केंद्र सरकार ने विवाह कानून में बदलाव की तैयारी कर ली है. प्रस्तावित कानून के तहत तलाक की स्थिति में पति की अचल संपत्ति में से महिला-बच्चों को भी हिस्सा मिलेगा. इसकी राशि पर फैसला कोर्ट करेगी. कानून मंत्रालय ने विवाह कानून (संशोधन) बिल पर कैबिनेट नोट तैयार किया है. इस पर मंत्रालयों से राय मांगी गई है. फीडबैक मिलने के बाद नए कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा इस मसौदे को अंतिम मंजूरी के लिए कैबिनेट में ले जाएंगे.
ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, तलाक के लंबित मामलों में तेजी लाने के लिए अदालतों के अधिकार भी बढ़ाए गए हैं. इसके मुताबिक, तलाक के लिए अदालत पहुंचे पति या पत्नी को अधिकतम तीन साल के भीतर एक और ज्वाइंट एप्लीकेशन देनी होगी. इस पर दोनों पक्षों की सहमति (तलाक के लिए) होनी चाहिए. ऐसा होने पर कोर्ट खुद फैसला सुना सकती है. लेकिन यदि ज्वाइंट एप्लीकेशन दायर कर दी जाती है तो पति-पत्नी के लिए छह से 18 महीने का वेटिंग पीरियड कायम रहेगा.
पास नहीं करवा पाई थी यूपीए सरकार
यूपीए सरकार चार साल तक इस बिल को पारित करवाने के लिए संघर्ष करती रही. राज्यसभा में 2010 में पहली बार इसे पेश किया गया था. संशोधनों के लिए चार बार तत्कालीन कैबिनेट में गया. आखिरकार अगस्त 2013 में राज्यसभा में यह बिल पारित हुआ. लेकिन लोकसभा में अटक गया. 15वीं लोकसभा भंग होते ही विधेयक भी रद्द हो गया.
मौजूदा मसौदा भी पुराने बिल की तर्ज पर ही बना है. मंत्रालयों की राय के बाद इसमें कुछ बदलाव किए जा सकते हैं. इस प्रस्ताव के जरिए हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में संशोधन किए जाने हैं. इसमें पहली बार शादी बचाने की सभी संभावनाओं के खत्म होने पर तलाक का विकल्प शामिल किया गया है.