लगातार तीसरी बार गुजरात का 'सरदार' बनकर नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह सिर्फ बातों में ही नहीं, वोट हासिल करने के मामले में भी अपने प्रतिद्वंदियों से कहीं आगे हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को लगभग दो तिहाई सीट पर जीत दिलाकर मोदी ज्योति बसु, शीला दीक्षित और तरुण गोगई जैसे मुख्यमंत्रियों के लीग में शामिल हो गए हैं जिन्होंने 3 या ज्यादा बार अपने-अपने राज्य की कमान संभाली.
मोदी की इस जीत ने गुजरात से ज्यादा बीजेपी और 2014 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय सत्ता के राजनीतिक समीकरण बदल डाले हैं.
चुनाव से पहले ऐसे माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को अपनी दावेदारी पेश करने के लिए बडी़ जीत की दरकार होगी. और अगर ऐसा होता है तो पार्टी के अंदर भी उन्हें पार्टी का चेहरा बनाने की मांगे तेज हो जाएंगी. जिसके संकेत अभी से ही मिलने लगे हैं.
आखिर क्या हैं नरेंद्र मोदी की इस जीत के मायने
1. पार्टी के अंदर बढ़ेगा रुतबा
गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर चौथी पारी शुरू करने वाले नरेंद्र मोदी की पार्टी के अंदर पैठ पहले से मजबूत रही है. हालांकि कई मौके ऐसे भी आए जब उनके खिलाफ आवाज उठी. पर इस जीत ने उनके रुतबे को एक नया आयाम दे दिया है. या फिर यूं कहे पार्टी के अंदर मोदी की मांग को टाल पाना पहले की तुलना में और भी ज्यादा मुश्किल हो जाएगा.
2. पीएम पद की दावेदारी और मजबूत
20 दिसंबर की सुबह जैसे-जैसे गुजरात के नतीजे आने लगे कई भाजपा नेताओं ने इशारे ही इशारे में 2014 का लोकसभा चुनाव मोदी के नेतृत्व में लड़ने की बात कही. हालांकि पार्टी चुनाव से पहले उन्हें ही अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करेगी इस पर रुख अभी साफ नहीं है.
3. बीजेपी अध्यक्ष पद के चुनाव पर पड़ेगा असर
बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष नितिन गडकरी का कार्यकाल दिसंबर माह के अंत तक खत्म हो जाएगा. सियासी उठापटक टालने के मद्देनजर पार्टी ने नए अध्यक्ष के चुनाव को महीने भर के लिए टाल दिया है.नितिन गडकरी को एक बार फिर बीजेपी की कमान मिलेगी, इसे लेकर स्थिति और भी जटिल हो गई है. ज्ञात हो कि हाल के दिनों में गडकरी और मोदी के संबंध पहले जितने मधुर नहीं रहे हैं. हालांकि खबरें ऐसी भी हैं कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी को अध्यक्ष बनाकर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच एक उत्साह का संचार हो सके. वहीं एनडीए गठबंधन भी मजबूत बना रहे.
4. जदयू और बीजेपी के रिश्ते हो सकते हैं प्रभावित
बीजेपी के सबसे पुराने साथियों में से एक, जनता दल (यूनाइटेड) ने नरेंद्र मोदी की बढ़ती महत्वाकांक्षा को लेकर कई बार अपनी नाराजगी जताई है. जदयू मानती है कि अगर वह नरेंद्र मोदी का साथ देती है तो उसे इसका खामियाजा बिहार चुनाव में भुगतना पड़ सकता है. जहां उसे अल्पसंख्यकों मतदाताओं का समर्थन प्राप्त है. अगर बीजेपी मोदी को 2014 के चुनाव में अपना चेहरा बनाती है. ऐसे में भूचाल एनडीए के साथ बिहार की सियासत में भी आएगा. जिसके नतीजे दूरगामी हो सकते हैं.
5. बदलेगी नरेंद्र मोदी की छवि?
खबरें ऐसी भी हैं कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार ज्यादा अल्पसंख्यक मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी और भाजपा को वोट दिया है. नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक इन आंकड़ों का इस्तेमाल मोदी की छवि सुधारने में कर सकते हैं. हालांकि इसका गुजरात के बाहर रह रहे अल्पसंख्यकों पर क्या होगा इसके बारे में कह पाना मुश्किल है.