आसुमल तांगेवाला उर्फ संत आसाराम बापू... जी हां चौंकिये मत, नाम दो हैं लेकिन आदमी एक ही है. दरअसल आज से लगभग 40 साल पहले आसाराम अजमेर में आसुमल सिंधी तांगेवाला के नाम से जाने जाते थे.
अजमेर के डिग्गी चौक का तांगा स्टैंड, समय बदला, वाहन बदले लेकिन आज भी इस जगह का नाम डिग्गी चौक तांगा स्टैंड ही है. एक समय था जब यहां आसुमल सिंधी तांगा चलाया करता था. डेढ़ साल तांगा चलाने के बाद उसका मन भर गया तो उसने कुछ समय के लिए चाय की दूकान पर भी काम किया. महत्वकांक्षी इतना की सवारी मिल जाए तो उसे कम पैसों में भी ले जाने में नहीं हिचकिचाता था.
अजमेर तांगा यूनियन के सचिव हीरा भाई ने कहा है कि मैं पिछले 47 साल से तांगा यूनियन का सचिव हूं. आसुमल को तांगा चलाने के लिए तब नगर पालिका से मैंने ही उसे लाइसेंस दिलवाया था.
आसुमल तांगेवाला उर्फ आसाराम तब अपने चाचा के साथ अजमेर के शीशा खान इलाके में किराए के मकान में रहते थे. वो रोज रेलवे स्टेशन से दरगाह जाने वाले यात्रियों को तांगे में ले जाने का काम करते थे. अजमेर में तांगा ही शहरी यातायात का एक मात्र साधन था और तांगे की दर भी चवन्नी-अठन्नी प्रति सवारी हुआ करती थी लेकिन आसुमल किसी भी कीमत पर अपनी सवारी को ले जाने से नहीं चुकते.
वो दो-तीन आना प्रति सवारी भी रेलवे स्टेशन से दरगाह तक छोड़ने के लिए राजी हो जाते थे. जवानी के दिनों में आसुमल को गुस्सा भी बहुत आता था. वो सवारियों के साथ-साथ साथी तांगेवालों से भी अक्सर झगड़ा करते थे, लेकिन अति महत्वाकांक्षी होने के कारण उनका दिल जल्दी ही तांगा चलाने से भर गया और कुछ समय के लिए एक चाय वाले के दुकान पर नौकरी भी की.
हीरा भाई ने बताया की यहां से जाने के बाद उनका कभी भी आसाराम से संपर्क नहीं हुआ लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा को देखते हुए लगता था की वो एक दिन जरुरी बड़ा आदमी बनेगा.
अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 1939 को जन्मे आसुकल सिरुमलानी उर्फ आसाराम विभाजन के बाद अपने पिता थाउमल सिरुमलानी के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत से गुजरात आए थे. उस समय वह सात साल के थे और उनका परिवार काफी गरीब था. आसाराम अजमेर में दो साल तक अपने चाचा के साथ रहे, जहां वह तांगा चलाने का काम किया करते थे.
1963 में अजमेर आने से पहले उन्होंने गुजरात के विभिन्न शहरों में भी काम किया. वह काफी महत्वाकांक्षी थे और अमीर बनना चाहते थे. अजमेर में कुछ दिन बिताने के बाद अहमदाबाद वापस चले गए और वह आध्यात्मिक गुरु और तांत्रिक आसाराम बन गए.