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अर्थव्यवस्था पर यशवंत सिन्हा के इन पांच सवालों का नहीं मिला जवाब

यशवंत को जवाब देने के लिए खुद वित्तमंत्री गुरुवार की शाम को मैदान में उतरे और सिन्हा पर निजी हमले किए और अपनी लच्छेदार भाषा से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की, जैसे अर्थव्यवस्था की हालत बहुत अच्छी है. ऐसा नहीं है कि यशवंत सिन्हा के सवाल हल्के थे... यशवंत सिन्हा ने अपने लेख में अर्थव्यवस्था को लेकर कई बेसिक सवाल उठाए थे, जिनका जवाब जानने की इच्छा हर भारतीय को है.

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अर्थव्यवस्था को लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने जेटली को घेरा है.
अर्थव्यवस्था को लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने जेटली को घेरा है.

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पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत पर लेख लिखकर केंद्र सरकार और वित्तमंत्री से कड़े सवाल पूछे. हालांकि सत्ताधारी पार्टी की ओर से यशवंत सिन्हा के सवालों को इग्नोर करने की कोशिश हुई. फिर जयंत सिन्हा से लेख लिखवाया गया और इसे पिता-पुत्र के बीच अर्थयुद्ध करार दे दिया गया, यह कहते हुए कि पूर्व वित्तमंत्री 80 साल की उम्र में नौकरी ढूंढ़ रहे हैं.

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यशवंत को जवाब देने के लिए खुद वित्तमंत्री गुरुवार की शाम को मैदान में उतरे और सिन्हा पर निजी हमले किए और अपनी लच्छेदार भाषा से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की, जैसे अर्थव्यवस्था की हालत बहुत अच्छी है. ऐसा नहीं है कि यशवंत सिन्हा के सवाल हल्के थे... यशवंत सिन्हा ने अपने लेख में अर्थव्यवस्था को लेकर कई बेसिक सवाल उठाए थे, जिनका जवाब जानने की इच्छा हर भारतीय को है.

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1. सिन्हा ने अपने लेख में कहा था कि उदारीकरण के बाद वाले दौर में जेटली ने सबसे भाग्यशाली वित्तमंत्री के रूप में शुरुआत की. क्रूड ऑयल की कम कीमतों ने करोड़ों रुपये बचाए. इस धमाके को कल्पनाशीलता के साथ उपयोग किया जाना चाहिए था. लेकिन, कई सारे प्रोजेक्ट रुके रहे औरबैंकों का एनपीए समस्या बना रहा. इन सबको कच्चे तेल की कीमतों में आई बंपर कमी की तरह बेहतर तरीके से मैनेज किया जाना चाहिए था. लेकिन कच्चे तेल की तरह इसे गंवा दिया गया.

2. पूर्व वित्तमंत्री ने अपने लेख में कहा कि पिछले दो दशकों के मुकाबले निजी निवेश घटता गया है. औद्योगिक उत्पादन ध्वस्त हो गया है. कृषि का संकट बढ़ता गया है. रोजगार देने में सबसे आगे कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री की हालत खराब है. सर्विस सेक्टर में मंदी आ गई है. निर्यात सूख गया है. सेक्टर दर सेक्टर अर्थव्यवस्था की हालत खराब है. इन सबके बीच नोटबंदी अर्थव्यवस्था के लिए आपदा बनकर आई. साथ दही जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी ने बिजनेस को डुबो दिया. लाखों लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. रोजगार के नए मौके नहीं बन रहे हैं.

3. सिन्हा ने अपने लेख में तीसरा सवाल जीडीपी के तिमाही दर तिमाही लगातार गिरने का उठाया है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी गिरकर 5.7 फीसद पर आ गई है. जोकि पिछले तीन सालों में सबसे कम है. सरकार लगातार कह रही है कि इसके लिए नोटबंदी जिम्मेदार नहीं है. यशवंत सिन्हा ने लिखा है कि सरकार की बात सहीहै, नोटबंदी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, जीडीपी में गिरावट बहुत पहले शुरू हो गई थी. नोटबंदी ने तो बस में आग में घी का काम किया.

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4. पूर्व वित्तमंत्री कहते हैं कि याद रखने वाली बात है कि जीडीपी को आंकने की परिभाषा बदल गई है. इसका फैसला भी मोदी सरकार ने 2015 में किया है. इस फैसले के बाद ग्रोथ रेट पहले के मुकाबले सालाना तौर पर 200 आधार प्वाइंट बढ़ गई है. पुराने नियमों के मुताबिक मौजूदा ग्रोथ रेट 5.7 के बजाय 3.7 प्रतिशत या इससे कम होती. जीएसटी के दायरे में इनपुट टैक्स क्रेडिट 65 हजार करोड़ पहुंच गया है, जबकि जीएसटी का कुल कलेक्शन 95 हजार करोड़ है. सरकार ने बड़े दावे करने वालों के पीछे इनकम टैक्स विभाग को लगा दिया है. एसएमई सेक्टर में कंपनियों को कैश फ्लो की समस्या करना पड़ा है.

5. यशवंत सिन्हा का पांचवां और महत्वपूर्ण सवाल ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़ा है. उनका सवाल है कि मानसून इस साल बहुत अच्छा नहीं रहा है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत और बुरी होने वाली है. राज्य सरकारों ने कर्ज माफी के नाम पर किसानों को 1 पैसे की कर्जमाफी दी है. देश की चालीस प्रमुख कंपनियां दिवालिएपन का सामना कर रही हैं. बहुत सारी दूसरी कंपनियों की हालत भी ऐसी ही होनी वाली है. लघु और मध्यम इंटरप्राइजेज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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