साल 2018 में देश की सर्वोच्च अदालत ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए. इनमें कई फैसले ऐसे थे जो न सिर्फ रूढ़िवादी सोच के खिलाफ थे, बल्कि आधुनिक समाज के हित में रहे. इनमें कुछ फैसलों का विरोध भी हुआ. पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में ताबड़तोड़ कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए. सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कई ऐसे फैसले दिए जिनका बड़ा असर दिखेगा. इनमें LGBT से लेकर एडल्ट्री और सबरीमाला तक फैसले शामिल हैं. इन फैसलों से भारतीय समाज में बड़ा बदलाव आएगा. इस साल सुप्रीम कोर्ट के ये ऐसे ही पांच अहम फैसले हैं-
1.धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून
सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार रोधी कानून को रद्द करते हुए इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की खंडपीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आईपीसी की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि यह कानून बेशक तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह महिला के जीने के अधिकार पर भी असर डालता है. कोर्ट ने धारा 497 की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके अनुसार पत्नी पति की संपत्ति मानी जाती है जो कि भेदभावपूर्ण है. जिस प्रावधान से महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव हो, वह असंवैधानिक है.
2.समलैंगिकता अपराध की श्रेणी से बाहर
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला समलैंगिकता पर दिया. 5 जजों की बेंच ने धारा 377 को रद्द करते हुए एलजीबीटी समुदाय के हक में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों के बीच परस्पर सहमति से स्थापित समलैंगिक यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आ सकते.
यौन प्राथमिकता बाइलॉजिकल और नेचुरल है. यह बेहद व्यक्तिगत मामला है. LGBT समुदाय को भी समान अधिकार होना चाहिए. इसमें भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इसे पूर्णतया वैध कर दिया. ये ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस खानविल्कर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा थीं.
3.आधार की अनिवार्यता पर ऐतिहासिक फैसला
आधार कार्ड पर इस साल खूब बवाल मचा. बैंक से लेकर मोबाइल कंपनियों तक में आधार की अनिवार्यता पर सवाल उठे. डेटा लीक की कई बार आशंकाएं जाहिर की गईं. जस्टिस दीपक मिश्रा ने सितंबर में कई ताबड़तोड़ फैसले सुनाए. इनमें आधार की अनिवार्यता पर भी फैसला था. कोर्ट ने आधार की संवैधानिकता को तो बरकरार रखा, लेकिन ये साफ कर दिया कि हर जगह आधार को लिंक कराना अनिवार्य नहीं होगा. इस पर 38 दिनों तक लंबी सुनवाई चली थी. कोर्ट ने साफ किया कि मोबाइल और निजी कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं. कोर्ट ने आंशिक बदलाव के साथ आधार अधिनियम की धारा 57 को हटा दिया.
4.महिलाओं के लिए भी सबरीमाला के दरवाजे खुले
इस साल सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक मसलों पर भी कई फैसले दिए. इनमें सबसे अहम केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित था. 28 सितंबर को SC ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया. फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि महिलाओं को भी पूजा करने का समान अधिकार है. इसे रोकना मौलिक अधिकार का हनन है. अभी तक मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ था.
5.अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने बेहद संवेदनशील राम मंदिर मसले पर सुनवाई की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. इस साल चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सिर्फ जमीन के मालिकाना हक के वाद के रूप में ही विचार करने की बात करते हुए कहा कि इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई शुरू हो. 26 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि 4 जनवरी 2019 को इस मामले की सुनवाई होगी. राम मंदिर पर फैसले का पूरे देश को पिछले कई दशक से इंतजार है.