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डिटेंशन सेंटर क्या, कब, कहां और क्यों? जानें-हर सवाल का जवाब

द फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के सेक्शन 3(2)(सी) के तहत केंद्र सरकार, भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को उनके देश भेजने का अधिकार रखता है. असम में साल 2012 में तीन जेलों के अंदर ही डिटेंशन सेंटर बनाया गया था. ये डिटेंशन सेंटर गोलपाड़ा, कोकराझार और सिलचर के ज़िला जेलों के अंदर बनाया गया था.

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असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)
असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)

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  • पासपोर्ट एक्ट के मुताबिक वैध पासपोर्ट के बिना घुसे लोगों को निकाला जा सकता है
  • द फॉरेनर्स एक्ट के तहत भारत सरकार विदेशी नागरिक को एक जगह रोक सकती है

नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA, नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी NPR और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी NRC को लेकर देशभर में मचे बवाल के बीच हर किसी की जुबान पर एक नया शब्द चढ़ा हुआ है और वो है डिटेंशन सेंटर.

विपक्ष जहां एनआरसी, सीएए और एनपीआर के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज करने के लिए लोगों को डिटेंशन सेंटर का डर दिखा रहा है, वहीं सत्ता पक्ष डिटेंशन सेंटर को कांग्रेस सरकार की देन और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक बता रहा है. डिटेंशन सेंटर को लेकर उठ रहे हर सवाल का जवाब यहां दिया जा रहा है.

सवालः क्या है डिटेंशन सेंटर?

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जवाबः किसी भी देश में अवैध अप्रवासियों (दूसरे देश से आए नागरिक) को रखने के लिए जो जगह बनाई जाती है उसे डिटेंशन सेंटर कहते हैं. इसमें कोई व्यक्ति तभी तक रहता है जबतक कि वह अपनी नागरिकता साबित नहीं कर दे. यदि कोई व्यक्ति ट्रिब्यूनल/अदालत द्वारा विदेशी घोषित हो जाता है तो उसे अपने वतन वापसी तक इसी सेंटर में रखा जाता है.

डिटेंशन सेंटर का मकसद द फॉरेनर्स एक्ट, पासपोर्ट एक्ट का  उल्लंघन करने वाले विदेशी लोगों को कुछ समय के लिए डिटेंशन सेंटर में रखना है, जब तक कि उनका प्रत्यर्पण न हो जाये.

यानी कि वीजा अवधि से अधिक समय तक ठहरने वालों, फर्जी पासपोर्ट के जरिए घुसने वालों पर कानून के तहत कार्रवाई और प्रत्यर्पण से पहले उन्हें यहीं रखा जाता है.

द फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के सेक्शन 3(2)(सी) के तहत केंद्र सरकार, भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को उनके देश भेजने का अधिकार रखती है.

1920 के पासपोर्ट एक्ट के मुताबिक भारत सरकार किसी भी ऐसे व्यक्ति को देश से सीधे निकाल सकती है जो वैध पासपोर्ट या फिर वैध दस्तावेज के बिना देश में घुसा. विदेशी नागरिकों के मामलों में  भारत सरकार को ये शक्ति संविधान के अनुच्छेद 258(1) और अनुच्छेद 239 के तहत मिली हुई है, जिसमें वो विदेशी नागरिकों की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर सकती है.

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सवालः भारत में कहां और कितने डिटेंशन सेंटर हैं?

जवाबः हां, भारत में डिटेंशन सेंटर है. असम में साल 2012 में वहां की कांग्रेस सरकार ने तीन जेलों के अंदर ही डिटेंशन सेंटर बनाया था. ये डिटेंशन सेंटर गोलपाड़ा, कोकराझार और सिलचर के ज़िला जेलों के अंदर बनाया गया था. आगे चलकर तीन अन्य डिटेंशन सेंटर तेजपुर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट ज़िले की जेल के अंदर बनाए गए. इन सभी 6 डिटेंशन सेंटर्स में कुल 1000 अप्रवासियों को रखा जा सकता है. लेकिन इसमें रहने वाले लोगों की संख्या तय सीमा से काफी ज्यादा है.

केंद्र सरकार ने द फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के सेक्शन 3(2) और फॉरेनर्स ऑर्डर, 1948 के पारा 11(2) के तहत सभी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने का अधिकार दिया था.  उसी के तहत ये डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं.

सवालः डिटेंशन सेंटर पर क्यों हो रही है चर्चा?   

जवाबः पूरे देश में जबसे एनआरसी लाने की बात हुई है, तभी से डिटेंशन सेंटर पर चर्चा तेज हो गई है. दरअसल, असम में एनआरसी के तहत 19 लाख लोगों को अवैध अप्रवासी घोषित किया गया है. इन लोगों में से जो लोग खुद की नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाएगा. अगर पूरे देश में एनआरसी लागू हुई तो पूरे देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को इन्हीं डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा.

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सवालः क्या देश में नए डिटेंशन सेंटर बनाए जा रहे हैं?

जवाबः हां, असम के गोलपारा में एक नया डिटेंशन सेंटर बन रहा है. इसके अलावा दूसरे कुछ प्रदेशों में भी डिटेंशन सेंटर बनाए जा रहे हैं. पिछले साल केंद्र सरकार ने मॉडल डिटेंशन सेंटर का मैनुअल सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किया था, जिसके आधार पर ये सेंटर बनाए जा रहे हैं. इसके मुताबिक सेंटर में स्किल सेंटर, बच्चों के लिए क्रेच और पकड़े गए विदेशियों को उनके मिशन/दूतावासों/कौंसुलेट या परिवारों से संपर्क करने के लिए एक सेल बनाना शामिल था. डिटेंशन सेंटर में सभी बुनियादी सुविधाएं, मेडिकल सुविधाएं आदि भी दी जाएंगी.

सवालः असम की जेलों में कब बना डिटेंशन सेंटर?

जवाबः असम की जेलों को डिटेंशन सेंटर बनाने का फैसला 2009 में कांग्रेस सरकार ने लिया था. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. पी चिंदबरम गृह मंत्री थे और राज्य की कमान तरुण गोगोई के हाथ में थी. उस वक्त की सरकार ने घुसपैठियों की लिस्ट को लेकर कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. घुसपैठिए गायब न हो जाए इस वजह से इन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा जाना था.

सवालः डिटेंशन सेंटर पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का रुख?

जवाबः 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अवैध तरीके से भारत में रहते हुए पकड़े गए विदेशी नागरिकों के बारे में कहा था कि जिन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है उन्हें तुरंत जेल से रिहा करना चाहिए और ऐसी जगह पर रखना चाहिए जिसे डिटेंशन सेंटर कह लें या कोई और नाम दे दें- लेकिन इन जगहों पर बिजली पानी और साफ सफाई की सुविधा होनी चाहिए.

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वहीं 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में केंद्रीय गृह मंत्रालय के उन निर्देशों का भी नोटिस लिया, जो निर्देश 2014 में जारी किए गए थे , इसमें गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को सलाह दी थी कि वो अवैध घुसपैठियों और उन विदेशी नागरिकों की गतिविधियां सीमित करने के लिए हिरासत केंद्र बनाएं, जिन विदेशी नागरिकों को सज़ा के बाद वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया चल रही है.

सवालः क्या डिटेंशन सेंटर को जेल कहा जा सकता है?

जवाबः डिटेंशन सेंटर में जेल की तुलना में ज्यादा सुविधाएं वहां रहने वालों को मुहैया कराई जाती हैं. जेल में अपराधी या अपराध के आरोपी रहते हैं जबकि डिटेंशन सेंटर में वे विदेशी नागरिक जो भारत में अवैध रूप से घुस आए हैं या वैध दस्तावेजों के साथ भारत आने के बाद निर्धारित समयसीमा के बाद भी देश में ही रुके हुए हैं. उन्हें रखा जाता है. ये डिटेंशन सेंटर में तब तक रहते हैं जब तक कि इन्हें इनके देश वापस न भेज दिया जाए अथवा इन्हें भारत का नागरिक ही न मान लिया जाए.

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सवालः डिटेंशन सेंटर में अभी कितने लोग हैं?

जवाबः दो जुलाई 2019 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने लोकसभा में सवाल पूछा था. जिसके जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया था कि असम में इस समय कुल छह डिटेंशन सेंटर हैं. इन सेंटर में 25 जून 2019 तक में कुल 1133 लोगों को रखा गया है, जिसमें से 769 लोग पिछले तीन सालों से रह रहे हैं.

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इससे पहले नौ अगस्त 2016 को गृह मंत्रालय ने लोकसभा में एक बयान जारी किया था जिसके मुताबिक तीन अगस्त 2016 तक इन डिटेंशन सेंटर्स में कुल 28 बच्चों को रखा गया था. इसके अलावा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2016 से लेकर 13 अक्टूबर 2019 तक कुल 28 बंदियों की मौत हो चुकी है.

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