विश्व बैंक ने किशनगंगा बांध विवाद पर पाकिस्तान सरकार से भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करने की सलाह दी है. पाकिस्तान इस विवाद को इंटरनेशनल कोर्ट पंचाट में लेकर गया है जहां भारत ने एक निष्पक्ष एक्सपर्ट की नियुक्ति का प्रस्ताव दिया है. अब विश्व बैंक का कहना है कि पाकिस्तान को मामले में पीछे हटते हुए भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए.
पाकिस्तान लगातार यह कहता आया कि किशनगंगा बांध का निर्माण 1960 के सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है. उसकी दलील है कि इस परियोजना से न सिर्फ पाकिस्तान में बहनी वाली नदियों का जल स्तर प्रभावित होगा बल्कि नदियों की दिशा तक बदल जाएगी. इसी वजह से पाकिस्तान इस मामले को इंटरनेशनल कोर्ट में लेकर पहुंचा है. दूसरी ओर भारत का मानना है कि पाकिस्तान जो दलीलें दे रहा हैं वह मुद्दे पर सटीक नहीं बैठती इसी वजह से इस मामले में निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की जानी चाहिए.
सूत्रों से पता चला है कि पाकिस्तान इस मामले में भारत का प्रस्ताव मानने को तैयार नहीं है. क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि इससे वह इंटरनेशन कोर्ट में अपना पक्ष खो सकता है और मध्यस्थता के सभी दरवाजे बंद हो सकते हैं. साथ ही अन्य मामलों में जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी विवाद पैदा होगा तो इसी तरह के निष्पक्ष विशेषज्ञ के जरिए विवाद को सुलझाने की कोशिश की जा सकती है.
दिसंबर 2016 में विश्व बैंक के अध्यक्ष ने पाकिस्तान को बताया था कि इस मामले में दखल के लिए फिलहाल तैयार नहीं है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान ने विश्व बैंक को उसकी भूमिका याद दिलाते हुए कहा था कि वह मुद्दे पर ठहरने के लिए तैयार नहीं है. पाकिस्तान को लगता कि अगर यह मुद्दा लटका गया तो भारत इतने वक्त में किशनगंगा बांध के निर्माण का काम पूरा कर लेगा.
हाल की में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से किशनगंगा परियोजना के उद्घाटन बाद भी पाकिस्तान ने इसपर आपत्ति जताई थी. लेकिन विश्व बैंक आपत्ति खारिज करते हुए मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था.
आपको बता दें कि 1960 के सिंधु जल समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान ने इस परियोजना की शिकायत लेकर विश्व बैंक पहुंता है. यहां पड़ोसी मुल्क ने विश्व बैंक से इस परियोजना की निगरानी रखने को कहा था. इस बात पर सहमति नहीं बन पाई लेकिन विश्व बैंक ने पाकिस्तान से यह वादा जरूर किया है कि वह इस मसले पर दोनों देशों से बात करता रहेगा.