बीजेपी से मुकाबले के लिए क्या पश्चिम बंगाल में दो धुर विरोधियों टीएमसी और लेफ्ट हो जाएंगे? यह सवाल इसलिए उठा रहा है, क्योंकि 8 और 9 जनवरी को देश के विभिन्न ट्रेड यूनियनों ने केंद्र की BJP सरकार के खिलाफ बंद का आह्वान किया है. राज्य में इसे पूरी तरह से सफल बनाने के लिए लेफ्ट यूनियनों ने टीएमसी से भी साथ देने आह्वान किया है. वाम मोर्चा इस बंद को सफल बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है. इसी वजह से उसे टीएमसी से भी हाथ मिलाने से कोई परहेज नहीं दिख रहा.
लेफ्ट यूनियनों ने तृणमूल कांग्रेस को एक लेटर लिखकर इस बंद के लिए समर्थन मांगा है, ताकि केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ इसे बड़ी सफलता मिल सके. लेकिन बंद का समर्थन करने के इस आह्वान से टीएमसी दुविधा में आ गई है, क्योंकि साल 2011 में सत्ता में आने के बाद से ही वह इस तरह की बंद का विरोध करती रही है. लेफ्ट ने रैली आयोजित करने के लिए भी राज्य सरकार से इजाजत मांगी है.
इस बारे में सीपीएम नेता शतरूप घोष ने आजतक से कहा, 'मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद को बीजेपी और केंद्र सरकार के खिलाफ एक योद्धा की तरह दिखाती हैं और यदि वह इस बार रैली नहीं करने देती हैं तो यह लगेगा कि वह कामगारों और आम आदमी को समर्थन देने वाले लोगों का सहयोग नहीं कर रहीं.'
शतरूप ने कहा, 'यह हड़ताल बीजेपी के ट्रेड यूनियन को छोड़कर देश के सभी ट्रेड यूनियन ने 8 और 9 को आयोजित किया है. यह हड़ताल मुख्य रूप से केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ है. इसलिए हमने ममता बनर्जी को लिखा है.'
हालांकि, टीएमसी नेता इसके पक्ष में नहीं दिख रहे. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थो चैटर्जी ने कहा, 'मैं इस हड़ताल का समर्थन क्यों करूं? घर बैठे रहकर एक पार्टी हड़ताल की राजनीति करती है, तो दूसरे ने दंगे भड़काने की राजनीति शुरू की है. कोई भी बंगाल का बेहतर भविष्य नहीं चाहता. वे यदि ऐसा चाहते तो हड़ताल का आह्वान नहीं करते. जनता बहुत हड़ताल देख चुकी है. अब विकास का समय है. हम विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन हम राज्य की अर्थव्यवस्था को दो दिन तक बंधक नहीं बना सकते.'
हालांकि टीएमसी ने आधिकारिक तौर पर अभी इस मामले में चुप्पी साध रखी है और पार्टी से आजतक के सवालों का कोई जवाब नहीं मिला है.