जन लोकपाल विधेयक पर एक साथ आए अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के संबंधों में कितनी दरार पड़ चुकी है, यह आज तक को दिए गए अन्ना के इंटरव्यू से पता चलता है, जहां इस बुजुर्ग नेता ने अपने पूर्व शिष्य को आशीर्वाद देने तक से इनकार कर दिया.
अन्ना और केजरीवाल के व्यक्तिगत संबंधों में कटुता साफ नजर आ रही है. अन्ना बेशक केजरीवाल के राजनीति में आने से नाराज हों या फिर चंदे की रकम के मामले में संदेह करते हों, फिर भी उनका इतना गुस्सा समझ से बाहर है. जिस केजरीवाल से हमेशा वह विचार-विमर्श करते थे, जिनकी राय से वह कदम बढ़ाते रहे और जो आंदोलन में उनके साथ-साथ रहा, उसके एक कदम से वह इतना नाराज क्यों हो गए?
जनलोकपाल बिल पर उनका इतना बड़ा आंदोलन सरकार को वह कानून लाने को विवश नहीं कर सका, जिसके बारे में उनका मानना है कि वह देश में ईमानदारी से शासन की गारंटी देगा, तो फिर केजरीवाल का राजनीति में कूदना नाराजगी की वज़ह क्यों हो गई?
राजनीति से अपने को दूर रखने का उनका फैसला प्रशंसनीय है, लेकिन उनके बिल को पास करवाने की जिम्मेदारी अंततः राजनीतिज्ञों की ही है. यह बात अन्ना अच्छी तरह से जानते हैं, तो फिर केजरीवाल ने राजनीति की दुनिया में छलांग लगाकर कौन-सा अपराध कर दिया?
क्या वह अभी भी इस मुगालते में हैं कि उनके कहने पर इस देश में वह ऐतिहासिक बिल आ जाएगा, जिससे हालात बदल जाएंगे? पर, ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. एक कर्मयोगी की तरह वह बेशक प्रयास करते रहें, लेकिन सच्चाई यह है कि अब इस मामले में कोई खास प्रगति होती नहीं दिखती, क्योंकि हमारे राजनेता अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कभी नहीं मारेंगे.
अरविंद केजरीवाल का रास्ता बेहद लंबा और दुरूह है. राजनीति के दलदल में घुसकर शुचिता की तलाश उनके लिए एक नया अनुभव होगा. उन्होंने यह फैसला करके कोई इतना बड़ा अपराध भी नहीं किया कि अन्ना इतने नाराज हो जाएं कि आशीर्वाद भी न दें. बेशक वह केजरीवाल की राजनीतिक गतिविधियों से अपने को दूर रखें लेकिन शुभकामना के दो बोल या आशीर्वाद के वचन उन्हें अपने पूर्व शिष्य की राजनीतिक मुहिम का हिस्सा तो नहीं ही बना देंगे.