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दिलों को जीतिये प्यार से

कहा जाता है कि प्यार से इंसान दुनिया जीत सकता है और नफ़रत अपनों को भी दूर कर देती है. यह बात सुनने में ही नहीं बल्कि यथार्थ में भी अपना करिश्मा दिखाती है.

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कहा जाता है कि प्यार से इंसान दुनिया जीत सकता है और नफ़रत अपनों को भी दूर कर देती है. यह बात सुनने में ही नहीं बल्कि यथार्थ में भी अपना करिश्मा दिखाती है.

प्यार शब्द अपने आप में बहुत ही मीठा अहसास लिए होता है जो दोस्तों, दुश्मनों सभी को अच्छा लगता है. नफ़रत जहां अपनों को दुश्मन बना देती है वहीं प्यार में वह तासीर होती है जो दुश्मन को अपना बनाने का दम रखती है. यही वजह है कि प्यार से हर काम कराया जा सकता है और डांट फटकार, नफरत से केवल दूरियां बनती तथा बढ़ती हैं.

मनोविज्ञानी मधु प्रिया कहती हैं ‘बड़े तो बड़े, बच्चे तक प्यार की भाषा अच्छी तरह समझते हैं. अगर आप बच्चे को लगातार डांटते फटकारते रहेंगे तो बच्चे का आपके साथ जुड़ाव नहीं हो पाएगा. लेकिन बच्चे को भरपूर प्यार दे कर देखिये, बच्चा आपके दिल के करीब आ जाएगा. यह बात खुद बच्चे की प्रतिक्रियाओं से ही साबित हो जाएगी.’

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न्यू एरा पब्लिक स्कूल की प्राचार्य वंदना चावला कहती हैं ‘वैसे तो सभी शिक्षक अध्यापन के प्रति समर्पित होते हैं. लेकिन एक बात हमने महसूस किया है कि बच्चे उसी शिक्षक को अधिक पसंद करते हैं जो उन्हें प्यार से पढ़ाएं. ऐसे शिक्षक बच्चों को जो पढ़ाते हैं, उसे बच्चे आसानी से आत्मसात कर लेते हैं.’

वन्दना कहती हैं ‘लेकिन शिक्षक अगर डांट फटकार कर बच्चे को पढ़ाते हैं तो दोनों के बीच एक दूरी बन जाती है और बच्चे विषय को समझ नहीं पाते. नतीजा यह होता है कि बच्चे उस विषय पर कम ध्यान देते हैं और उस पर उनकी पकड़ भी कमजोर होती जाती है.’

मनोविज्ञानी मधु प्रिया कहती हैं ‘यह सच है कि बच्चों को प्यार से समझाना आसान और उनके लिए ही बेहतर होता है. किसी विषय में बच्चे के कम अंक आने का कारण, उस विषय में बच्चे की दिलचस्पी कम होना है. उस विषय के शिक्षक का व्यवहार भी मायने रखता है. डांटने फटकारने वाला शिक्षक अगर बच्चे को पढ़ाएगा, तो बच्चे के मन में डर बैठ जाएगा. अगर बच्चे को कुछ समझ में न आये, तो वह शिक्षक की डांट के डर से पूछ भी नहीं पाएगा. नतीजा बच्चा उस विषय में कमजोर हो सकता है. इसीलिए बच्चों को प्यार से पढ़ाना चाहिए.’

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कैंसर जैसी बीमारी से जूझ कर मौत को परे कर चुके सेवानिवृत्त वन अधिकारी पंकज सिंह कहते हैं ‘अस्पताल में बार बार यह अहसास होता था कि कैंसर ने मेरे जीवन के दिन सीमित कर दिए हैं. ऐसे में जब डॉक्टर और नर्स प्यार से हौसला बंधाते थे तो बहुत अच्छा लगता था. आज मैं बिल्कुल ठीक हो चुका हूं लेकिन उन डॉक्टरों और नर्सों की बहुत याद आती है. अगर वे रूखे ढंग से पेश आते, तो शायद मुझे समय से पहले ही मौत आ चुकी होती.’

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