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धर्म के फेर में नहीं, पापी पेट के लिए हो रही है इनकी 'घर वापसी'

सवाल ये है कि 'घर वापसी' करने वाले ये लोग हैं कौन? और वो क्यों मजहब बदल रहे हैं?

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आगरा  में हुए 'घर वापसी' कार्यक्रम की तस्वीर
आगरा में हुए 'घर वापसी' कार्यक्रम की तस्वीर

आज कल देश में धर्म परिवर्तन की लहर सी चल रही है. बहुत लोग 'घर वापसी' कर चुके हैं और कई लोगों की 'घर वापसी' की तैयारी चल रही है. गजब का उत्साह है धर्म परिवर्तन कराने वालों में. वैसे धर्म बदलने वाले भी पीछे नही हैं. एक मजहबी ठेकेदार चीख-चीख कर ऐलान कर रहे हैं कि भारत को 2021 तक हिन्दु राष्ट्र बना देंगे. हिंदूवादी संगठनों ने इसे 'धर्म परिवर्तन' की बजाय 'घर वापसी' का नाम दिया है.

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सर्दी के इस मौसम में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर संसद भी गर्म है. दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष के बीच इस मसले पर खींचतान चल रही है. कहने वाले कह रहे हैं कि धर्म परिवर्तन कराने के मामले में संघ और हिंदूवादी संगठनों का उत्साह केन्द्र में बीजेपी सरकार आने के बाद दोगुना हो गया है. यही वजह है कि अब कई जगहों से 'घर वापसी' की खबरें आ रही हैं.

अब सवाल ये है कि 'घर वापसी' करने वाले ये लोग हैं कौन? और वो क्यों मजहब बदल रहे हैं? कई लोगों का कहना है कि उन्हें इस काम के बदले एक बड़ी रकम दी जा रही है और कुछ का कहना है कि डरा धमका कर ऐसा किया जा रहा है.

दरअसल 'घर वापसी' करने वाले झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले वो लोग हैं जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. गंदी बस्तियों में कचरे के साथ जिन्दगी बिताने वाले ये लोग शरणार्थी हैं तो कुछ दूसरे राज्यों से पलायन कर आए मजदूर. कुछ भीख मांगने वाले तो कुछ कूड़ा बीनने वाले. दो वक्त की रोटी ही इन्हे इस तरह के काम के लिए मजबूर करती है.

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ऐसे में अगर बैठे-बिठाए 'घर वापसी' जैसा कोई ऑफर आ जाए, जिसमें न मेहनत और न कोई मुसीबत, बदले जरूरतें पूरी हो रही हों, तो क्या हर्ज है? हकीकत तो ये है कि इन लोगों का कोई 'घर' ही नही है. तो फिर घर वापसी कैसी? लेकिन सवाल पर सवाल ये है कि क्या इनकी मजबूरी का फायदा उठाने वालों का ये कदम जायज है?

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