आम आदमी पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से हटाए जाने के बाद योगेंद्र यादव सार्वजनिक तौर पर कोई नाराजगी नहीं जता रहे. बुधवार को आज तक से एक्सक्लूसिव बातचीत में उन्होंने कहा कि पार्टी जो काम देगी, वह खुशी-खुशी उसे निभाएंगे और पार्टी के काम को आगे बढ़ाएंगे. प्रवक्ता पद से हटाए जाने की खबर पर भी योगेंद्र ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की. योगेंद्र यादव का मानना है कि पार्टी में मतभेद के साथ काम होता है और इसे दोस्ती का अड्डा नहीं बना सकते.
नए परिचय के सवाल पर उन्होंने कहा, 'मेरा सबसे बड़ा परिचय तो AAP कार्यकर्ता का ही है और इसी पहचान से सड़क पर इज्जत मिलती है. कोई यह नहीं पूछता कि आप किस समिति के सदस्य हैं. कम से कम मुझे नहीं पता कि मैं राष्ट्रीय प्रवक्ता नहीं रहा. हो सकता है आपके पास जानकारी हो.'
'ऐसी क्या बड़ी बात हो गई..'
योगेंद्र ने कहा कि उन्हें पीएसी से हटाए जाने के मामले को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं देखा जाना चाहिए. इससे इतनी जल्दी कोई निष्कर्ष न निकाला जाए और मामले को पार्टी की 'बुरी हालत' की तरह पेश न किया जाए. उन्होंने कहा, 'क्या हालत हो गई' की भाषा ठीक नहीं है. मेरे पास पीएसी की कुर्सी नहीं रही, तो क्या बड़ी बात हो गई. आपने कुर्सी दे रखी है, उस पर बैठा हूं. हम एक लंबा काम करने आए हैं, कुर्सी पर बैठने नहीं आए. दरी पर बैठ कर काम कर लेते हैं.'
योगेंद्र ने कहा, 'मैं एक महीने पहले से ही पार्टी का एक काम कर रहा हूं. हरियाणा में जय किसान अभियान चल रहा है. वहां यूरिया खाद का संकट, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और अधिग्रहण के मुआवजे की बड़ी समस्या है. मैंने किसानों का संकट अपनी आंखों से देखा है. ख्वाहिश है कि उनके लिए कुछ करूं. उनकी आवाज उठा सकूं.'
गौरतलब है कि योगेंद्र हरियाणा में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा कहे जाते हैं. पीएसी की सदस्यता से मुक्त किए जाने के बाद उन्हें किसान विंग की कमान दिए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं.
'AAP मुद्दे नहीं उठाएगी तो क्या करेगी'
दिल्ली से बाहर पार्टी के विस्तार के मुद्दे पर भी योगेंद्र ने अपनी राय रखी. पार्टी के विस्तार को लेकर केजरीवाल और उनमें कथित मतभेद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'मुझे तो नहीं याद, जब एक भी बार अरविंद भाई ने कहा हो कि दिल्ली के बाहर संगठन का काम नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि मैं दिल्ली में काम करूंगा बतौर चीफ मिनिस्टर और हर जगह जाकर हम चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन चुनाव लड़ने और राजनीति करने में फर्क है. AAP अगर गांवों में जाकर किसानों के मुद्दे नहीं उठाएगी तो क्या करेगी? ताला मारकर बैठ जाएं?'
जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्या हुआ कि दो अहम लोग ऐसे मुकाम पर पहुंच गए कि उनके लिए साथ काम करना मुश्किल हो गया, योगेंद्र बोले, 'मैं नहीं समझता कि ऐसा हुआ है. मतभेद के साथ बैठकर ही काम करना तो राजनीति है. अगर पसंद और दोस्ती के बीच ही काम करना है तो दोस्ती का अड्डा खोल लो.'
'दोस्ती का अड्डा नहीं है AAP'
क्या AAP दोस्ती का अड्डा हो गया है, पूछने पर उनका जवाब था, 'नहीं. मैं नहीं समझता कि AAP दोस्ती का अड्डा है. न तलाक झटपट होता है, न रिश्ता और न राजनीति. यहां धीरज, विनम्रता और संयम जरूरी है. सिर नीचा करके काम करेंगे तभी कुछ हो सकता है. मतभेद होते हैं, मनभेद न हों, उसकी कोशिश होती है. एक-दो दिन के आधार पर निष्कर्ष न निकालें. वक्त सबसे ताकतवर चीज है.'
क्या AAP में विरोधी विचारों को दबाया जा रहा है और इस बारे में आप प्रशांत भूषण की चिट्ठी से इत्तेफाक रखते हैं? यह पूछे जाने पर यादव ने कहा, 'मैं इस राय से इत्तेफाक रखता हूं कि निंदक नियरे राखिए. मुझे विश्वास है कि अरविंद इसमें यकीन करते हैं. बड़े निर्णय के वक्त अरविंद अपना इंडिपेंडेट सोर्स ऑफ इनफॉरमेशन यूज करते हैं. अपने आस-पास के लोगों की सूचना पर ही आश्रित नहीं रहते. यह एक बड़े नेता की खूबी है.'
योगेंद्र ने मयंक गांधी के ब्लॉग पर टिप्पणी करने से मना कर दिया. उन्होंने कहा, 'ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. त्वरित टिप्पणी से कोई चीज सुलझती नहीं.'
योगेंद्र ने कहा कि वॉलंटियर की आवाज सुनी जानी चाहिए और वह वोटिंग के ब्यौरों और अरविंद के मीटिंग में न आने पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि मैं नहीं मानता कि अरविंद में ईगो है.