दुनिया के 193 मुल्क कोपनहेगेन में ग्लोबल वॉर्मिंग से मिलकर लड़ने की रणनीति बनाने में जुटे हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बुरा असर पड़ रहा है ग्लेशियरों पर. भू-वैज्ञानिकों का एक दल अंटार्कटिका में ग्लेशियर की परतें खगांलने में जुटा हैं.
वैज्ञानिकों का दावा है कि पिछले 50 सालों में यहां का तापमान 3 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ा है. बर्फ के तेज़ी से पिघलने की ये बड़ी वजह रही है. ये हालत तब हैं जब ग्लोबल वार्मिग ने अभी अंटार्कटिका के कुछ ही हिस्से पर असर दिखाया है.
वैज्ञानिकों की मानें तो अगर पूरी अंटार्कटिका पर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर शुरु हो गया तो तबाही मचना तय है. दुनिया की 90 फीसदी बर्फ अंटार्कटिका में ही है. अगर यहां की सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र का जलस्तर 60 मीटर तक ऊपर चला जाएगा. ऐसे में इंसान को रहने के लिए शायद पहाड़ों में शरण लेनी पड़े.