राज्य के कानून मंत्री भुपिंदर सिंह चुड़ासमा ने कहा, ‘हम लोकायुक्त पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को जल्द ही लागू करेंगे.’ उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार की इस दलील को माना है कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के मुताबिक काम करना है.’ चुड़ासमा ने कहा कि फैसला पढ़ने के बाद ही इस मुद्दे पर विस्तृत प्रतिक्रिया दी जा सकती है.
गुजरात सरकार को करारा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज यह कहते हुए राज्य के लोकायुक्त पद पर मेहता की नियुक्ति को बरकरार रखा कि गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श कर यह फैसला किया गया था.
शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के मुताबिक काम करने के लिए बाध्य है लेकिन इस मामले में नियुक्ति को गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह फैसला गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श कर किया गया था.
राज्यपाल कमला बेनीवाल ने 25 अगस्त 2011 को न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति लोकायुक्त के पद पर की थी. लोकायुक्त का पद राज्य में पिछले आठ साल से खाली पड़ा था. सतर्कता बरतते हुए अपनी प्रतिक्रिया में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय रुपानी ने कहा, ‘हमें उच्चतम न्यायालय के आदेश की एक प्रति मिलने दीजिए. हम उसका अध्ययन करेंगे और इसके बाद ही कोई टिप्पणी करेंगे.’
गुजरात में विपक्षी कांग्रेस और गैर-सरकारी संगठनों ने यह कहते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया कि इससे राज्य सरकार की ‘‘भ्रष्ट’’ गतिविधियां सामने आ जाएंगी. कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके शक्तिसिंह गोहिल ने कहा, ‘हम फैसले का स्वागत करते हैं. लोकायुक्त की नियुक्ति का राज्यपाल का फैसला वैध था और उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकारों के दायरे में ही यह निर्णय किया था. कभी नहीं होने से तो बेहतर है कि यह देर से हुआ.’ सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने भी उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया.
लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अदालत में अर्जी दायर करने वाले वकील मुकुल सिन्हा ने कहा, ‘यह फैसला न केवल गुजरात के लिए अहम है बल्कि सभी राज्यों के लिए महत्व रखता है.’ मुकुल ने कहा, ‘मोदी सरकार इस बात पर जोर दे रही थी कि मंत्रीपरिषद के प्रमुख के तौर पर मुख्यमंत्री के विचार की अहमियत ज्यादा होती है. उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अब गुजरात में निष्पक्ष और पूर्वाग्रह-रहित लोकायुक्त की नियुक्ति की जा सकती है.’
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, ‘यह संवैधानिक शासन की जीत है. सत्ता के नशे पर कानून के शासन की जीत है. कोई भी कानून के उपर नहीं है.’ गैर-सरकारी संगठन ‘प्रशांत’ के निदेशक फादर सेड्रिक प्रकाश ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को संवैधानिक शुचिता के तरकश में एक तीर की तरह देखा जाना चाहिए.’