दिल्ली के ‘5, तीस जनवरी मार्ग’ पर महात्मा गांधी ने अपनी जिंदगी के अंतिम 144 दिन बिताए थे और इसी जगह 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी गई. लेकिन यातायात के हल्के शोर के बावजूद आज भी यहां की शांति भंग नहीं हुई है.
विस्तृत इलाके में फैले इस स्थान में एक संग्रहालय है जहां राष्ट्रपिता गांधी के जीवन और जीवनदर्शन को प्रदर्शित किया गया है. शांति के पुजारी इस महापुरुष के बारे में यह विश्वास करना मुश्किल था कि एक दिन एक हिंदु कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी नृशंस हत्या कर दी जाएगी.
उनकी हत्या शाम की प्रार्थना के लिए जाते वक्त कर दी गई थी. जिस मार्ग से गांधीजी गुजरे थे उस पर सीमेंट के पदचिन्ह बना दिए गए हैं और उस स्थान पर संगमरमर बिछा कर उस पर ‘हे राम’ अंकित कर दिया गया है.
सफेद धोती पहने गांधीजी पर तीन बार गोलियां दागी गईं. उन्हें गोली लगने का पता तब चला जब उनकी सफेद धोती पर खून के धब्बे नजर आने लगे.
उस वक्त शाम के 5.17 बज रहे थे.
उनका आखिरी शब्द ‘हे राम’ थे. प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नायर ने उस दिन को याद करते हुए कहा, ‘मैं उस वक्त उर्दू अखबार ‘अंजाम’ के लिए काम कर रहा था. मैंने न्यूज एजेंसी के टिकर पर चेतावनी सुनी. मैं भागते हुए टेलीप्रिंटर के पास पहुंचा और मैंने अविश्वसीनय शब्द ‘गांधी को गोली लगी’ पढ़े.’
उन्होंने कहा, ‘मैं कुर्सी पर गिर पड़ा, लेकिन होश सम्भालते हुए बिरला हाउस की तरफ भागा. वहां कोलाहल मचा हुआ था. गांधी सफेद कपड़े पर लेटे थे और हर कोई रो रहा था. जवाहर लाल नेहरू बिल्कुल स्तब्ध और दुखी नजर आ रहे थे.’
हिंदुस्तानियों द्वारा प्यार से बापू के नाम से बुलाए जाने वाले गांधीजी की 65वीं पुण्य तिथि बुधवार को मनाई जा रही है.