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जो बिहार में 'मौर्य' नहीं कर पाया, वो असम में 'ताज' ने कर दिखाया

बीजेपी के लिए असम चुनाव की सारी रणनीति के केंद्र रहे ताज के विवान्ता होटल में बीजेपी के नेताओं ने कई मीटिंग्स और चर्चाएं की. गुवाहाटी शिलॉन्ग रोड पर स्थित इस होटल की एयरपोर्ट से 45 मिनट की दूरी ने इसे बीजेपी नेताओं की पहली पसंद बनाया.

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ताज का विवान्ता होटल
ताज का विवान्ता होटल

इस बात पर शायद आप भरोसा ना कर पाएं लेकिन बीजेपी के लिए पिछले साल तक असंभव दिख रहे लक्ष्य को चुनावों के दौरान पार्टी की मीटिंग और चर्चाओं के केंद्र रहे होटल ने पूरा कर दिखाया है.

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बीजेपी के लिए असम चुनाव की सारी रणनीति के केंद्र रहे ताज के विवान्ता होटल में बीजेपी के नेताओं ने कई मीटिंग्स और चर्चाएं की. गुवाहाटी शिलॉन्ग रोड पर स्थित इस होटल की एयरपोर्ट से 45 मिनट की दूरी ने इसे बीजेपी नेताओं की पहली पसंद बनाया. हंग्राबारी इलाके में बीजेपी का एक पुराना ऑफिस है लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए 10-12 कारों का काफिला इस इलाके में एक घंटे लंबा जाम लगा सकता है.

ताज का विवान्ता बना सारी मुश्किलों का हल
जिसे देखते हुए पार्टी के नेताओं ने उलुबारी इलाके में एक अलग ऑफिस बनाने की सोची जहां इलेक्शन संबंधी कार्यों और चर्चाओं के लिए कार्यकर्ता पूरे दिन आ सकें. लेकिन यहां पर ट्रैफिक फ्री और नेताओं के लिए सुरक्षित होने के साथ ही गोपनीय चर्चाओं जैसी खूबियों से युक्त जगह की खोज बड़ी चुनौती थी. तब ताज का विवान्ता बीजेपी की इन सभी जरूरतों पर खरा उतरा.

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2015 के अंत में खुलने के बाद फरवरी से लेकर अब तक विवान्ता या तो साउथ एशियन गेम्स या फिर बीजेपी के लिए ही बुक रहा. यहां तक कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी का घोषणापत्र भी पार्टी ऑफिस की बजाय विवान्ता से ही जारी किया. 19 मई को बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भी आगे की रणनीति बनाने के लिए बीजेपी नेता यहीं इकट्ठे हुए थे.

बिहार चुनावों में मौर्या होटल ने भी बीजेपी के लिए लगभग यही रोल निभाया था. गांधी मैदान से नजदीकी, शहर के बीचोंबीच होने और जरूरत के हिसाब से लोगों की आवाजाही पर कंट्रोल कर सकने जैसी खूबियों इसे बीजेपी की पसंद बनाया था. हालांकि ये बात और है कि मौर्या के जरिए बीजेपी, सचिवालय तक नहीं पहुंच पाई.

हंग्राबारी के पार्टी ऑफिस से दिसपुर के सचिवालय तक की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है जबकि ताज से सचिवालय की दूरी सिर्फ एक किलोमीटर है. दूरी में भले कुछ ही मिनटों का अंतर हो लेकिन वो 'ताज' ही था जिसने बीजेपी को पहली बार पूर्वोत्तर में राज करने का मौका दिया.

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