पश्चिम बंगाल के एडवोकेट जनरल जयंत मित्रा ने ममता बनर्जी सरकार से मतभेदों के चलते मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. सूत्रों के मुताबिक मित्रा और सरकार के बीच मतभेदों के लंबित चले आने की वजह से ऐसी नौबत आई. मित्रा ने अपना इस्तीफा राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को भेजने के बाद कहा कि मैं पूरा जीवन एडवोकेट जनरल नहीं बने रह सकता, इसलिए मैंने सोचा ये सही समय है.
मित्रा ने कहा कि जब दो लोग साथ काम करते हैं तो मतभेद भी होते हैं. लेकिन मैंने महसूस किया कि ये मामला अब खत्म होना चाहिए. मैंने सोचा कि अब चीजों को खींचा नहीं जाना चाहिए. जहां तक राय अलग होने की बात है तो इसे जैसा है वैसे ही रहने देना चाहिए. मैं हट गया हूं इसलिए सरकार जैसा है वैसे इसे आगे बढ़ा सकती है .
बीते साल जून में मित्रा ने इस्तीफा दिया था लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें दोबारा एडवोकेट जनरल नियुक्त कर दिया था. मित्रा को पहली बार ये जिम्मेदारी 2014 में सौंपी गई थी. इससे पहले ममता बनर्जी प्रशासन को इस पद के लिए कई दिग्गज कानूनविदों को मनाना मुश्किल हो रहा था.
मित्रा के पहले बिमल चटर्जी इस पद पर थे जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से एडवोकेट जनरल के पद से इस्तीफा दिया था. लेकिन तब कानूनी गलियारों में ऐसी चर्चा सुनने को मिली थी कि बिमल चटर्जी भी राज्य प्रशासन से पटरी नहीं बिठा रहे थे, इसलिए उन्होंने भी इस्तीफा दिया था.
सरकार के फैसलों पर कानूनी जांच
ममता बनर्जी सरकार ने जब से पश्चिम बंगाल में सत्ता की कमान संभाली है तब से उसे कानूनी मामलों में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से कई मौकों पर राज्य सरकार की खिचाई की जा चुकी है. सिंगूर जमीन बिल, पार्क स्ट्रीट, कामधुनि रेप केस, इमामों को वजीफा देने जैसे कदमों को राज्य में अदालतों की कानूनी जांच से गुजरना पड़ा है.