राज्य सरकारों के पास अधिकार है. वे इसे ठीक से नहीं देखतीं. 

waqf welfare forum javed ahmed amid waqf act proposed amendment bill and aimim asaduddin owaisi criticism

सवाल- वक्फ में अमेंडमेंट को लेकर कहा जा रहा है कि ये उसकी ताकत को कम करने की कोशिश है! ऐसा क्यों. 

जवाब- सरकार की मंशा ठीक लगती है. वो जनहित में काम करेगी. वक्फ की प्रॉपर्टी का भी अगर वैरिफिकेशन हो तो बहुत सी छूटी हुई संपत्ति लौटेंगी. लेकिन ये सब तब होगा, जब मंशा सही रहे. बिल तो सही है ही. सरकार किसान कानून भी लाई थी. एनआरसी भी. ये सही थे लेकिन सरकार उसे सही ढंग से नहीं रख सकी.

सवाल- मंशा से आपका क्या मतलब है?

जवाब- वक्फ की संपत्ति का वैरिफिकेशन रेवेन्यू विभाग करेगा. यहां पर एक समस्या है. किसी और के मालिकाना हक की जांच कोई दूसरा करेगा. रेवेन्यू डिपार्टमेंट वैसे तो बाकी विभागों की संपत्ति की भी कीपिंग करता है, लेकिन वो ओनर नहीं होता उसका. पड़ताल करते हुए अगर सरकार की मंशा कुछ अलग हो गई तो रेवेन्यू डिपार्टमेंट जितना कहेगा, उतनी ही वक्फ की प्रॉपर्टी रहेगी. जैसे दिल्ली में फिलहाल 123 विवादित संपत्तियां हैं. सरकार और वक्फ के बीच खींचतान है. राजस्व इसका सर्वे करेगा. नीयत सही रहे तो बात बन जाएगी.

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सवाल- वक्फ के पास इतनी दौलत आई कहां से?

जवाब- हर मजहब में दान की व्यवस्था है. वक्फ में जमीनें ही नहीं, बाग, तालाब, मकान, कैश सबकुछ दिया जाता है. इससे कम्युनिटी के वेयफेयर के लिए स्कूल, कॉलेज, इमामबाड़ा, सराय, मदरसे, मस्जिदें बनाई जाती हैं. अंग्रेजों के दौर में मुस्लिम जमींदार काफी थे. वे दान करते रहे. इसका पूरा लेखाजोखा रहता है. सबकुछ नोटराइज होता है.

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सवाल- ओवैसी जैसे नेता लगातार बिल के खिलाफ बोल रहे हैं. आप कह रहे हैं कि बिल ठीक है. इतना विरोधाभास क्यों?

जवाब- तेलंगाना में 3 हजार करोड़ या इससे कुछ ज्यादा की प्रॉपर्टी पर ओवैसी का काम हो रहा है. ये प्रॉपर्टी वक्फ की है. एक्ट कहता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्फ की दौलत लीज पर नहीं ली जा सकती. लेकिन इसके फॉलो नहीं किया जा रहा. साथ ही बदले में वक्फ को बहुत नॉमिनल किराया मिलता है, जबकि नियम से ये रेंट बाजार के हिसाब का होना चाहिए.

ऐसे कई मजहबी नेता है जो वक्फ की प्रॉपर्टी को सालों से लीज पर लिए हुए हैं. दिल्ली में जमात ए उलेमा हिंद के पास काफी संपत्ति है, जो वक्फ की है. लेकिन इसका फायदा न बोर्ड को हो रहा है, न ही वंचित मुस्लिमों को. आईटीओ मस्जिद अब्दुल नबी के अलावा देश के कई राज्यों में इसके पास संपत्ति का एकाधिकार है. इसी तरह से महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष काजी समीर ने वक्फ की 275 एकड़ पर अतिक्रमण कर रखा है. ऐसे दो सौ नेता और संस्थान होंगे. अगर बिल आ गया तो पारदर्शिता आएगी. यही वजह हो सकती है. 
 
सवाल-कई मुस्लिम देशों में भी वक्फ नहीं है...

जवाब- जहां इस्लामिक कानून है, वहां अलग से कोई वक्फ कानून नहीं होता लेकिन वो काम फंक्शनल है. आज से नहीं, 1440 साल पहले ये पद्धति शुरू हुई. हिंदुस्तान में हर धर्म की चैरिटी होती है, उसी तरह इस्लाम के लिए भी वक्फ है. इस्लामिक कानून से अलग डेमोक्रेटिक देशों में किसी न किसी और नाम से ये चैरिटी होती है. अल्लाह के नाम पर दान हर जगह होता है. 

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सवाल- अल्लाह के नाम पर दान में भी दो खांचे दिखते हैं, जैसे शिया और सुन्नी के अलग बोर्ड. ऐसा क्यों है?

जवाब- जहां भी शिया प्रॉपर्टी की संख्या 10% से ज्यादा हो जाए, वहां शिया वक्फ अलग कर दिया जाता है ताकि मेंटेनेंस में आसानी हो. देश में इसी हिसाब से अलग बोर्ड्स हैं, जैसे बिहार, यूपी और जम्मू-कश्मीर में. लेकिन यहां एक दिक्कत भी दिखती है. तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा शिया संपत्ति है लेकिन वहां उनके लिए अलग बंदोबस्त नहीं. ये सवाल वहां के लीडरों से पूछा जाए तो काफी कुछ सामने आएगा.

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