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'वो पूछता है कि गालिब कौन था? कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या?'

दुनिया के सबसे नामचीन शायर का तआरुफ़ कराना पड़े तो कराने वाले के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है. पुरानी दिल्ली में रहने वाले मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ां ग़ालिब की आज सालगिरह है. आइए आपको उनकी यादों में ले चलते हैं.

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गालिब पर बनी टीवी सीरीज मेें नसीरुद्दीन शाह ने उनका किरदार निभाया है
गालिब पर बनी टीवी सीरीज मेें नसीरुद्दीन शाह ने उनका किरदार निभाया है

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'वो पूछता है कि ग़ालिब कौन था/कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या.' दुनिया के सबसे नामचीन शायर का तआरुफ़ कराना पड़े तो कराने वाले के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है.

इस ज़माने में आप सलमान ख़ान की सालगिरह शौक से मनाइए. पर अपनी क़द्रो-तारीफ और कीमती वक़्त का एक हिस्सा उस मस्तमौला शायर के नाम भी रिज़र्व रखिए, जो बिलाशक इस दुनिया का सबसे अज़ीम शायर था. वह जो खड़े-खड़े ग़ज़लें बनाता था और ऐसे पढ़ता था कि महफिलों में भूचाल आ जाते थे. जिसने शायद इस दुनिया के सबसे मुक़म्मल और याद रह जाने वाले शेर कहे. जिनमें एक था, 'ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए/इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है.'

आपकी जिंदग़ी में 'इश्क़' या 'लफ़्ज़ों' की थोड़ी भी क़द्र होगी तो आपको ग़ालिब ज़रूर याद होंगे. पुरानी दिल्ली में रहने वाले मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ां ग़ालिब की आज सालगिरह है. आइए आपको उनकी यादों में ले चलते हैं.

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यूं बनी वो मकबूल ग़ज़ल
यह उस वक़्त की बात है जब बहादुर शाह ज़फर भारत के शासक थे. ज़ौक उनके दरबार में शाही कवि थे. तब तक मिर्ज़ा ग़ालिब के चर्चे दिल्ली की हर गली में थे. बादशाह सलामत उन्हें सुनना पसंद करते थे लेकिन ज़ौक को शाही कवि होने के नाते अलग रुतबा हासिल था. कहा जाता है कि इसी वजह से ज़ौक और ग़ालिब में 36 का आंकड़ा था.

एक दिन ग़ालिब बाज़ार में बैठे जुआ खेल रहे थे तभी वही से ज़ौक का क़ाफिला निकला. ग़ालिब ने तंज कसते हुए कहा, 'बना है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता.' इस पर ज़ौक आग बबूला हो उठे पर उन्होंने अपनी पालकी से उतरकर ग़ालिब के मुंह लगना ठीक न समझा. उन्होंने बादशाह सलामत से उनकी शिकायत कर दी. बादशाह ने ग़ालिब को दरबार में पेश होने को कहा.

ख़ैर, गा़लिब हाज़िर हुए. दरबार में सारे शाही दरबारी मौजूद थे. बादशाह ने ग़ालिब से पूछा कि क्या मियां ज़ौक की शिकायत जायज़ है ? ग़ालिब ने बड़ी चालाकी से कहा कि जो ज़ौक ने सुना वो उनकी नई ग़ज़ल का मक़्ता है. इस पर बादशाह सलामत ने ग़ालिब को लगे-हाथ पूरी ग़ज़ल पेश करने का हुक्म दे डाला. फिर क्या था. ग़ालिब ने अपनी जेब से एक कागज़ का टुकड़ा निकाला, उसे कुछ पल तक घूरा, और उसके बाद निकली ये कालजयी ग़ज़ल:

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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े-ग़ुफ़्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा, न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़े-तुंद-ख़ू क्या है

वीडियो में देखिए नजीब जंग को गालिब पर बात करते हुए

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