अगस्त 2012 में बना यमुना एक्सप्रेस-वे उत्तर भारत का इकलौता एक्सप्रेस-वे है जिस पर दोपहिया, तिपहिया वाहन चल सकते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) ने 5 पन्नों की रिपोर्ट में यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी को साफ बता दिया था कि जानलेवा सड़क हादसों में करीब 18 फीसदी दोपहिया और तिपहिया वाहन ही थे.
क्रैश साइट के इंस्पेक्शन के दौरान CRRI की टीम के सुझाव में था कि सड़क के सेंट्रल वर्ज यानी मीडियन पर Thrie Beam क्रैश बैरियर लगाए जाएं ताकि घटना होने पर कोई भी बस सड़क के दूसरी तरफ न जा सके. जबकि अभी मीडियन पर कंटीले तार (barbed wire fencing) लगे हैं.
8 फरवरी 2015 में सुझावों की ये 5 पन्नों की रिपोर्ट इंडिया टुडे के पास मौजूद है. पड़ताल में हमने पाया कि अभी तक मीडियन पर Thrie Beam क्रैश बैरियर नहीं लगे हैं. रोड सेफ्टी एक्सपर्ट का मानना है कि डब्लू के आकार के क्रैश बीम बैरियर लग जाने से बसों के हादसों पर लगाम लगेगी.
यमुना अथॉरिटी के सीनियर मैनेजर वी.के. त्यागी ने बताया कि अप्रैल 2019 में दिल्ली आईआईटी ने ताजा सर्वे किया है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या सर्वे में कही गई बातों को अमल में लाया गया है तो वह इसका जवाब देने से बचते हुए दिखे. इसका वो सही-सही जवाब नहीं दे पाए.
दिल्ली आईआईटी की ताजा स्टडी रिपोर्ट में प्रोफेसर गीतम तिवारी ने कई सुझाव दिए हैं. मसलन सेंट्रल वर्ज मीडियन पर क्रैश बीम बैरियर लगाए जाएं, ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक एक ही पुलिस काम करे, मीडियन पर पौधों की ऊंचाई डेढ़ मीटर से ज्यादा न हो. इससे पहले की ये सब कुछ अमल में आता, सोमवार यानी 8 जुलाई को बस हादसे में 29 लोगों की मौत हो गई.
कंक्रीट और सीमेंट की बनी यमुना एक्सप्रेस पर ज्यादा घर्षण की वजह से गाड़ियों के टायर फट जाते हैं
हमारी टीम ने पड़ताल में पाया कि रोक के बावजूद यहां ट्रैक्टर धड़ल्ले से चल रहे हैं. गाड़ियों का बीच में रुकना भी मना है, लेकिन ये फिर भी जारी है. रॉन्ग साइड लोग काफी आ जा रहे हैं. वहीं गुरुवार को जेवर से ग्रेटर नोएडा की तरफ आने वाली एक बस का पहिया रगड़ खाकर जल गया और इसकी आवाज से यात्रियों में दहशहत पैदा हो गई मानो बम ब्लास्ट हुआ हो. बिहार के अरिरिया से दिल्ली चलने वाली इस बस में बच्चे, महिलाएं और बूढ़े सवार थे.
CRRI के सीनियर साइंटिस्ट एस. वेलमुरूगन ने बताया कि कंक्रीट और सीमेंट की बनी यमुना एक्सप्रेस पर ज्यादा घर्षण की वजह से गाड़ियो के टायर फट जाते हैं और बड़ा हादसा हो जाता है.
इंडिया टुडे के पास CRRI के सुझावों की वो कॉपी है जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि एक्सप्रेस-वे के टोल प्लाजा और एंट्री-एग्जिट पर tread wear indication (twi) स्टेशन बने ताकि टायरों में मौजूद हवा या प्रेशर को चेक किया जा सके और हादसा रोका जा सके. जेवर टोल तक पड़ताल में हमें कोई स्टेशन नहीं मिला. वहीं 20 किलोमीटर से 36 किलोमीटर तक कोई स्ट्रीट लाइट नहीं मिली.