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गलती हो तो अरबी बाबा मुंह पर थूक देते हैं, दरवाजे पर कुंडी नहीं, डेढ़ साल से चौबीसों घंटे की नौकरानी हूं: गल्फ में फंसी पंजाबी युवती की आपबीती

'मेरे कमरे में लॉक नहीं है. जब भी किसी को जरूरत पड़े, आवाज देकर बुला लेता है, चाहे सुबह के 5 बजे हों, या आधी रात. कोई काम पसंद न आए, मालिक मुंह पर थूक देते हैं. मेरा काम थूक पोंछकर फिर काम पर लग जाना है.' भारत से काम की तलाश में खाड़ी मुल्क जाते मजदूरों पर तो बात होती है, लेकिन औरतों की तकलीफ यहां भी परदे की ओट में हैं. ये कहानी है जसमीत की, जो डेढ़ साल से 14 लोगों के घर में कैद हैं.

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Generative AI by Abhishek Mishra
Generative AI by Abhishek Mishra

कुवैत के मंगाफ शहर में एक रिहाइशी इमारत में आग लगने पर 50 मौतें हो गईं, जिनमें से 45 भारतीय थे. छह मंजिला इमारत में हुए हादसे के बाद पूरा कुवैत विदेशी मजदूरों के साथ बर्ताव को लेकर घेरे में है. इस समेत तमाम गल्फ देशों में भारी संख्या में भारतीय कामगार जा रहे हैं. महिलाएं भी इसका हिस्सा हैं. चमकते मुल्क में ऊंची कमाई का सपना लिए ये गल्फ पहुंचती और वहां के अंधेरों में खोकर रह जाती हैं. जसमीत ऐसा ही एक चेहरा हैं...

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गल्फ देशों में लाखों भारतीय कामगार बसे हुए हैं. इनमें कुवैत या कतर ही नहीं, ओमान भी है. मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स की साइट के मुताबित इस खाड़ी देश में साढ़े 6 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं, जिनमें पेशेवर कम, मजूदर ज्यादा हैं. ये इस तेल-देश की कुल आबादी का 13 फीसदी से भी ज्यादा हैं. इसमें महिलाओं का आंकड़ा अलग से नहीं दिखता. न ही उनके दुख-दर्द लिखे-पढ़े जाते हैं.

ऐसी ही एक महिला- जसमीत से हमारी फोन पर बात हुई, जो करीब डेढ़ सालों से ओमान में रह रही हैं. उनके पास न पासपोर्ट है, न पैसे और न ही निकल भागने की उम्मीद.

पंजाब की रहने वाली 32 साल की महिला से कई किस्तों में हमारी बात हो सकी. बीच-बीच में अरबी लहजे में नाम पुकारने की आवाज के बाद फोन पर चुप्पी छा जाती थी. हमने सवालों का फॉर्मेट बदलकर तय किया कि जितनी हो सके, छोटी बात करें. रूटीन बातचीत ताकि उन्हें कोई नुकसान न हो.

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यहां कैसे पहुंची के जवाब में वो दबी हुई आवाज और फर्राटेदार पंजाबी में कुछ-कुछ बताती हैं, जिसका हिंदी तर्जुमा है- धोखा मिला जी! 

इंडिया में भरा-पूरा परिवार है. लेकिन सब के सब बीमार. पति को एडवांस डायबिटीज है. ससुर बिस्तर पकड़ चुके. बेटी अभी छोटी है. घर पर कमाने वाला कोई है नहीं. किसी के मार्फत हमें एजेंट मिला. होशियारपुर में बैठे एजेंट ने लाख रुपयों के बदले दुबई में बढ़िया नौकरी दिलवाने का वादा किया, लेकिन पहुंची मैं ओमान. यहां कई दिन एक फ्लैट में रखने के बाद मुझे एक के बाद एक दो परिवारों में भेज दिया गया. फिलहाल 14 लोगों के घर में मैं भिश्ती, बावर्जी, कहारन सब कुछ हूं. वो भी बिना छुट्टी के.

women from punjab trapped in oman gulf nations amid kuwait fire death of indian migrants Representation image- Getty Images

फोन पर बात करने मिल जाता है आपको?
हां. लेकिन यहां की लड़की बड़ी तेज है. कॉलेज में पढ़ती है. उसे हिंदी काफी आती है. उसके सामने बात भी नहीं हो सकती. और फिर वक्त ही नहीं मिलता कि फोन कर सकूं, या उठा सकूं. इससे पहले जिस घर में रखा गया था, वहां फोन रखने पर मनाही थी. तब कई महीने घरवालों की खबर के बिना रही. 

क्या-क्या काम करना होता है?
सब. 

क्या सब?
सब जी. घर में बंदियों को जितने काम होते हैं, सबकुछ. साफ-सफाई. खाना-पकाना. साग-सब्जियां धोना. दौड़कर हाथ में पानी देना. खाने की टेबल साफ करना. बर्तन धोना...14 आदमी हैं घर में. एक बंदा 14 बार भी पुकारे तो दिन में 2 सौ बार बुलाहट हो जाती है. 

रोज कितने घंटे काम करती हैं? 
24 घंटे. इन्हीं के घर में रहती हूं. मेरे कमरे में दरवाजा भी नहीं. जब आवाज देंगे, मुझे जाना होगा. 

इतने महीनों में कोई ऑफ, हफ्ते की छुट्टी तो मिली होगी?
नहीं जी. कभी नहीं. 

अच्छा, कमरा कैसा है आपका?
अटाली है. घर का बेकार सारा सामान यहां रखा है. कपड़े प्रेस यहीं होते हैं. बेकार बर्तन यहीं जमा रहते हैं. टूटी कुर्सियां, पुराने कारपेट सबके बीच मेरा बिस्तर है. 

खाना किस तरह का मिलता है, सुना है अरब में काफी शानदार देग पकती है?
चावल देते हैं दो टाइम. कभी-कभी एक बार. सबके खा चुकने के बाद जो बच जाए, वो नौकरों में बंट जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा तकलीफ है कि मैं अपने मुल्क का नाम भी नहीं ले सकती. वो लोग गुस्सा करते हैं कि यहां हो तो वहां की बात-तारीफ मत करो. एक साथ कई लोग अपना-अपना काम करने को कहते हैं. दौड़-भाग में कुछ चूक हो जाए तो गंदी गालियां देते हैं. 

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women from punjab trapped in oman gulf nations amid kuwait fire death of indian migrants photo Unsplash

आपको कैसे पता वो क्या बोलते हैं, आप अरबी जानती हैं!
कुछ सेकंड्स की चुप्पी के बाद फोन पार से आवाज आती है- गाली सबकी जबान में एक-सी होती है, जैसे प्यार समझ आता है. चिल्लाते हुए कई बार मुझपर थूक देते हैं. मैं बदले में गुस्सा नहीं कर सकती. अनजान देश- अनजान लोग. पीछे पूरा परिवार मुझपर टिका है. थूक साफ करके काम में लग जाती हूं. 

वे आपकी बोली नहीं जानते. आप उनकी भाषा नहीं समझतीं, फिर आपस में बात कैसे होती है?
मैं पढ़ी-लिखी हूं. थोड़ी इंग्लिश, थोड़ी उर्दू मिलाकर काम चल जाता है. वैसे भी कौन सा दुख-दर्द की बातें बांटनी हैं. वो काम बोलते हैं, मैं हां करती हूं. 

अभी क्या चाहती हैं?
फोन पर जसमीत को हमसे कनेक्ट भी ओमान के ही एक भारतीय ने किया था, ये भरोसा दिलाते हुए कि इससे उन्हें मदद मिल सकेगी. 'जिन पैसों के लिए यहां आई, वो भी महीनों नहीं मिलता. कहते हैं कि एजेंट को दे देंगे. एजेंट के पास पैसे जाते हैं, वो काट-कूटकर घर भेजता है. अब मैं थोड़े दिन के लिए अपने देश लौटना चाहती हूं. बच्चों से मिल लूंगी.'

फिर क्या दिक्कत आ रही है?
मैंने 15 दिन की छुट्टी मांगी तो उन्होंने 2 लाख रुपए जमा करने को कहा. कहते हैं कि ओमान लौटूंगी तो पैसे भी वापस दे देंगे. घर पर इतने पैसे होते तो मैं क्यों छोटे बच्चों को छोड़कर अनजान देश में नौकरानी बनने आती! किसी तरह पति ने एक लाख रुपयों का इंतजाम किया, लेकिन वे लोग कम पर मानने को राजी नहीं.

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मैंने इंडियन एंबेसी को भी कॉल किया था एक दिन चुपके से. उन्होंने कहा कि आप किसी भी तरह यहां आ जाएं तो बाकी वे संभाल लेंगे. लेकिन मेरे पास न पासपोर्ट है, न भागने के पैसे. घरवाले हाथ में एक रियाल नहीं देते. 

women from punjab trapped in oman gulf nations amid kuwait fire death of indian migrants photo Unsplash

यहां के टैक्सी वाले भी अरबी हैं. इंडियन चेहरा अगर एंबेसी या एयरपोर्ट जाने को कहे तो वे समझ जाते हैं कि माजरा अलग है. वे या तो छोड़ने से मना कर देते हैं, या फिर मनमाने पैसे मांगते हैं. जैसे मैं जहां हूं, वहां से एयरपोर्ट दो-ढाई घंटे की दूरी पर है. उसके लिए 20 हजार या इससे ज्यादा ही लेंगे.

फोन पर धीमी आवाज में बात कर रही जसमीत इस बार लगभग फुसफुसा रही हैं- मैंने सब पता किया. वैसे टैक्सी के पैसे जुटाकर एंबेसी भी पहुंचना मुश्किल है. अरबी बाबा (घर के किसी बुजुर्ग को वे यही बोल रही थीं) देखता रहता है कैमरा पर. दरवाजे तक से बाहर नहीं निकल सकती. 

फिर जाकर वापस क्यों लौटना चाहती हैं?
लौटूंगी क्यों! झूठ बोल रही हूं. भागने के लाख रुपए देने को तैयार हूं. इससे ज्यादा हमारे पास हैं भी नहीं. 

इस बार का बुलावा ज्यादा तगड़ा रहा होगा, जसमीत हड़बड़ाते हुए फोन रख देती हैं. 

फोन पर अब वो शख्स हैं, जो ओमान में जसमीत की मदद कर रहे हैं.

कपूरथला के सुखदेव सिंह बताते हैं- बहुत सी हिंदू और पंजाबी लड़कियां हैं, जो यहां लाई जा रही हैं. वे कामकाज में फुर्तीली होती हैं, और जरूरतमंद होने के कारण विरोध भी नहीं कर पातीं. एजेंट बड़ी-बड़ी बातें करके उन्हें गल्फ लाकर छोड़ देते हैं. उनके पास न पासपोर्ट होता है, न पैसे. पहले ही कह दिया जाता है कि भागेंगी तो अरब की जेल में पड़ी रहेंगी. ऐसे में डर की वजह से वे सालोंसाल फंसी रह जाती हैं.

पंजाब में रत्ता खेड़ा पंजाब सिंहवाला गांव के एक्स-सरपंच राजदीप सिंह संधू ऐसे कई मामले देख चुके.

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women from punjab trapped in oman gulf nations amid kuwait fire death of indian migrants

खुद उनके गांव में ऐसा एक मामला फंसा था.

वे याद करते हैं- लड़की किसी हैदराबादी एजेंट के बहकावे में गल्फ पहुंच गई थी. वहां 15 दिनों में उसे इतना परेशान किया गया, कि लौटने की कोशिश करने लगी. किसी तरह से अपना पासपोर्ट चुराकर उसने हमें फोटो भेजी. वो टूरिस्ट वीजा पर थी, केवल 30 दिनों के लिए. ये बात वो खुद नहीं जानती थी. एजेंट जानबूझकर भी ऐसा करते हैं ताकि उसके बाद वो वहीं पर ट्रैप हो जाए. 

हमने मामले में मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स और पुलिस को इनवॉल्व किया. उसकी टिकट के लिए पैसे भी जुटाए. इसके बाद वहीं रहते पुराने भारतीयों ने एयरपोर्ट तक भागने में उसकी मदद की. जब तक वो दिल्ली नहीं पहुंच गई, डर बना हुआ था कि एजेंट या जिस परिवार में वो थी, वे लोग इसे खोज न लें.

एजेंट्स का पूरा जाल है, जो पंजाब से लेकर देश के कई हिस्सों तक फैला हुआ है. वे सोशल मीडिया पर फेक रील्स डालते हैं, जिसमें गल्फ की चमक-दमक दिखाई दे सके. पंजाब के युवा उसे देखकर बहकावे में आ जाते हैं. किसी तरह थोड़े पैसे जुटाकर वे एजेंट को देते हैं. एजेंट उनके टिकट-वीजा का इंतजाम कराकर किसी भी देश भेज देते हैं, जहां एक और एजेंट इंतजार में होता है. वो एयरपोर्ट पर ही पासपोर्ट अपने कब्जे में लेकर उन्हें अपने साथ ले जाता है. बाहर से पहुंचे लोगों को एजेंट कुछ दिन अपने ही पास रखता है. यहां गल्फ के लोग उससे कॉन्टैक्ट करते और अपनी जरूरत के मुताबिक वर्कर चुनकर ले जाते हैं. बदले में मोटे पैसों का लेनदेन होता है. 

हमारे गांव और आसपास ही कई सारे मामले हैं. दिक्कत ये है कि एजेंट किसी एजेंसी के साथ रजिस्टर्ड नहीं. उनके वैरिफिकेशन का भी कोई तरीका नहीं. तो कुल मिलाकर होता ये है कि एक बार खाड़ी देशों के एयरपोर्ट पर उतरने वाले युवा वहीं खोकर रह जाते हैं, जब तक कि बड़ी मदद न मिले.

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(सुरक्षा कारणों से महिला की पहचान छिपाई गई है.)

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