पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन कर जम्मू कश्मीर पहुंचे शरणार्थियों के लिए 2000 करोड़ रुपये के पैकेज के बाद अब इस मामले में एक और विवाद उठ खड़ा हुआ है. इन शरणार्थियों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट यानि मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के खिलाफ अलगावादियों ने प्रदर्शन का ऐलान किया है.
वहीं अलगावादियों के साथ-साथ राज्य के कई विपक्षी दल भी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार का यह कदम ना सिर्फ इन शरणार्थियों को कश्मीर में बसाने की कोशिश है, बल्कि इससे उन्हें राज्य की स्थाई नागरिकता दे दी जाएगी.
राज्य सरकार ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट की खबर को गलत बताया
इन आरापों के बाद सरकार ने साफ किया कि इन शरणार्थियों को डोमिसाइल नहीं, बल्कि केवल पहचान पत्र दिए गए हैं, ताकि 1947 के बाद जम्मू कश्मीर आए इन पाकिस्तानी शरणार्थियों को नौकरियां मिलने में आसानी हो. राज्य की महबूबा सरकार की ओर से जारी बयान में डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने की खबरों को गलत बताया है. राज्य सरकार के प्रवक्ता एवं शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने बयान में कहा, 'ऐसा लग रहा है कि जान-बूझकर एक मुहिम चलाई जा रही है, जिसका मकसद राज्य सरकार की छवि और राज्य के हालात को बिगाड़ना है.'
हालांकि राज्य सरकार में पीडीपी की सहयोगी पार्टी बीजेपी चाहती है कि इन शरणार्थियों को नागरिकता मिले. वहीं जम्मू कश्मीर बीजेपी के अध्यक्ष सत शर्मा कहते हैं, आज सवाल पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने का नहीं, बल्कि उनकी जीविका का है. बीजेपी-पीडीपी की गठबंधन सरकार के एजेंडा के अनुसार केंद्र ने इनके लिए कुछ नौकरियां आवंटित की है.'
वहीं केंद्रीय राज्यमंत्री जीतेंद्र सिंह कहते हैं, 'इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं, पश्चिम पाकिस्तान के इन शरणार्थियों के प्रति राष्ट्र का कर्तव्य है कि उन्हें सम्मानजनक जीविका मुहैया कराई जाए.' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अलगाववादी राज्य में तनाव भड़काने के लिए बस इसका बहाना बना रहे हैं.
गौरतलब है कि 1947 में बंटवारे के समय इन शरणार्थियों ने जम्मू आकर पनाह ली थी. आज इनकी संख्या तकरीबन 80 हजार के आसपास है. इन लोगों को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं है और उन्हें यहां मतदान का अधिकार नहीं मिला है.