साल 2030 तक जब दुनिया में टैलेंट की भारी तंगी होगी, तब भारत में सरप्लस टैलेंट होगा यानी जरूरत से ज्यादा प्रतिभाएं होंगी. इसका मतलब यह है कि दुनिया में टैलेंट की कमी का भारतीय प्रतिभावान युवा अच्छा फायदा उठा पाएंगे.
वैश्विक कंसल्टिंग फर्म कोर्न फेरी की एक स्टडी के अनुसार, साल 2030 तक दुनिया में प्रतिभावान लोगों की 8.5 करोड़ तक की भारी तंगी हो सकती है, जो कि जर्मनी की मौजूदा जनसंख्या से भी ज्यादा संख्या है. वैश्विक स्तर पर नजदीकी अवधि में अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया को सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2030 तक जब एशिया-प्रशांत के क्षेत्र में करीब 4.7 करोड़ प्रतिभावान कामगारों की भारी कमी होगी, तब भारत के पास 24.53 करोड़ का टैलेंट सरप्लस होगा यानी इतनी जरूरत से ज्यादा प्रतिभाएं होंगी. 'ग्लोबल टैलेंट क्रंच' शीर्षक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत एकमात्र ऐसा देश होगा जिसके पास टैलेंट सरप्लस होगा.
भारत में सबसे ज्यादा 24.40 लाख का टैलेंट सरप्लस मैन्युफैक्चरिंग में, इसके बाद 13 लाख का टैलेंट सरप्लस टेक्नोलॉजी, मीडिया एवं दूरसंचार में और 11 लाख का टैलेंट सरप्लस वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में होगा.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुशल प्रतिभाओं की तंगी से यदि निपटा नहीं गया तो इससे 2030 तक एशिया-प्रशांत देशों की बड़ी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है.
कोर्न फेरी के सीओओ (एशिया प्रशांत) माइकल डिस्टेफैनो ने कहा, 'कंपनियों को अपना भविष्य बचाने के लिए इस संभावित प्रतिभा संकट से निपटना होगा. यदि इसके लिए समुचित उपाय नहीं किए गए तो यह तंगी समूचे एशिया-प्रशांत के बाजारों के ग्रोथ पर गहरा असर डालेगी.'
रिपोर्ट में कहा गया है, 'एशिया-प्रशांत इलाके में साल 2020 तक ही 1.23 करोड़ तक टैलेंट की भारी कमी हो जाएगी और साल 2030 तक यह बढ़कर 4.7 करोड़ तक पहुंच जाएगी. समस्या का समाधान नहीं किया गया तो इससे सालाना 4.24 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हो सकता है.'
अध्ययन के अनुसार, एशिया-प्रशांत की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में टैलेंट की आपूर्ति और मांग में साल 2020, 2025 और 2030 में खाई मुख्यत: तीन सेक्टर- वित्तीय एवं कारोबारी सेवाओं, टेक्नोलॉजी, मीडिया एवं दूरसंचार और मैन्युफैक्चरिंग में होगी.
(businesstoday.in से साभार)