अलग तेलंगाना राज्य बनेगा. जोड़-तोड़ और विचार-विमर्श के कई दौर के बाद आखिरकार कांग्रेस इस फैसले पर पहुंच ही गई है. इस प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाने में कम से कम 6 महीने का वक्त तो लगेगा. पर एक टेंशन और है जो आने वाले समय में कांग्रेस को परेशान कर सकती है. जब सूबा बन जायेगा तो इसका नेता कौन होगा?
कौन बनेगा नए सूबे का मुखिया?
मुख्यमंत्री पद को लेकर क्षेत्रीय नेताओं के बीच होने वाले गतिरोध का ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अपने पुराने फॉर्मूले पर लौट सकती है. यानी हाइकमान की पसंद वाला नेता दिल्ली टू सीधे तेलंगाना.
इस परिस्थिति में केंद्रीय विज्ञान मंत्री एस जयपाल रेड्डी का नाम सबसे आगे है. जयपाल रेड्डी की छवि विवादों से दूर रहने वाले नेता की है. साथ ही लंबा राजनीतिक अनुभव नए राज्य को रास्ते पर लाने में मददगार साबित हो सकता है. पर तेलंगाना आंदोलन का चेहरा ना बन पाना उनकी दावेदारी को थोड़ा कमजोर जरूर करता है.
अब बात छत्रपों की. स्थानीय नेताओं में आंध्र प्रदेश के पंचायती राज मंत्री के जना रेड्डी, राज्य के पूर्व क्रांग्रेस चीफ डी श्रीनिवास और पूर्व उप मुख्यमंत्री दामोदार राज नरसिम्हा का नाम सबसे आगे है.
के जना रेड्डी 6 बार विधायक रह चुके हैं. पर राजनीतिक जड़ें तेलगूदेशम पार्टी की हैं. वहीं, श्रीनिवासन की पहचान जमीनी नेता की है लेकिन उनपर आर्थिक हेराफेरी के आरोप लगते रहे हैं. जहां तक दामोदार राज नरसिम्हा की दावेदारी का सवाल है तो वे पार्टी में दलितों का चेहरा हैं, पर उनके आगे सीनियर नेताओं की लंबी लाइन है.
अगर तेलंगाना राष्ट्र समिति का विलय कांग्रेस में हो जाता है या फिर दोनों पार्टियों गठबंधन कर लेती हैं तो इस रेस में टीआरएस चीफ के चंद्रशेखर राव का नाम भी आ जाएगा.
के चंद्रशेखर राव तेलंगाना आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं. 2009 में उनके भूख हड़ताल के बाद ही केंद्र की यूपीए सरकार को अलग तेलंगाना राज्य को लेकर प्रस्ताव लाना पड़ा था.
अब जब तेलंगाना के गठन के लिए खाका तैयार किया जाना है तो कांग्रेस इस मुद्दे पर भी एक नजर जरूर डालेगी.
कैसे बनेगी तेलंगाना की सरकार?
कानून के मुताबिक, आंध्र प्रदेश विधानसभा के मौजूदा विधायकों में से नए राज्य से आने वाले विधायक सीधे तेलंगाना के एमएलए बन जाएंगे. नई विधानसभा में बहुमत वाली पार्टी अपना नेता चुनेगी, जो राज्य का मुख्यमंत्री होगा. मौजूदा परिस्थिति में प्रस्तावित तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत है. हालांकि अगले 5 महीने तक कौन बनेगा मुख्यमंत्री वाले सवाल पर सियासत जारी रहेगी.