नरेंद्र मोदी सरकार देश के सवर्ण समुदायों के गरीब सदस्यों के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा अलग से रखने के लिए संसद में विधेयक लाई. 2019 आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने ये कदम उठाया. बता दें कि बीते महीने ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव नतीजों में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों मात खानी पड़ी.
आर्थिक तौर पर सवर्णों के लिए आरक्षण को लेकर मोदी सरकार के फैसले की टाइमिंग पर और सरकार की मंशा को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है. क्या सरकार वाकई गरीबों को नौकरियां देने के लिए गंभीर है? क्या सरकार ने मौजूदा सरकारी रिक्तियों को भरने के लिए वाकई पर्याप्त काम किया?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए इंडिया टुडे ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत भारतीय रेलवे को याचिका भेजी. 14 लाख कर्मचारियों वाला रेलवे भारत का सबसे बड़ा नियोक्ता है. विश्व में रेलवे का सबसे बड़े नियोक्ताओं में आठवां नंबर है.
हमने जानना चाहा कि बीते 10 साल में रेलवे में सालाना तौर पर कितने लोगों को नौकरियां मिलीं और कितने लोग रिटायर हुए? हर साल रिटायर होने वाले लोगों की संख्या उनसे ज़्यादा है जो कर्मचारी के तौर पर रेलवे से नए जुड़ रहे हैं. नतीजे बताते हैं कि 2008 से लेकर 2018 तक, एक भी साल ऐसा नहीं रहा जिसमें रिटायर होने वाले कर्मचारियों की तुलना में अधिक लोगों को नौकरियां मिलीं. यही वजह है कि रेलवे में रिक्तियों की संख्या बढ़कर करीब 3 लाख तक पहुंच गई.
2016-17 में रेलवे कर्मचारियों की कुल संख्या 13,08,323 थी. इससे आठ साल पहले 2008-09 में रेलवे कर्मचारियों की कुल संख्या 13,86,011 थी. इसका अर्थ है कि आठ साल में कर्मचारियों की संख्या 77,688 घट गई. रेलवे के मुताबिक 1 सितंबर 2018 को ग्रुप C और तत्कालीन ग्रुप D की जोनल रेलवेज़ में 2,66,790 (प्रोविजनल) रिक्तियां थीं. इनमें ग्रुप A और ग्रुप B सेवाएं शामिल नहीं थीं. लेकिन अब जब चुनाव नजदीक आ गए हैं तो सरकार अत्यधिक सक्रियता दिखा रही है. बीते साल के आखिर में रेलवे ने ग्रुप C,D के लिए 1.2 लाख रिक्तियों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की. ये प्रक्रिया इस साल खत्म होगी. लेकिन ये आंकड़ा अब भी रेलवे में कुल रिक्तियों का आधा ही है.