जनरल वी के सिंह ऐसे पहले आर्मी चीफ हुए, जिन्होंने कमांडो की ट्रेनिंग ले रखी है. जब वो फौज में थे, तब मुश्किल से मुश्किल ऑपरेशन को अंजाम देने का जिम्मा उन्हें ही मिलता था. अपने उसी जीवट अंदाज से वो सरकार से भी टकरा जाते हैं, चाहे वर्दी में रहे हों या फिर आम आदमी के लिबास में.
पीढ़ियों से रगों में उबाल मारता फौजी खून पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह की पहचान है. आजाद हिंदुस्तान के 26वें थल सेनाध्यक्ष जनरल सिंह की सबसे बड़ी खासियत और ताकत उनकी ईमानदारी को माना जाता है.
हरियाणा के भिवानी जिले में जन्मे वी के सिंह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी से आते हैं, जिसने फौज की शोभा बढ़ायी. जनरल के पिता आर्मी में ही कर्नल थे और दादा जुनियर कमिशन्ड ऑफिसर. जवानों से उनका ये लगाव तब भी छलक उठता है, जब वो किसानों की बात करते हैं.
19 साल की उम्र में वी के सिंह ने राजपूत रेजिमेंट में शामिल होकर फौज में एंट्री लगायी थी. अगले साल यानी 1971 में बांग्लादेश के युद्ध में जनरल सिंह ने अपनी दमदार पारी खेली.
वो पहले प्रशिक्षित कमांडो हैं, जो आर्मी चीफ की कुर्सी तक पहुंचा हो और साथ ही वो पहले आर्मी चीफ हैं, जिसने सरकार को कोर्ट में खींच लाया हो. जनरल सिंह को जवाबी हमला बोलने और पहाड़ों की दुर्गम ऊंचाइयों पर किसी ऑपरेशन को अंजाम देने में महारत हासिल रही है.
अब यही जनरल सीमा पार के दुश्मनों से लड़ने के बाद भ्रष्टाचार और किसानों को लटने वालों के खिलाफ मैदान में उतर आया है.