भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कर्नाटक विधानसभा की सदस्यता से शुक्रवार को इस्तीफा देने वाले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने अपना राजनीतिक सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से शुरू किया था.
चावल मिल के मामूली क्लर्क से एक मजबूत व प्रभावी राजनेता का सफर तय करने वाले येदियुरप्पा को ही कर्नाटक और देश के किसी भी दक्षिणी राज्य में बीजेपी को पहली बार सत्ता में लाने का श्रेय जाता है. लेकिन पार्टी से कुछ ऐसी अनबन हुई कि जिस बीजेपी को उन्होंने अपनी जिंदगी के 40 साल दिए, उसी से अलग होना पड़ा.
राज्य में मजबूत पकड़ रखने वाले येदियुरप्पा के बीजेपी से अलग होने के बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसका असर अगले साल मई में होने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है. मांड्या के बुकानाकेरे में सिद्दलिंगप्पा और पुट्टाथायम्मा की संतान के रूप में 27 फरवरी, 1943 को पैदा हुए येदियुरप्पा ने इससे पहले भी बीजेपी छोड़ने की सोची थी.
वह वक्त 2004 का था, जब येदियुरप्पा को बीजेपी में अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था और उन्होंने इसे छोड़कर पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा की अध्यक्षता वाली जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) से जुड़ने का मन बनाया था. दरअसल, वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 225 विधानसभा सीटों में से केवल 79 पर बीजेपी को जीत मिली थी और तब येदियुरप्पा को लगा था कि बीजेपी अब इससे अधिक सीटें राज्य में कभी नहीं जीत सकती.
बाद में हालांकि उन्होंने जेडी-एस के कुमारस्वामी पर लिंगायत समुदाय से 'धोखा' करने का आरोप लगाते हुए नए सिरे से राजनीतिक अभियान चलाया, जिसके बाद वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता में आ गई. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं, जबकि कुमारस्वामी वोक्कलिगस समुदाय से आते हैं.
राज्य की 6.5 करोड़ आबादी में से लिंगायत समुदाय के लोग 17 प्रतिशत हैं, जबकि वोक्कलिगस समुदाय के लोग 15 प्रतिशत हैं. लिंगायत वोटों पर येदियुरप्पा की मजबूत पकड़ मानी जाती है. येदियुरप्पा ने खनन घोटाले में नाम आने के बाद जुलाई 2011 में पार्टी नेतृत्व के दबाव में इस्तीफा दे दिया था. पार्टी ने उन्हें कर्नाटक बीजेपी का भी अध्यक्ष नहीं बनाया, जिससे वह नाराज थे.