पिछले शुक्रवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के कोटे से केंद्र सरकार के सात मंत्रियों को 12 तुगलक लेन वाली कोठी पर बातचीत के लिए बुलाया तो उनका मिशन साफ था- फतह. बैठक में मौजूद सूत्रों की मानें तो राहुल ने, प्रदेश के प्रभारी बनाए गए मुधुसूदन मिस्त्री की मौजूदगी में सीधे कहा कि उन्हें हर हाल में यूपी में फतह चाहिए.
राहुल ने अपने सिपहसालारों से दो टूक कहा कि उत्तर प्रदेश के मंत्रियों का कोई खास आउटपुट उनकी समझ में नहीं आ रहा है. ऐसे में उन्होंने मधुसूदन मिस्त्री के उस फॉर्मूले को अपनाने की घोषणा कर दी जिसके तहत संगठन और सरकार दोनों मिलकर उत्तर प्रदेश की लड़ाई लडऩे की कोशिश करेंगे. कांग्रेस की कोशिश है कि लाल बत्ती की हनक और संगठन की कोशिशों के बूते 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में जनता के बीच अपनी मौजूदगी दिखाई जाए.
बैठक में मौजूद एक मंत्री ने कहा, ‘‘रणनीति यह है कि हर मंत्री 12-12 जिलों में लगातार घूमे. इस दौरान उसका काम केंद्र सरकार की नीतियों का जनता में प्रसार करना और प्रदेश प्रशासन से यह जानना है की इन नीतियों को गंभीरता से अमल में लाया जा रहा है या नहीं.’’ यानी केंद्र के मंत्री जिलों में घूमकर स्थानीय प्रशासन को याद दिलाएंगे कि बड़ी सरकार कांग्रेस की ही है. नीतियों की समीक्षा के बहाने मंत्रियों के पास यह विकल्प होगा कि वे योजनाओं को अमल में लाने आने वाली खामियों का ठीकरा राज्य सरकार के सिर फोड़ दें. मंत्रियों को राज्य में घुमाने का एक मकसद यह भी है कि कमजोर संगठन की मौजूदगी में मंत्रियों को मिलने वाला प्रोटोकॉल और उनकी लाल बत्ती और हूटर लगी गाडिय़ां, कार्यकर्ताओं में कुछ जोश भरेंगी.
केंद्रीय मंत्रियों का एक तरह से फिर से प्रदेश की कमान संभालना कांग्रेस की उलझ्न को भी दिखाता है. पहले कांग्रेस ने जब जोनल हेड बनाए थे तो उसमें कुछ मंत्री भी शामिल थे. लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की हार के बाद किए गए बदलाव में मंत्रियों को संगठन से बाहर कर दिया गया. इस बदलाव पर प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने तब कहा कि जिन लोगों को चुनाव लडऩा है, उन्हें संगठन से दूर किया गया है. संगठन में ऐसे लोग चाहिए जिनके तुरंत राजनीतिक हित न हों. लेकिन नए कॉर्डिनेटर घोषित करने के मुश्किल से छह महीने के भीतर कांग्रेस को फिर मंत्रियों को आगे करना पड़ा है. यह क्या दिशाहीनता नहीं है? इस सवाल पर ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने कहा, ‘‘दरअसल राहुल जी ने चुनाव तैयारियों का डिसेंट्रलाइजेशन किया है. नई प्रक्रिया से कांग्रेस के मंत्री और कांग्रेस संगठन दोनों सक्रिय भूमिका निभा कर, आउटपुट को दुगना कर देंगे.’’ जैन को 12 जिलों का प्रभारी बनाया गया है, जिसमें श्री प्रकाश जायसवाल का गढ़ कानपुर, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह का गढ़ इटावा और विधान परिषद नेता प्रतिपक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी की प्रतिष्ठा की सीट बने फतेहपुर जिले का प्रभार शामिल है.
उधर मिस्त्री जहां जा रहे हैं, वहीं संगठन की कमजोर हालत उनका स्वागत कर रही है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सफलता का सेहरा बांध चुके मिस्त्री जानते हैं, कि उत्तर प्रदेश की सियासी आवोहवा दक्षिणी राज्य की तरह कांग्रेस के मुफीद नहीं है. और अब इतना वक्त भी नहीं बचा है कि संगठन को खड़ा कर दिया जाए. ऐसे में सत्ता की ताकत को झोंकना उन्हें बेहतर विकल्प नजर आया है. हालांकि इस बार भी कांग्रेस ने अपनी उलझन का ही परिचय दिया है. रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर जिलों का प्रभार किसी मंत्री को नहीं दिया गया है. क्या गांधी परिवार को आशंका है कि उसकी पारंपरिक सीटों पर मंत्री काम बनाने के बजाय बिगाड़ देंगे. और यह भी कि रायबरेली और अमेठी तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीट है, लेकिन सुल्तानपुर को इस श्रेणी में क्यों रखा गया. क्या परिवार को कोई व्यक्ति दो जगह से चुनाव लड़ेगा या फिर परिवार को कोई तीसरा व्यक्ति भी इस चुनाव में किस्मत आजमाने वाला है.
सांप-सीढ़ी के इस खेल में मिस्त्री की राह बहुत कठिन है. उनसे पहले दिग्विजय सिंह जैसे जुझारू नेता को यहां रणछोड़ बनना पड़ा. खुद राहुल गांधी यहां अपने नेतृत्व में दो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें उम्मीद से कहीं अधिक सफलता मिली. लेकिन इस सफलता के आधार में मनरेगा की कामयाबी और अल्पसंख्यक समुदाय का अचानक मिला प्यार शामिल था. यह वह समय था जब समाजवादी पार्टी यूपी में विपक्ष में थी, उसके सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खान पार्टी से बाहर थे और यूपीए वन के कामकाज के प्रति एक किस्म की संतुष्टि का भाव था. जबकि इस बार कांग्रेस को धारा के खिलाफ राजनीति की नैया खेनी है. घोटालों और महंगाई के वायुमंडल में घिरी कांग्रेस की इकलौती आस नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुसलमानों के धु्व्रीकरण पर टिकी है. देखना यह है कि धु्व्रीकरण का धु्व्रतारा लोकसभा में कांग्रेस के प्रति अटल रहता है या फिर जुगनू की तरह यहां-वहां टिमटिमाकर कांग्रेस की आस के पंछी को उड़ा देता है.