केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लेखकों के साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाने के सिलसिले को एक मोदी सरकार के खिलाफ ‘एक गढ़ी हुई कागजी बगावत’ करार दिया है. उन्होंने इस मामले में एक लंबी फेसबुक पोस्ट लिखी है.
फेसबुक के जरिए निकाली भड़ास
‘एक गढ़ी हुई क्रांति- अन्य साधनों द्वारा राजनीति’ शीर्षक से किए गए एक फेसबुक पोस्ट में जेटली ने लिखा, ‘दादरी में अल्पसंख्यक समुदाय के एक सदस्य की
पीट-पीटकर की गई हत्या बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. सही सोच रखने वाला कोई भी इंसान न तो इस घटना को सही ठहरा सकता है और न ही इसे कम करके
आंक सकता है. ऐसी घटनाएं देश की छवि खराब करती हैं.’ गौरतलब है कि दादरी कांड के बाद दर्जनों लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी अवार्ड लौटा दिए हैं. उनका
दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में असहनशीलता का माहौल बनाया जा रहा है.
कांग्रेस सरकार से असहज: जेटली
जेटली ने कहा कि जब पिछले साल मोदी सत्ता में आए तो पहले की सरकारों में संरक्षण का आनंद उठा रहे लोग जाहिर तौर पर मौजूदा सरकार से असहज हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के और सिमटने के कारण उनकी यह असहजता पहले से बढ़ गई है.
'देश में असहनशीलता का माहौल नहीं'
जेटली ने कहा, ‘लगता है कि मोदी-विरोधी, बीजेपी-विरोधी तबकों की नई रणनीति अन्य साधनों से राजनीति करना है. इसका सबसे आसान तरीका है कि एक संकट
गढ़ो और फिर इस गढ़े हुए संकट पर सरकार के खिलाफ एक कागजी बगावत गढ़ दो.’ वित्त मंत्री ने कहा कि देश में असहनशीलता का कोई माहौल नहीं है. उन्होंने
कहा, ‘ये जो गढ़ी हुई बगावत है, वह दरअसल बीजेपी के प्रति वैचारिक असहनशीलता का मामला है.’ वित्त मंत्री ने याद दिलाते हुए कहा कि जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो चर्चों सहित ईसाई समुदाय के खिलाफ एक के बाद एक कर हमलों की खबरें आईं.
जेटली ने कहा, ‘यह आरोप लगाया गया कि देश में अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है. हमलों के ऐसे हर एक मामलों की जांच कराई गई और उनमें से ज्यादातर चोरी या बोतलें फेंक देने या खिड़कियों के शीशे तोड़ देने जैसे छोटे-मोटे अपराध के मामले पाए गए. दिल्ली और इसके आसपास के स्थानों में ऐसे किसी भी हमले को धर्म या राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं कहा जा सका.’ आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और उन पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल में एक नन से बलात्कार के मुख्य आरोपी को बांग्लादेशी मूल का पाया गया. {mospagebreak}
'लेखकों ने मुद्दा तलाशने में बड़ी मशक्कत की'
बीजेपी नेता ने लिखा, ‘उस वक्त विरोध ने दो कारकों को उजागर किया. पहला यह कि यह अल्पसंख्यक समुदाय की संस्थाओं पर हमला था और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री इस पर चुप थे. जब यह बात साबित हो गई कि ‘हमलों’ के ये मामले आपराधिक घटनाएं थीं, तो दुष्प्रचार और दुष्प्रचार करने वाले दोनों गायब हो गए.’ वित्त मंत्री ने कहा कि विरोध कर रहे लेखकों ने मोदी सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा तलाशने में बड़ी मशक्कत की है.
दाभोलकर की हत्या
उन्होंने कहा, ‘तर्कवादी एम एम कलबुर्गी की कर्नाटक में गोली मारकर हत्या की गई, जहां कांग्रेस की सरकार है. एक अन्य तर्कवादी एन दाभोलकर की हत्या महाराष्ट्र में 20 अगस्त 2013 को गई. उस वक्त वहां कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी. दोनों घटनाओं की स्पष्ट शब्दों में निंदा करने की जरूरत है. बीजेपी नेता ने कहा, ‘कानून-व्यवस्था बनाए रखना और हमले के आसान निशाने को सुरक्षा देना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. इसी तरह, दादरी कांड उत्तर प्रदेश में हुआ जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है.’
सरकार का किया बचाव
उन्होंने लिखा, ‘अन्य साधनों के जरिए की जा रही राजनीति में एक वैकल्पिक रणनीति तैयार की गई है. तीन अपराधों को मिला दें, सच को छुपा दें और उन सभी को मौजूदा केंद्र सरकार के पाले में फेंक दें. लेकिन किसी बगावत को गढ़ने के लिए सच को छुपाना जरूरी है और यह छवि पैदा करना जरूरी है कि मोदी सरकार इन अपराधों के लिए जिम्मेदार है, भले ही ये घटनाएं कांग्रेस या सपा शासित सरकारों में हुई हों.’
जेटली ने कहा, ‘2015 में विरोध कर लेखकों में से एक ने तो अपना पद्मश्री लौटाने का एक कारण 1984 के सिख दंगे को भी गिनाया. इस लेखक की अंतरात्मा को जागने में 30 साल लग गए.’ विरोध कर रहे लेखकों से सवाल करते हुए जेटली ने कहा कि उनमें से कितनों ने आपातकाल के दौरान गिरफ्तारियां दी हैं, विरोध-प्रदर्शन किए हैं या इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है? जेटली ने कहा, ‘1984 में सिखों के कत्लेआम या 1989 के भागलपुर दंगे के खिलाफ लेखकों ने कुछ बोला था? 2004 से 2014 के बीच हुए करोड़ों रुपये के घोटाले पर इन लेखकों की अंतरात्मा नहीं जागी थी?’