एक रिटायर्ड जस्टिस जो सिर्फ प्रचार के लिए बोलते हैं और एक साध्वी जिन्हें खुदा जाने कौन गंभीरता से लेता है, ने गांधी को अंग्रेजों का एजेंट घोषित कर दिया है. इस देश में गांधी को गाली देना एक फैशन, एक मुहावरा बन गया है. गांधी के बारे में सबसे कटु बातें बोलने वालों की गांधी के बारे में जानकारी और समझ अकसर शून्य होती है.
महात्मा गांधी उस देश में जीवनपर्यंत आक्रामक बेबाकी साधे रहे जहां हिप्पोक्रेसी एक अनिवार्य मूल्य है. तर्कहीन लेकिन वाकपटु लोग हमेशा यहां बहुलता में रहे हैं. हमारी कथनी और करनी में दिन-रात का अंतर है. नैतिकता की किताबों के अलमारी के नीचे सबसे घोर अनैतिक काम होते रहे हैं.
जो खत्म न हो वो गांधी..
आखिर गांधी की इस देश में जरूरत क्या है. उनके इतिहास को बार-बार उधेड़ा और बुना क्यों जा रहा है. दरअसल रक्तबीज से गांधी को जितना खारिज किया जाता है वो उतने ही गहरे उभरने लगते हैं. लगभग 100 साल पहले गांधी को ब्रिटेन की सरकार ने गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने लंदन बुलाया. तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने इस बात की कड़ी और अभद्र आलोचना की. चर्चिल ने कहा हम एक अधनंगे फकीर को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. सदी गुजरते-गुजरते एक घटना घटी. साल 2015 आया और ब्रिटेन की सरकार ने अपनी संसद के सामने चर्चिल के ठीक बगल में महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित की. समझ विकसित होने में वक्त लगता है और वक्त बलवान होता है.
गांधी आलोचना से परे नहीं हो सकते, होने भी नहीं चाहिए. गांधी ने खुद की जितनी निर्मम आलोचना की है उतनी शायद ही किसी ने की हो. उनकी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' पढ़िए. गांधी ने यह आत्मकथा उन दिनों में लिखी थी जब उन्हें महात्मा का खिताब दिया जा चुका था. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर गांधी किसके एजेंट थे.
धर्म के एजेंट गांधी
भारत की धार्मिक और भावुक जनता उनकी बात को दैवीय वाणी समझती थी. इस दौर में गांधी ने अपनी आत्मकथा में यह तक जिक्र कर दिया कि अपने बीमार पिता को सोता छोड़ वह पत्नी के पास संभोग करने पहुंच गए. 100 सालों बाद भी आप सार्वजनिक जगह पर सेक्स शब्द बोलने पर सिहर उठते हैं. पर गांधी ने उस दौर में अपनी आक्रामक सत्यनिष्ठा में इस बात का भी दस्तावेजीकरण कर दिया. यानी वह उस महान भारतीय संस्कृति के एजेंट तो वह कतई नहीं थे जहां महिला का बलात्कार जायज है, पर उसकी मुखरता नहीं. गांधी ने वाणी और कर्म का एका रखने की भूल की इसलिए वह किसी धर्म के भी एजेंट नहीं हो सकते.
कांग्रेस के एजेेंट गांधी!
राजनीतिक चिंतक के तौर पर भी गांधी के फैसलों की समालोचना की जा सकती है. गांधी भले ही कांग्रेस के पोस्टरों पर नेता के रूप में आज भी चस्पा दिए जाते हों लेकिन उन्होंने जीते जी ही कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी थी. कई बार खुलकर कांग्रेस की आलोचना की थी. यहां तक की आजादी के बाद यह तक कह दिया था कि अब कांग्रेस को खत्म कर दिया जाना चाहिए. जाहिर है गांधी पार्टी लाइन को आंखें मूंदकर मानने वाले शख्स नहीं थे. यानी उन्हें कांग्रेस का एजेंट भी नहीं कहा जा सकता.
हिंदुओं के एजेंट गांधी!
मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना गांधी को पसंद नहीं करते थे. उन्होंने मुस्लिम समुदाय में यह बात फैलाई कि गांधी हिंदुओं के नेता हैं. वह मुस्लिमों के बारे में नहीं सोचते. जाहिर है दो-राष्ट्र सिद्धांत की वकालत करने वाले जिन्ना गांधी को हिंदुओं का एजेंट समझा करते थे. तो क्या गांधी हिंदुओं के एजेंट थे. जी नहीं. एजेंट होने की इस परीक्षा में भी गांधी सौभाग्य से फेल हो जाते हैं.
जब भारत एक आजाद देश के तौर पर जन्म ले रहा था गांधी दिल्ली से दूर नौव्वाखाली में थे. मुसलमानों की बस्ती में. गांधी यहां हिंदू-मुस्लिम दंगा रुकवाने अकेले चले आए थे. खूनी संघर्ष का गवाह बने नौव्वाखाली में गांधी ने वो कर दिखाया था जो समूचा प्रशासन मिलकर नहीं कर पा रहा था. गांधी ने दंगा रुकवा दिया.
आजादी के बाद पाकिस्तान से लगातार हिंदुओं के मारे जाने की खबर आ रही थी. कश्मीर पर उसने अपने नापाक कदम बढ़ा दिए थे. इधर गांधी आमरण अनशन पर बैठे थे. जानते हैं यह आमरण अनशन किस लिए था? पाकिस्तान के लिए. गांधी ने भारत सरकार के खिलाफ पाकिस्तान को उसका बकाया पैसा देने के लिए आमरण अनशन किया. इस फैसले पर गांधी के साथ कोई नहीं था. उनकी चौतरफा आलोचना हो रही थी. अपने सिद्धांतों के लिए अतिरेक तक जाने के अभयस्त गांधी नहीं माने. आखिरकार भारत सरकार ने पाकिस्तान को उसके हिस्से के पैसे देने की बात मांग मान ही ली. इस लिहाज से गांधी हिंदुओं के भी एजेंट नहीं हो पाए.
अब काटजू और साध्वी की शंका से निबटिए
महात्मा गांधी एक उच्च शिक्षित भारतीय थे. स्वयं को धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानने वाले अंग्रेजों को एक आत्मविश्वासी काला आदमी फूटी आंख नहीं सुहाता था. अंग्रेजों का असल नुकसान गांधी ने किया. उनके अहिंसक तरीके एक अभिनव प्रयोग थे. जहां एक बर्बर शासन के खिलाफ कुछ निहत्थे लोग डट जाएं. दुनिया का कोई भी इंसान ऐसी स्थिति में निहत्थों से सहानुभूति रखेगा.
गांधी ने वैश्विक स्तर पर अंग्रेजों की साख में बट्टा लगाया. गांधी के कारण अमेरिकी दबाव भी उन पर भारी होने लगा था. गांधी ने उनकी उस राजनीति की कलई खोल दी जिसके तहत यह दावा किया जाता था कि गोरे लोग काले लोगों को सभ्य बनाने आए हैं. गांधी ने अपने तौर-तरीकों से उनका नकाब नोच दिया.