संसद का मॉनसून सत्र 18 जुलाई यानी बुधवार से शुरू हो रहा है. कई अन्य कारणों के अलावा ये सत्र इसलिए भी अहम है क्योंकि इसके केंद्र की मोदी सरकार का आखिरी संसद सत्र होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. ये अटकलें बेवजह नहीं हैं. मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां, सियासी सरगर्मियां और नेताओं की सक्रियता इसके संकेत दे रही हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुद शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बारे में आशंका जताई. ऐसा हुआ तो मॉनसून सत्र के बाद शीतकालीन सत्र का मौका नहीं आएगा और केंद्र सरकार वक्त से पहले चुनाव की सिफारिश कर देगी.
मोदी सरकार के कार्यकाल में अब सिर्फ 10 महीने शेष हैं, जबकि चार महीने बाद ही देश के तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी लगातार एक देश एक चुनाव की वकालत कर रही है. इसे देश की कुछ और सियासी पार्टियों का भी समर्थन हासिल हुआ है. हालांकि कांग्रेस सहित ज्यादातर विपक्षी दल इसके खिलाफ हैं. ऐसे में अगर पीएम मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी वाकई इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती हैं तो उसके सामने कुछ महीने बाद अच्छा मौका आने वाला है और साल के अंत में वो एक साथ लोकसभा चुनाव और करीब आधे राज्यों में विधानसभा चुनाव करा सकती हैं.
बीजेपी शासित तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ व मिजोरम में सरकार का कार्यकाल जनवरी 2019 में खत्म हो रहा है. इसके अलावा मई 2019 में केंद्र की मोदी सरकार का कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा. अटकलें लगाई जा रही हैं कि एक साथ चुनाव के लिए सरकार इन चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव भी करा सकती है.
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इस मुहिम में उन राज्यों को भी शामिल किया जा सकता है जिनका कार्यकाल उनके अंतिम साल में है. हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड. ओडिशा, सिक्किम ऐसे ही राज्य हैं. इस तरह केंद्र व 12 राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. जम्मू-कश्मीर में जिस तरह की राजनीतिक स्थिति है, वहां भी विधानसभा को भंग कर साल के अंत में चुनाव कराए जा सकते हैं.
मोदी सरकार की ओर से एक देश-एक चुनाव के पीछे संसाधन और वक्त की बचत का तर्क दिया जा रहा है. ये भी कहा जा रहा है कि हर समय आचार संहिता लगे होने के चलते विकास कार्यों पर ब्रेक लगता है. लेकिन अगर मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां देखें तो ये योजना बीजेपी के लिए काफी मुफीद लग रही है और वक्त से पहले आम चुनाव कर वो एक तीर से कई निशाने साध सकती है.
2019 में मोदी और शाह की जोड़ी को हराने के लिए विपक्ष तगड़ी लामबंदी में जुटा है. कांग्रेस जहां महागठबंधन के लिए हाथ-पैर मार रही है, वहीं ममता बनर्जी, केसीआर जैसे नेता फेडरल फ्रंट के नाम पर विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे हैं. हालत ये है कि मायावती और अखिलेश यादव जैसे धुर-विरोधी नेता बीजेपी के खिलाफ साथ आ गए हैं. बीजेपी जानती है कि जितना वक्त दिया जाएगा विपक्ष उतना ही एकजुट होगा. ऐसे में समय से पहले लोकसभा भंग कर यदि चुनाव का ऐलान कर दिया जाए तो विपक्षी दलों को तैयारी का वक्त नहीं मिलेगा और बीजेपी बिखरे हुए विपक्ष को आसानी से हरा देगी.
राज्यों के नतीजों का असर
मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तीनों ही जगह बीजेपी की सरकार है. विधानसभा चुनाव के दौरान यहां पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. राजस्थान में तो बीजेपी की स्थिति काफी खराब बताई जा रही है और पार्टी भीतरघात से भी जूझ रही है. छत्तीसगढ़ की रमन सरकार कई मुद्दों पर घिरी हुई है. वहीं मध्य प्रदेश में सियासत के मजबूत खिलाड़ी कमलनाथ के हाथ में कांग्रेस की कमान है, जो शिवराज सिंह को कड़ी चुनौती देने को तैयार हैं.
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अगर इन तीन राज्यों में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो इससे मोदी लहर को धक्का लग सकता है. चुनाव चाहे राज्य का क्यों न हो लेकिन बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को ही सबसे बड़े ब्रांड के तौर पर पेश करती है. अगर इन राज्यों में बीजेपी हार गई तो मैसेज जाएगा कि बीजेपी और मोदी का जादू अब उतना असरदार नहीं है. लोकसभा चुनाव में ये मैसेज पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ऐसे में बीजेपी एक साथ चुनाव कराकर लोकसभा चुनाव में इन नतीजों के प्रतिकूल प्रभाव से बच सकती है.चुनावी मोड में बीजेपी
मोदी सरकार के चार साल पूरे होते ही बीजेपी और खुद केंद्र सरकार चुनावी मोड में आ चुकी हैं. अध्यक्ष अमित शाह भी इसका बिगुल फूंक चुके हैं. बीजेपी का 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान इसकी मिसाल है. शाह और मोदी देश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियां कर रहे हैं. पीएम मोदी की रैलियों में उनके तेवर बिल्कुल सियासी हैं और वे राज्य सरकारों व विपक्षी दलों पर जमकर हमले बोल रहे हैं. बंगाल की रैली में तो पीएम मोदी ने त्रिपुरा की तरह सीधे-सीधे राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील की. अमित शाह भी अलग-अलग राज्यों में जाकर एनडीए के सहयोगी दलों से मिल रहे हैं और सीटों के तालमेल को लेकर विचार मंथन में जुटे हैं.
मोदी सरकार अगर समय से पहले चुनाव कराती है तो वो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नक्शे कदम पर ही चलेगी. 2004 में 'इंडिया शाइनिंग' के नारे के साथ आत्मविश्वास से लबरेज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए थे. वाजपेयी का कार्यकाल अक्टूबर 2004 तक था लेकिन उन्होंने समय से पहले लोकसभा भंग करवा दी. इसके बाद अप्रैल-मई 2004 में चुनाव हुए लेकिन वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए को इसमें हार का सामना करना पड़ा और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी.