वीरेंद्र सहवाग को शतक से वंचित करने वाली नोबाल के बाद उठे विवाद के बाद इस संबंध में नियम बदलने को लेकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की लंबी प्रक्रिया है लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी भद्रजनों के खेल में इस तरह का कोई विवाद उठा तो क्रिकेट की नियमों में तब्दीली की गयी.
वीरेंद्र सहवाग त्रिकोणीय श्रृंखला के मैच में छक्का जड़ने के बावजूद केवल इसलिए शतक से वंचित हो गये क्योंकि अंपायर ने इससे पहले आफ स्पिनर सूरज रणदीव की गेंद नो-बॉल दे दी थी जिससे भारत ने यह मैच जीत लिया था. सहवाग 99 रन पर नाबाद रहे. उनके नाम पर छक्का तो नहीं जुड़ा लेकिन गेंद उनके खाते में शामिल हो गयी.
आईसीसी ने इस घटना के संबंध में नियमों की समीक्षा करने के बारे में कहा है कि नियमों में संसोधन के लिये एक प्रक्रिया है. उसके प्रवक्ता ने कहा, ‘मेलबर्न क्रिकेट क्लब(एमसीसी) क्रिकेट नियमों का संरक्षक है. आईसीसी की क्रिकेट समिति है जो इन नियमों को निरूपित करती है और बाद में कार्यकारी बोर्ड इन्हें मंजूरी देता है.’ लेकिन पहले भी कई ऐसी घटनाएं हुई जबकि नियमों में बदलाव किया गया.
असल में इसकी शुरुआत टेस्ट क्रिकेट शुरू होने से 100 साल पहले हो गयी थी. यह 23 और 24 सितंबर 1771 की घटना थी जब चार्टसी और हैम्बलडन के बीच इंग्लैंड के लेलेहम बारवे खेले गये मैच में चार्टसी के थामस व्हाइट ऐसे बल्ले से खेलने के लिये उतरे जिसकी चौड़ायी विकेटों के बराबर थी. इसको लेकर शिकायत दर्ज की गयी और तीन साल बाद 1774 में बल्ले की चौड़ायी का नियम बना जो आज भी कायम है.
दिन के शुरू में किसी ने इस बल्ले पर आपत्ति नहीं जतायी लेकिन चौथी गेंद पर लिली ने स्ट्रेट ड्राइव किया जिस पर केवल तीन रन बने. आस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल को लगा कि इस पर चौका लगना चाहिए था और इसलिए उन्होंने तुरंत ही लिली को लकड़ी का बना बल्ला भिजवा दिया.
इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रेयरली ने इसकी शिकायत अंपायर मैक्स ओ कोनेल और डान वेसेर से की कि इस तरह का बल्ला गेंद को नुकसान पहुंचा सकता है. लिली बल्ला बदलने के लिये तैयार नहीं थे जिससे दस मिनट तक मैच रुका रहा. आखिर में चैपल को मैदान पर आकर लिली को लकड़ी के बल्ले से खेलने का निर्देश दिया. इसके बाद क्रिकेट के नियम में बदलाव किया गया और साफ किया गया कि लकड़ी से बना बल्ला ही उपयोग में लाया जाएगा.
बाडीलाइन श्रृंखला 1933-34 ने गेंदबाजों पर बाउंसर फेंकने पर अंकुश लगाने का नियम बनाने के लिये प्रेरित किया. पहले गेंदबाज एक ओवर में कितनी भी बाउंसर करने के लिये स्वतंत्र थे लेकिन 1933 की घटना और उसके बाद घटी कई अन्य घटनाओं के दौरान क्रिकेट मैदान पर तेज गेंदबाजों के खतरनाक तेवर देखते हुए अब एक ओवर में एक बाउंसर का नियम बनाया गया है.