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मंदिर होने के दस्तावेज़ी सबूत क्या हैं?

निर्मोही अखाड़ा, गोपाल सिंह विशारद और देवकीनंदन अग्रवाल की दलील थी कि धर्मग्रंथों में अयोध्या राम की जन्मभूमि बताई गई है.फैज़ाबाद के गज़ेटियर में विवादित परिसर में राम के जन्म स्थान का ज़िक्र है और फैजाबाद के रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी 1861, 1893 और 1931 के बंदोबस्त में विवादित परिसर को जन्मस्थान के तौर पर दर्ज़ किया गया है.

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निर्मोही अखाड़ा, गोपाल सिंह विशारद और देवकीनंदन अग्रवाल की दलील थी कि धर्मग्रंथों में अयोध्या राम की जन्मभूमि बताई गई है.फैज़ाबाद के गज़ेटियर में विवादित परिसर में राम के जन्म स्थान का ज़िक्र है और फैजाबाद के रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी 1861, 1893 और 1931 के बंदोबस्त में विवादित परिसर को जन्मस्थान के तौर पर दर्ज़ किया गया है.

दोनों पक्ष अपने दस्तावेज़ी सबूतों को सच और दूसरे के दस्तावेज़ों को ग़लत ठहराते रहे. निर्मोही अखाड़ा विवादित ज़मीन को राम जन्म स्थान बताता रहा. वह दावे करता रहा कि यहां सनातन काल से मंदिर था, जिसे तोड़कर 1528 में मस्जिद बनाई गई. वहीं सुन्नी सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड का कहना था कि जिस जगह मस्जिद बनाई गई, वहां कोई मंदिर कभी नहीं रहा. मस्जिद खाली ज़मीन पर बनाई गई. लेकिन, यह सवाल अभी अनसुलझा था कि मंदिर और मस्जिद का झगड़ा शुरू होने से पहले यह ज़मीन किसकी थी?

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अयोध्या की विवादित ज़मीन पर राम मंदिर था या नहीं? यह झगड़ा सुलझाने में राजस्व विभाग के अभिलेख अहम सबूत बन सकते थे. लेकिन पेंच इसी बात से उलझा था कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ का कोई ब्यौरा नहीं था. निर्मोही अखाड़ा मालिकाना हक के बारे में अपनी दलील पेश कर चुका था.

उधर वक्फ़ बोर्ड का कहना था कि ज़मीन पर मस्जिद बाबर ने बनवाई और अब ये वक्फ़ की प्रॉपर्टी है. आखिरकार 26 जुलाई 2010 को अयोध्या की विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ से जुड़े सभी मुकदमों में सबूत, गवाह, जिरह का दौर खत्म हो गया. लेकिन इससे पहले ही खत्म हो चुकी थी उन लोगों की ज़िंदगी, जिन्होंने अयोध्या के रामकोट गांव के प्लॉट नंबर 159/160 की विवादित ज़मीन पर मुकदमों की बुनियाद रखी थी. मुकदमों की सुनवाई पूरी होने से पहले ही मोहम्मद हाशिम अंसारी को छोड़कर बाकी सारे मुद्दई अपनी उम्र पूरी करके दुनिया से रुखसत हो चुके हैं.

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