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रहस्‍य क्‍यों है आरुषि की हत्‍या?

आरुषि हत्‍याकांड अब तक अनसुलझा क्‍यों है? सीबीआई अबतक सबूत क्‍यों नहीं जुटा पाई? क्‍यों नहीं कोई साक्ष्‍य मिल पाया? इस सवाल का जवाब उतना रहस्‍यमय नहीं है, जितना जांच का जिम्‍मा संभालने वाले सीबीआई के संयुक्‍त निदेशक अरुण कुमार का बयान.

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आरुषि
आरुषि

आरुषि और उसके परिवार के घरेलू नौकर हेमराज का बिलकुल सीधा-सा दिखने वाला दोहरा हत्‍याकांड इस समय का सबसे रहस्‍यमय मामला क्‍यों है. इस सवाल का जवाब उतना रहस्‍यमय नहीं है, जितना बाद में जांच का जिम्‍मा संभालने वाले केंद्रीय जांच ब्‍यूरो के संयुक्‍त निदेशक अरुण कुमार का बयान. उन्‍होंने कहा था कि घटनास्‍थल पर पहले ही सबूत नष्‍ट कर दिए गए थे. नतीजा यह है कि कई अहम साक्ष्‍य, सुराग और संकेत, जिनसे जांचकर्ताओं को असली हत्‍यारे की पहचान में मदद मिलती, हमेशा के लिए खो गए.

सबूत नष्‍ट होने देने के आरोप नोएडा पुलिस पर लगे. घटनास्‍थल पर सबूतों के नष्‍ट होने से आगे की जांच में खाई पैदा हो गई. नोएडा पुलिस ने हत्‍याकांड के कुछ ही घंटों के बाद 15 मई, 2008 को जांच का जिम्‍मा संभाला. इसके चौबीस घंटे तक उनका तौर-तरीका किस तरह का था? नोएडा पुलिस ने घटनास्‍थल को सील नहीं किया. शुरुआती कुछ घंटों में यह पड़ोसियों, मित्रों, परिचितों-अपरिचितों के यह देखने के लिए खुला रहा कि आखिर क्‍या हुआ है. आरुषि के कमरे को जल्‍द ही साफ करने की अनुमति दे दी गई थी, जिससे आरुषि के खून समेत कई फॉरेंसिक सबूत नष्‍ट हो गए. फिंगर प्रिंट नहीं लिए गए. खून के नमूने नहीं लिए गए. बेतरतीब तरीके से पोस्‍टमार्टम कर दिया गया. कई अहम जैविक साक्ष्‍य ढंग से नहीं एकत्र किए गए. यहां तक कि हत्‍या के समय को लेकर भी संदेह पैदा हो गया. खोजी कुत्‍तों की मदद नहीं ली गई. नोएडा पुलिस ने इन सभी बातों का खयाल नहीं रखा. सिर्फ वैसा ही किया, जैसा घर के लोगों ने कहा.

यहां तक कि पुलिस ने दरवाजे पर लगे खून के धब्‍बे और दीवार पर हाथ के निशान को भी जांचने की जरूरत नहीं महसूस की. हेमराज का शव एक दिन बाद तब बरामद किया गया, जब रिटायर्ड पुलिस अधिकारी केके गौतम घटनास्‍थल की जांच कर रहे थे. तथ्‍य यह है कि साक्ष्‍यों के लिए पूरे घर की भी तलाशी नहीं ली गई.

सवाल बरकरार है- क्‍या पुलिस ने ये गलतियां अनजाने में कीं या फिर इसे जान-बूझकर अंजाम दिया गया.

इन सबके बावजूद नोएडा पुलिस ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इस परिवार के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया. घर के लोगों पर हत्‍याकांड में संलिप्‍तता का शक जाहिर करते हुए पुलिस ने आरुषि के पिता राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया. मेरठ जोन के आईजी गुरदर्शन सिंह ने बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहानी गढ़ते हुए यह आरोप लगाया कि राजेश तलवार ने ही आरुषि और हेमराज की हत्‍या की, क्‍योंकि ये उनके विवाहेत्‍तर संबंधों के बारे में जान गए थे. कहा गया कि जब आरुषि ने पिता के अफेयर का विरोध किया, हेमराज ने तलवार को ब्‍लैकमेल करने की कोशिश की. घटना के बारे में बताया गया कि तलवार ने पहले घर की छत पर हेमराज की हत्‍या की, फिर नीचे आकर नशे की हालत में आरुषि की हत्‍या की.{mospagebreak}बिना विश्‍वसनीय ढंग से चल रहे इस केस को सुलझाने का दायित्‍व सीबीआई ने 1 जून को संभाला. वे अब तक बनाए गए लीक पर चलने को बाध्‍य थे. सबसे पहले सीबीआई ने राजेश तलवार के लैपटॉप और आरुषि के डेस्‍कटॉप को जांच के लिए कब्‍जे में लिया. प्रयोगशाल में ले जाकर इससे हाल ही में मिटाई गई सामग्रियों को वापस लाने की कोशिश की गई. सीबीआई ने शक के आधार पर दुर्रानी दंपति समेत कुछ अन्‍य लोगों से भी पूछताछ की, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

राजेश तलवार, कंपाउंडर कृष्‍णा, दुर्रानी परिवार के घरेलू नौकर राजकुमार और पड़ोस के नौकर विजय मंडल की कई बार फॉरेंसिक जांच की गई. राजेश और नूपुर दो बार पॉलीग्राफी टेस्‍ट तथा एक बार मनोविश्‍लेषण परीक्षण के लिए भेजे गए. साथ ही कृष्‍णा, राजकुमार और मंडल के भी पॉलीग्राफी टेस्‍ट, ब्रेन मैपिंग और नार्को एनालिसिस टेस्‍ट किए गए. सीबीआई ने अब तक यह स्‍पष्‍ट नहीं किया है कि उन्‍होंने राजेश और नूपुर के इस तरह के सभी टेस्‍ट क्‍यों नहीं करवाए. जांच के लगभग 40 दिनों बाद सीबीआई ने यह कहा कि राजेश तलवार की गिरफ्तारी के वक्‍त नोएडा पुलिस के पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे. इसके बाद तलवार की जमानत पर तीसरी सुनवाई के दौरान उनकी रिहाई का रास्‍ता साफ हो सका.

अब तीन महीने बाद सीबीआई चार्जशीट दाखिल करने को तैयार नहीं है. जिन वैज्ञानिक साक्ष्‍यों के आधार पर सीबीआई ने राजेश तलवार को क्‍लीनचिट दी, उन्‍हीं साक्ष्‍यों के आधार पर वह हत्‍या में प्रयुक्‍त हथियार और आरुषि व हेमराज के मोबाइल फोन नहीं बरामद कर सकी. इन्‍हीं बातों के आधार पर सीबीआई के डीआईजी नीरज गोत्रू ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर बताया कि ठोस सबूतों के अभाव में वह चार्जशीट दाखिल करने की स्थित में नहीं है. इससे 11 सितंबर को हत्‍या के तीन मुख्‍य आरोपियों को जमानत मिलने का रास्‍ता साफ हो जाएगा. सबूतों की खोज में सीबीआई ने हत्‍या में प्रयुक्‍त हथियार और मोबाइल फोन के बारे में जानकारी देने वालों के लिए एक लाख रुपए के पुरस्‍कार की घोषणा कर दी.

इस तरह विश्‍वसनीय सबूतों के अभाव में इस कांड की कडि़यां जुड़ नहीं पाईं. हत्‍याकांड के स्‍थान पर शुरुआती दौर में ही लापरवाही बरती गई. उत्‍तर प्रदेश पुलिस के कई बड़े अधिकारी इस बात को लेकर खुश हैं कि तमाम अवसर रहते हुए अब तक सीबीआई इस केस को सुलझाने में नाकाम रही है. उन्‍हें यह महसूस करना चाहिए कि यह उनकी खुद की उपेक्षा का नतीजा है.

जहां तक केस की बात है, स्थिति अब भी पहले की तरह है. यह अब तक अनसुलझा है.

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