अखबार में जैसे ही राशिफल पढ़कर पहले पेज पर नजर फेरी दिल धक से होकर रह गया, इसलिए नहीं कि मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ज्योतिषी के सामने बैठी थीं बल्कि इसलिए कि सरेआम दोनों हाथ फैलाए कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दिखा रही थीं, बाद में समझ आया कि चुनाव चिन्ह नही भविष्य दिखा रही हैं अपना .
हमें तो व्यास जी से जलन हो रही थी जिसके हाथ में देशभर के बालकों का भविष्य है, उसी का भविष्य वह बता रहे थे. फिर पता चला जलकुकड़े इकलौते हम ही नही हैं कई और लोग भी इस बात पर जले जा रहे थे कि मंत्री साहिबा इतनी जिम्मेदारी के पद पर होकर अंधविश्वास दिखा रही हैं. अब कोई मंत्रीपद पर पहुंच कर जिज्ञासा थोड़ी त्याग सका है. वैसे भी जिज्ञासा आविष्कार की मौसी है, अविष्कार होंगे तभी तो विकास होगा.
ज्योतिषी के बताए अनुसार स्मृति ईरानी जल्द ही राष्ट्रपति बनने वाली हैं, ये सुनकर आडवाणी जी के दिल पर चाहे जो बीती हो लेकिन खालिस हिन्दुस्तानी दिलों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. स्मृति ईरानी असल मायनों में भारत के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्हें राष्ट्रपति तो जरूर ही बनना चाहिए, चुनाव हारने के बाद भी जब वो मंत्री बन गईं तो ऐसी बोनस वाली खुशी हुई मानो टेलिकॉम कम्पनी ने जबरिया कॉलर ट्यून के काटे पैंतालीस रूपए लौटा दिए हों.
उनकी डिग्री पर विवाद शुरू हुआ तो हमें उन तमाम रिश्तेदारों की याद आने लगी जो बारहवीं में दूसरे साल पूरक आ जाने पर खोद-खोद कर इम्तिहान का नतीजा पूछा करते थे. लेकिन सबसे ज्यादा खुशी तो तब हुई जब उन्होंने जर्मन हटाकर संस्कृत अनिवार्य करने को कहा. उस एक पल में ऐसा लगा जैसे किसी ने सिन्हा आन्टी के जर्मन शेफर्ड से जिन्दगी भर का बदला ले लिया हो, कमबख्त के मारे कभी सिन्हा आन्टी के घर चुपके से घुसकर बॉल लाने कि हिम्मत न हो सकी थी.
अब जब उन्होंने ज्योतिषी को हाथ दिखाया तो उनमे उन तमाम बेरोजगारों को अपना चेहरा नजर आया जो बीस-बीस रूपए देकर नुक्कड़ पर पोपट से कार्ड निकलवाते हैं. लोग भले उन्हें अंधविश्वासी कहें पर उन लोगों को भी एक आवाज मिली जो एक बार गलती से टकराने पर दोबारा ये सोचकर सिर टकराते हैं कि कहीं काला कुत्ता न काट खाए.
चलते-चलते: स्मृति ईरानी को विश्वास में लेकर जब ऑफ द रिकॉर्ड जानना चाहा कि उन्होंने ज्योतिषी से क्या पूछा तो उनका जवाब था ‘अच्छे दिन कब आयेंगे?’
(आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर और फेसबुक पर सक्रिय व्यंग्यकार हैं.)