सामान्य चीनी क्लेम लाइन से बाहर जाकर चीन के भारतीय क्षेत्रों पर दावे अप्रत्याशित नहीं बल्कि असल में विस्मयकारी हैं. वे अप्रत्याशित नहीं हैं क्योंकि यह वही है जो कम्युनिस्ट चीन अपनी स्थापना के बाद से कर रहा है, या जिसे वो 1949 से ‘मुक्ति’ कहलाना पसंद करता रहा है. किस से मुक्ति, कोई पूछ सकता है? लोकतंत्र समर्थक चियांग काई-शेक के कथित दमनकारी बलों से और उन मुट्ठी भर समर्थकों से जिन्होंने चाइनीज नेशनल पार्टी बनाई, और जिन्हे बाद में फारमोसा के द्वीपसमूह में भागना पड़ा, जिसे अब ताइवान कहा जाता है.
चीन दुनिया का इकलौता देश है जिसने 20 वीं सदी में अपने क्षेत्रों का विस्तार किया. चीन धीरे-धीरे लेकिन लगातार भारतीय क्षेत्रों में जमीन पर कब्जे की कोशिश कर रहा है, वहां भी जहां कोई मतभिन्नता नहीं है.
चीन के हालिया दावे निराधार
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन के गलवान मुहाने को लेकर हालिया दावे आश्चर्यजनक ढंग से मूर्खतापूर्ण हैं. लिजियान वही शख्स हैं जो 2017 तक पाकिस्तान में अपनी तैनाती के दौरान “मुहम्मद लिजियान झाओ” ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल करते रहे.
अक्साई चिन पर चीन के दावों का कोई आधार नहीं है. 1950 के दशक में तिब्बत पर कब्ज़ा करने के दौरान चीनी जबरन भारत के इस हिस्से में आ गए. PLA ने अक्साई चिन पर आंशिक रूप से कब्जा कर लिया और पूर्वी तुर्केस्तान के साथ तिब्बत को जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया. पूर्वी तुर्केस्तान को अब शिनजियांग प्रांत कहा जाता है.
बाद में 1962 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने भारतीय क्षेत्र पर अपने कब्जे का विस्तार किया, जिसे आज चाइनीज क्लेम लाइन (CCL) कहा जाता है.
भारत की क्लेम लाइन ‘जॉनसन लाइन’ है, जो पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर की पारंपरिक सीमा है. अरदाग जॉनसन लाइन, जो शिनजियांग के कुछ हिस्सों तक फैली हुई है, का एक वैध ऐतिहासिक आधार है. ये भारत के दावे को रेखांकित करता है.
कैलाश मानसरोवर के आसपास के क्षेत्रों में टैक्स भुगतान
जोरावर सिंह कहलुरिया, कश्मीर महाराजा गुलाब सिंह के तहत सेनापति थे, जो खुद सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के जागीरदार रहे थे. कहलुरिया ने 19वीं सदी की शुरुआत में पैंगॉन्ग झील सहित तिब्बत के पश्चिमी हिस्सों को जीत लिया था.
पूर्वी लद्दाख के बंजर लेकिन बड़े इलाके की भारत ने आजादी के बाद अनदेखी की थी, ऐसा बंटवारे के बाद हुई अराजक और त्रासद स्थिति की वजह से हुआ.
भारत सरकार के भूमि और वित्तीय रिकॉर्ड हालांकि स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि तकलाकोट समेत कैलाश मानसरोवर की पवित्र परिक्रमा के आसपास के गांवों की ओर से करों का भुगतान किया गया था. 1950 के दशक में और बाद में 1960 के दशक में चीन ने इन क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया तो इस व्यवस्था पर रोक लग गई.
चीन की ओर से प्रकाशित नए नक्शे
चीन के नए नक्शे जनवरी 2015 में प्रकाशित किए गए. इनमें दक्षिण चीन सागर समेत चीन के दावे वाले क्षेत्रों को दिखाया गया है. नक्शे पर इस क्षेत्र को 9 डैश लाइन के जरिए दिखाया गया है.
चीनी सीमा को तीन मोटी लाइन्स के जरिए नक्शे में दिखाया गया है जो करीब 150-200 किलोमीटर है.
लगभग 150-200 किमी चौड़े क्षेत्र को कवर करने वाले इस नक्शे में चीनी सीमा को तीन मोटी रेखाओं से इंगित किया गया था. नीली रेखा वास्तविक सीमा के अधिक करीब लगती है जो लगभग 10-40 किमी चौड़ी है.
इन नक्शों को न तो चीन के किसी पड़ोसी ने स्वीकार किया और न ही दुनिया के बाकी हिस्सों ने मान्यता दी.
गलवान दावे की हवा निकली
हाल ही में गलवान मुहाने को लेकर चीन का जानबूझ कर किया निर्लज्ज दावा बहुत गंभीर प्रवृत्ति का है.
गलवान मुहाने तक के क्षेत्रों पर चीन का दावा, भारत की ओर से बनाई जा रही दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क की प्रगति को रोकने का इरादा दिखाता है. रणनीतिक दृष्टि से अहम ये सड़क सीमा सड़क संगठन (BRO) की ओर से विकसित की जा रही है.
गूगल अर्थ के समतुल्य चीनी Baidu Ditu (Baidu मैप्स) चीन के भारत से उसकी क्लेम लाइन के आधिकारिक संस्करण को दर्शाता है.
वो भी स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि मौजूदा LAC गलवान मुहाने के पूर्व में 5 किमी से अधिक दूरी पर है.
गलवान को लेकर चीन के दावे का इंडिया टुडे पर पर्दाफाश हो चुका है.
लेखक- कर्नल (रिटायर्ड) विनायक भट, इंडिया टुडे के कंसल्टेंट हैं. वे सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषक हैं और उन्होंने 33 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवा की)