देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की बागडोर शुक्रवार को अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री के हाथों में देने जा रहे रतन टाटा उनके लिए सिर्फ 100 अरब डॉलर का विशाल कारोबारी साम्राज्य ही नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि वह विरासत भी छोड़ रहे हैं, जिसके कारण कारोबारी दुनिया में उनकी विशेष पहचान है.
1971 में रतन टाटा को राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड (नेल्को) का डाईरेक्टर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया, एक कंपनी जो कि सख्त वित्तीय कठिनाई की स्थिति में थी. रतन ने सुझाव दिया कि कम्पनी को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के बजाय उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास में निवेश करना चाहिए जेआरडी नेल्को के ऐतिहासिक वित्तीय प्रदर्शन की वजह से अनिच्छुक थे, क्योंकि इसने पहले कभी नियमित रूप से लाभांश का भुगतान नहीं किया था.
इसके अलावा, जब रतन टाटा ने कार्य भार संभाला, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स नेल्को की बाज़ार में हिस्सेदारी 2% थी, और घाटा बिक्री का 40% था. फिर भी, जेआरडी ने रतन के सुझाव का अनुसरण किया.
1972 से 1975 तक, अंततः नेल्को ने अपनी बाज़ार में हिस्सेदारी 20% तक बढ़ा ली और अपना घाटा भी पूरा कर लिया. लेकिन 1975 में, भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपात स्थिति घोषित कर दी, जिसकी वजह से आर्थिक मंदी आ गई.
इसके बाद 1977 में यूनियन की समस्यायें हुईं, इसलिए मांग के बढ़ जाने पर भी उत्पादन में सुधार नहीं हो पाया. अंततः, टाटा ने यूनियन की हड़ताल का सामना किया, सात माह के लिए तालाबंदी कर दी गई. रतन टाटा ने हमेशा नेल्को की मौलिक दृढ़ता में विशवास रखा, लेकिन उद्यम आगे और न रह सका.
वर्ष 1981 में, रतन टाटा इंडस्ट्रीज और समूह की अन्य होल्डिंग कंपनियों के अध्यक्ष बनाए गए, जहां वे समूह के कार्यनीतिक विचार समूह को रूपांतरित करने के लिए उत्तरदायी तथा उच्च प्रौद्योगिकी व्यापारों में नए उद्यमों के प्रवर्तक थे.
1991 में उन्होंने जेआरडी से ग्रुप चेयर मेन का कार्य भार संभाला. टाटा ने पुराने गार्डों को बहार निकाल दिया और युवा प्रबंधकों को जिम्मेदारियां दी गईं. तब से लेकर, उन्होंने, टाटा ग्रुप के आकार को ही बदल दिया है, जो आज भारतीय शेयर बाजार में किसी भी अन्य व्यापारिक उद्यम से अधिक बाजार पूंजी रखता है.
रतन के मार्गदर्शन में, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेस सार्वजनिक निगम बनी और टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई. 1998 में टाटा मोटर्स ने उनके संकल्पित टाटा इंडिका को बाजार में उतारा.
31 जनवरी 2007 को, रतन टाटा की अध्यक्षता में, टाटा संस ने कोरस समूह को सफलतापूर्वक अधिग्रहित किया, जो एक एंग्लो-डच एल्यूमीनियम और इस्पात निर्माता है. इस अधिग्रहण के साथ रतन टाटा भारतीय व्यापार जगत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गये. इस विलय के फलस्वरुप दुनिया को पांचवां सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक संस्थान मिला.
रतन टाटा का सपना था कि 1 लाख रुपये की लागत की कार बनायी जाए. नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो में 10 जनवरी, 2008 को इस कार का उद्धाटन कर के उन्होंने अपने सपने को पूर्ण किया. टाटा नैनो के तीन मॉडलों की घोषणा की गई, और रतन टाटा ने सिर्फ़ 1 लाख रूपये की कीमत की कार बाजार को देने का वादा पूरा किया, साथ ही इस कीमत पर कार उपल्बध कराने के अपने वादे का हवाला देते हुये कहा कि 'वादा एक वादा है'.
26 मार्च 2008 को रतन टाटा के अधीन टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से जगुआर और लैंड रोवर को खरीद लिया. ब्रिटिश विलासिता की प्रतीक, जगुआर और लैंड रोवर 1.15 अरब पाउंड में खरीदी गई.
भारत के 50वें गणतंत्र दिवस समारोह पर 26 जनवरी 2000, रतन टाटा को तीसरे नागरिक अलंकरण पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें 26 जनवरी 2008 भारत के दुसरे सर्वोच्च नागरिक अलंकरण पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. वे नैसकॉम ग्लोबल लीडरशिप पुरस्कार- 2008 प्राप्त करने वालों में से एक थे. ये पुरस्कार उन्हें 14 फरवरी 2008 को मुम्बई में एक समारोह में दिया गया. रतन टाटा ने 2007 में टाटा परिवार की ओर से परोपकार का कारनैगी पदक प्राप्त किया.
रतन टाटा को हाल ही में लन्दन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स से मानद डॉक्टरेट की उपाधि हासिल हुई, और नवम्बर 2007 में फॉर्च्यून पत्रिका ने उन्हें व्यापर क्षेत्र के 25 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया.
मई 2008 में टाटा को टाइम पत्रिका की 2008 की विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया टाटा की अपनी छोटी 1 लाख रुपये की कार, 'नैनो' के लिए सराहना की गई. उन महत्तवपूर्ण व्यक्तियों में से एक जिसने अपने वादे का पालन किया.