इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन चौथे सेशन में चुनावी विश्लेषकों की चौपाल लगी. इस सेशन में चुनाव पूर्व होने वाले सर्वे पर जोरदार बहस हुई. चुनावी सीजन में यह बहस इसलिए भी अहमियत रखती है, क्योंकि पिछले दिनों एक स्टिंग ऑपरेशन में ऐसे सर्वे की विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे.
चुनावी विश्लेषक और आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने चुनाव पूर्व सर्वे को जायज ठहराते हुए कहा कि सही ओपिनियन पोल की जानकारी देश की जनता का हक है, लेकिन भारत में इस सर्वे की प्रक्रिया ठीक नहीं है.
चुनावी पंडितों के सामने आने वाली चुनौतियों का जिक्र करते हुए योगेंद्र यादव ने कहा कि लोग आप पर किसी पार्टी विशेष के पक्षपात का आरोप लगाते हैं. लेकिन इससे घबराने की बात नहीं.
यादव ने कहा कि ऑपिनियन पोल में विश्वसनीयता का बहुत महत्व है. उन्होंने कहा, 'विश्वसनीयता खत्म, तो दुकान बंद'. उन्होंने चुनाव पूर्व सर्वे के लिए एक बाहरी नियामक संस्था की जरूरत पर जोर दिया, जिसकी विश्वसनीयता हो. उन्होंने यह भी कहा कि ओपिनियन पोल में हमेशा ही बीजेपी को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता रहा है.
चर्चा में हिस्सा लेते हुए अर्थशास्त्री और चुनाव विश्लेषक अशोक लाहिड़ी ने कहा कि चुनाव के ज्योतिषियों की भी सीमाएं हैं. सर्वे में सैंपल साइज अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन, सैंपल का डिजाइन भी महत्वपूर्ण होता है.
लाहिड़ी ने आगामी लोकसभा चुनाव के बारे में भविष्यवाणी भी कर डाली. चुनाव पूर्व सामने आए कुछ सर्वे के आधार पर उन्होंने कहा, 'इस बार बीजेपी को सबसे बढि़या रिजल्ट मिलने वाले हैं, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहेगा.'
लाहिड़ी ने कहा, '80 के दशक में यह सवाल होता था कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी. लेकिन आज कोई नहीं पूछ रहा कि कांग्रेस जीतेगी या नहीं, बल्कि हर कोई यह पूछ रहा है कि बीजेपी को सरकार बनाने लायक पर्याप्त सीटें मिलेंगी या नहीं.'
लाहिड़ी ने ओपिनियन पोल पर पाबंदी का विरोध किया. उन्होंने कहा कि लोग एक साबुन खरीदने से पहले दूसरे की राय लेते हैं. इसी तरह वोटर भी जानना चाहते हैं कि वोटिंग से पहले लोग क्या सोचते हैं.
चुनाव विश्लेषक जीवीएल नरसिंह राव ने कहा कि अमेरिका में दो पार्टियों की व्यवस्था है. इस वजह से चुनाव पूर्व भविष्यवाणी करना आसान होता है. लेकिन भारत जैसी बहुदलीय व्यवस्था वाले देश में चुनाव से पहले सही भविष्यवाणी करना कठिन काम है. राव ने कहा कि राजनीति दल चुनाव पूर्व सर्वे को सिरदर्द मानते हैं, लेकिन चुनाव पूर्व सर्वे पर पाबंदी लगाना 'बैड आइडिया' है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने चुनाव पूर्व सर्वे के आंकड़ों में हेर-फेर करने वालों और सच की तहकीकात किए बिना ऐसे सर्वे को प्रसारित करने वाले टीवी चैनलों की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि चुनाव पूर्व सर्वे वोटरों पर असर डालते हैं और इनसे चुनाव के नतीजे प्रभावित होते हैं.